उपनिषद
मुक्तिकोपनिषत् के अनुसार वेद की (1180) एक हज़ार एक सौ अस्सी कुल शाखाये हैं, जिनमें 21 ऋगवबेद में, 106 यजुर्वेद में, 1000 सामवेद में, 40 अथर्वेद में है। व्याकरण महाभाष्य के अनुसार भी किंचिन्न्यूनाथिक मात्रा से इसी के लगभग होते हैं।
“एकैकस्यास्तु शाखाया एकेकोपनिषन्मता” इस मुक्तिकोपनिषत् के वाक्यानुसार उपनिषत् भी 1180 एक हज़ार एक सौ अस्सी होते हैं । उससे भी मन्त्र भाग ब्राह्मणभाग भेद तथा पूर्वेतापिनी उत्तरतापिन्यादि भेदेन एक हज़ार अस्सी से भी अधिक होते हैं ।
मुक्तिका उपनिषद में 108 उपनिषदों के नाम दिये गये हैं। ऋग्वेद में 10, सामवेद में 16, शुक्ल यजुर्वेद में 19, कृष्ण यजुर्वेद में 32 और अथर्ववेद में 31 उपनिषद हैं। जो मुख्य है। बाकी इन्ही के नीचे की शाखाये है।
उपनिषदो का उदेश्य –
- उपनिषद शब्द का अर्थ है “पास बैठना”।
- अर्थात यह वह ज्ञान है जिसमे गुरु भगवान् अपने शिष्य को अपने पास बैठाकर ज्ञान देते है।
- अर्थात अगर उपनिषद का ज्ञान ही गुरु का ज्ञान है, जिसको समझने के बाद शिष्य को वेद समझ में आने लगते है।
- difference between vedas and upanishads – वेद ईश्वर के द्वारा प्रकट ज्ञान है, जबकि उपनिषद श्री गुरु ने वेदो के अध्ययन से वेदों से ही सरलतम सार को प्रकट किया है । अर्थात उपनिषदों में वेदों के ज्ञान का रहस्य है, जबकि वेदों में ब्रह्म का सांकेतिक रहस्य है।
- अर्थात हर मुमुक्षु व्यक्ति को सबसे पहले उपनिषद (गुरु) का ज्ञान आवश्यक है।
- उपनिषद और वेद के अध्ययन उपरांत जब व्यक्ति इस ज्ञान पर चिंतन और मनन करता है तो निश्चित ही उसे ब्रह्म जाना हुआ सा प्रतीत होता है।
- तब वह व्यक्ति कह सकता है कि न तो वह ब्रह्म को नहीं जानता, और न ही वह ब्रह्म को सम्पूर्ण रूप से जानता है।
- इसे ही ज्ञानमार्ग से भगवान् की प्राप्ति करना समझते है।
Note: इसलिए ज्यादातर उपनिषद उन महाऋषियों ने लिखे है, जिन्हे वेदो का सार या वेदो का सम्पूर्ण ज्ञान था। इसलिए हर सनातनी को उपनिषद अवश्य पढ़ने या सुनने चाहिए।
इसे ऐसे सरलतम रूप में समझते है –
भगवान की प्राप्ति के कई मार्ग है जिनमे मुख्य है क्रमवद्ध है –
- सर्वप्रथम एक अज्ञानी व्यक्ति ब्राहम्णो से कर्मकांड के द्वारा भगवान की पूजा (आदर सम्मान) करवाता है।
- कर्मकांड से उसके मन में तीर्थो पर जाने की उत्सुकता बढ़ती है।
- तीर्थो पर जाने से वहां अन्य-अन्य रूप में देवो के दर्शन से देवो के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ती है। उसके पुण्य में वृद्धि होती है, और मन सात्विक होता है।
- देवो के बारे में जानने के लिए वह सरल पुराणों का अध्ययन करता है, कथाये सुनता है ।
- पुराणों का पौराणिक इतिहास जानने से उसमे सत्य को जानने की जिज्ञासा बढ़ती है, सभी पुराण उस आत्मा को उपनिषदों की तरफ संकेत करते है, तो वेदो का सार उपनिषद समझने के लिए, उपनिषदों की शरण में जाता है। अर्थात उन्हें पढता या सुनता है।
- उपनिषद अर्थात गुरु उस व्यक्ति / आत्मा को ब्रह्म ज्ञान की ओर संकेत करते है, फिर वह वेदों की ओर बढ़ता है।
- वेदो के अध्ययन से उसे ब्रह्म के बारे में संकेत मिलता है, जो नेति नेति कहकर उसे ज्ञान देते है। फिर वह अपनी ज्ञानदृष्टि से उस कल्पवृक्ष को देखता है।
- उसकी भक्ति दृढ़ हो जाती है, उसे विश्वास हो जाता है कि उसका कोई कुछ नहीं विगाड़ सकता, सब कुछ उस ब्रह्म की माया है। और इस प्रकार वह माया से मुक्त हो जाता है क्युकी अज्ञान ही माया है।
- भक्ति के दृढ़ होने से व्यक्ति परम सुख के आनंद को प्राप्त होता है। भक्ति देवी के मिलने से, भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग्य की कृपा होती है।
- समस्त रिद्दी, सिद्दी और शक्तियाँ उसके भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को सरल बनाने में पूरी सहायता करती है। वह अपने भाव में भगवान् से हर पल बात करता है।
भक्ति को प्राप्त करने के बाद का एक संकेत श्री रामअवतार स्तुति में भी मिलता है।
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसु लीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥
एक बार भक्तराज श्री हनुमान जी ने, श्री राम से मुक्ति के लिए मार्ग जानना चाहा था तो श्रीराम ने ज्ञान और मुक्ति के लिए हनुमान जी को इन 108 उपनिषदों के अध्ययन के लिए कहा था और उन्होंने के एक एक के बाद एक क्रमवद्द तरीके से 108 उपनिषदों का ज्ञान श्री हनुमान जी को दिया था।
उपनिषद लिस्ट या 108 उपनिषदों की सूची। (List of Upanishads in Hindi)
1. ईशा उपनिषद / ईशावास्योपनिषद्
2. केन उपनिषद
3. कथा उपनिषद / कठोपनिषद
4. प्राण उपनिषद
5. मुंडका उपनिषद
6. मांडूक्य उपनिषद
7. तैत्तिरीय उपनिषद
8. ऐतरेय उपनिषद
9. चंदोग्य उपनिषद
10. बृहदारण्यक उपनिषद
11. ब्रह्मोपनिषद
12. कैवल्योपनिषद
13. जबलोपनिषद
14. श्वेताश्वतर उपनिषद
15. हमसोपनिषद
16. अरुण्योपनिषद
17. गर्भोपनिषद
18. नारायणोपनिषद
19. परमहंसोपनिषद
20. अमृतबिन्दु उपनिषद
21. नाडा-बिन्दुपनिषद
22. सिरोपनिषद
23. अथर्व-शिखोपनिषद
24. मैत्रायणी उपनिषद
25. कौशीतकी उपनिषद
26. बृहज-जबलोपनिषद
27. नृसिंह-तपनोपनिषद
28. कालाग्नि-रूद्रोपनिषद
29. मैत्रेयी-उपनिषद
30. सुबलोपनिषद
31. क्षीरोपनिषद
32. मन्त्रिकोपनिषद
33. सर्व-सर्वोपनिषद
34. निर्लम्बोपनिषद
35. सुका-राशायोपनिषद
36. वज्र-सुकोनिकोपनिषद
37. तेजबिंदू उपनिषद
38. नाडा-बिन्दुपनिषद
39. ध्यान-बिंदूपनिषद
40. ब्रह्म-विद्याोपनिषद
41. योग-तत्त्वोपनिषद
42. आत्म-बोधोपनिषद
43. नारद-परिव्राजकोपनिषद
44. त्रिशिखी-उपनिषद
45. सितोपनिषद
४६. योग-कुदामनी-उपनिषद
47. निर्वाणोपनिषद
48. मंडला-ब्रह्मणोपनिषद
49. दक्षिणा-मृत्यु-उपनिषद
50. सरभोपनिषद
51. स्कन्दोपनिषद
52. महानारायणोपनिषद
53. आद्य-तारकोपनिषद
54. राम-रसोपनिषद
55. राम-तप-उपनिषद
56. वासुदेवोपनिषद
57. मुद्गलोपनिषद
58. सांडिलोपनिषद
59. पिंगलोपनिषद
60. भिक्षुपनिषद
61. महाद-उपनिषद
62. शारिकोपनिषद
63. योग-शिखोपनिषद
64. तुरियातितोपनिषद
65. संन्यासोपनिषद
66. परमहंस-परिव्राजकोपनिषद
67. मलिकोपनिषद
68. अव्याकोटोपनिषद
69. एकरक्षोपनिषद
70. पूर्णोपनिषद
71. सूर्योपनिषद
72. अक्षय-उपनिषद
73. अध्यात्मोपनिषद
74. कुंडिकोपनिषद
75. सावित्री-उपनिषद
76. आत्मोपनिषद
77. पाशुपतोपनिषद
78. परम-ब्रह्मोपनिषद
79. अवधूतोपनिषद
80. त्रिपुरतापनोपनिषद
81. ईश्वर-उपनिषद
82. त्रिपुरोपनिषद
83. कथा-रुद्रोपनिषद
84. भावनोपनिषद
85. हृदयोपनिषद
86. योग-कुंडलिनी-उपनिषद
87. भस्मोपनिषद
88. रुद्राक्षोपनिषद
89. गणोपनिषद
90. दर्शनोपनिषद
91. तारा-सरोपनिषद
92. महा-वाकोपनिषद
93. पंच-ब्रह्मोपनिषद
94. प्राणाग्नि-उष्णोपनिषद्
95. गोपाला-तपनी-उपनिषद
96. कृष्णोपनिषद
97. याज्ञवल्क्योपनिषद
98. वराहोपनिषद
99. सत्यनय-उपनिषद
100. हयग्रीवोपनिषद
101. दत्तात्रेयोपनिषद
102. गरुड़ोपनिषद
103. काल-उपनिषद
104. जबली-उपनिषद
105. सौभग्योपनिषद
106. सरस्वती-राह्योपनिषद
107. बह्रविकोपनिषद
108. मुक्तिकोपनिषद
Disclaimer – यह जानकारी स्वयं के भाव और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के अनुसार है। इसे संकेत मात्र समझे, सही जानकारी के लिए शास्त्रों और गुरु की शरण में जाए। शास्त्र और गुरु दोनों बहुत दयालु है, अवश्य आपके प्रश्नो के उत्तर देंगे।
एक प्रार्थना – हे नाथ में आपको एक क्षण के लिए भी न भूलू। साँस लू तो माँ सीता, और साँस छोड़ू तो प्रभु श्रीराम नाम निकले। ठीक इसी प्रकार से जैसे परमपिता शिव जी और भक्ति शिरोमणि हनुमान जी, हमेशा श्री राम नाम का जप करते है।