जब अर्जुन 12 वर्ष का वनवास भोग रहे थे, उस दौरान उनके 3 विवाह होते हैं. पहला उलूपी जोकि नाग कन्या थी. दूसरा चित्रांगदा जोकि मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री थी और तीसरा एवं आखिरी सुभद्रा जोकि भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं. दरअसल अर्जुन को नियम के उलंघन करने की वजह से 12 वर्ष का वनवास हुआ था, जिस दौरान वे तीर्थ स्थलों पर जाकर रहने लगे. उसी दौरान उनके 3 विवाह हुए.
और इसी वनवास के दौरान अर्जुन का विवाह नागकन्या उलूपी और मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से विवाह होता है और उनसे एक एक पुत्र भी होते है। जानने के लिए पढ़िए आगे की कहानी।
अर्जुन और नागकन्या उलूपी का विवाह (Arjun and Ulupi story in Mahabharat) –
वनवास में तीर्थयात्रा के दौरान अर्जुन हरिद्वार पहुंचे. जहां वे गंगा स्नान कर रहे थे. जब यह खबर नागलोक को हुई, तो उन्होंने अर्जुन को मारने की योजना बनाई. यह योजना इसलिए बनाई गई थी कि अर्जुन ने अपने नगर इंद्रप्रस्थ को बचाने के लिए धरती पर कई नागों का संहार किया था. (arjun and ulupi story in mahabharat) नाग कन्या उलूपी ने कहा कि यह कार्य वह स्वयं करेगी. उलूपी राज कन्या तो थी ही, साथ ही विधवा भी थी. दरअसल उसका पति भी नाग वंश से संबंधित था, पर उसकी मौत एक गरुण के हाथों हो गई थी. तब से राजकुमारी अपने पिता के साथ ही थी.
जब उलूपी अर्जुन को मारने के लिए गंगा तट के किनारे पहुंची, तो वह उन्हें देखकर मोहित हो गई. अर्जुन के प्रति उसके आर्कषण ने बदले की भावना को खत्म कर दिया.
वह नाग रूप से एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई और अर्जुन को अपहरण करके नाग लोक ले आई. जहां समस्त नागलोक यह सोच रहा था कि उलूपी ने साहस का काम किया है. वहीं उलूपी अर्जुन की बेहोशी खत्म होने का इंतजार कर रही थी.
कुछ दिनों में अर्जुन को होश आया और उन्होंने अपने सामने उलूपी को पाया. उलूपी ने कहा कि मैं अपने वंश का बदला लेने के लिए आपके पास आई थी, पर अब मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं. कृपया मेरे प्रेम को स्वीकार करें. अर्जुन विवाह के विषय में कुछ कह पाते, इसके पहले ही उलूपी ने कहा कि मैं जानती हूं कि आपकी तीन पत्नियां हैं. पर मुझे चौथी पत्नी बनने से कोई परहेज नहीं. उलूपी ने अपने पिता और समस्त नागवंश का अर्जुन से समझौता करवाया.
इस समझौते के बदले अर्जुन ने उलूपी से गंधर्व विवाह किया. चूंकि वे हमेशा के लिए नागलोक में नहीं रह सकते थे, इसलिए कुछ वक्त गुजारने के बाद वहां से जाने लगे. उलूपी ने अर्जुन को नहीं रोका, पर जाने से पहले उन्हें सूचना दी कि वह अर्जुन की संतान को जन्म देने वाली है.
इसके साथ ही अर्जुन को वरदान दिया कि जल युद्ध में आप कभी पराजित नहीं हो सकते. कोई जलचर आपके लिए कभी नुक्सानदायक साबित नहीं होगा. अर्जुन ने उलूपी से विदा ली.
अर्जुन और उलुपि पुत्र इरावन (arjun and ulupi son) –
दूसरी ओर उलूपी ने इरावन नाम के पुत्र को जन्म दिया. इरावन Iravan वही थे, जिन्होंने महाभारत में पांडवों की जीत के लिए स्व: आहूति दी थी. वह एक कुशल धनुर्धर और मायावी अस्त्रों का ज्ञाता था। कुरुक्षेत्र के युद्ध में, उसने शकुनि के छः भाइयों का वध किया और अन्य बहुत से योद्धाओं को परास्त किया। इरवन का वध 8वें दिन के युद्ध में अलम्बुष नामक राक्षस ने किया। बाद वह किन्नरों के देवता कहलाए.
भीष्म पर्व के 90वें अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को इरावान का परिचय देते हुए बताते हैं कि इरावान नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी के गर्भ से अर्जुन द्वारा उत्पन्न किया गया था। नागराज की वह पुत्री उलूपी संतानहीन थी। उसके मनोनीत पति को गरूड़ ने मार डाला था, जिससे वह अत्यंत दीन एवं दयनीय हो रही थी। ऐरावतवंशी कौरव्य नाग ने उसे अर्जुन को अर्पित किया और अर्जुन ने उस नागकन्या को भार्या रूप में ग्रहण किया था। इस प्रकार अर्जुन पुत्र उत्पन्न हुआ था। इरावान सदा मातृकुल में रहा। वह नागलोक में ही माता उलूपी द्वारा पाल-पोसकर बड़ा किया गया और सब प्रकार से वहीं उसकी रक्षा की गयी थी। इरावान भी अपने पिता अर्जुन की भांति रूपवान, बलवान, गुणवान और सत्य पराक्रमी था।
अर्जुन चित्रांगदा प्रेम और चित्रांगदा अर्जुन का विवाह –
(mahabharat, arjun wife chitrangada) –
अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान कुंति पुत्र अर्जुन एक बार महेन्द्र पर्वत होकर समुद्र के किनारे चलते-चलते हुए मणिपुर पहुंचे। वहां उन्होंने मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा को देखा तो देखते ही रह गए, क्योंकि वह बहुत ही सुंदर थी। तब उन्होंने मणिपुर के नरेश के समक्ष पहुंचकर कहा, राजन् मैं कुलीन क्षत्रीय हूं। आप मुझसे अपनी कन्या का विवाह कर दीजिए। चित्रवाहन के पूछने पर अर्जुन ने बतलाया कि मैं पाण्डुपुत्र अर्जुन हूं।
यह जानकर राजा चित्रवाहन ने अर्जुन के समक्ष एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि उसका पुत्र (अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र) चित्रवाहन के पास ही रहेगा क्योंकि पूर्व युग में उसके पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए थे। उन्होंने पुत्र की कामना से तपस्या की थी तो शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्त करने का वरदान देते हुए यह भी कहा था कि हर पीढ़ी में एक ही संतान हुआ करेगी अत: चित्रवाहन की संतान वह कन्या ही थी।
चित्रवाहन ने कहा, मेरे यह एक ही कन्या है इसे में पुत्र ही समझता हूं। इसका मैं पुत्रिकाधर्म अनुसार विवाह करूंगा, जिससे इसका पुत्र हो जाए और मेरा वंश प्रवर्तक बने। अर्जुन ने कहा, ठीक है आपकी शर्त मुझे स्वीकार है और इस तरह अर्जुन और चित्रांग्दा का विवाह हुआ।
अर्जुन और चित्रांगदा पुत्र बभ्रुवाहन –
कुछ काल तक अर्जुन ने चित्रांगदा के साध वैवाहिक जीवन का आनंद लिया और उसके बाद उनको एक पुत्र हुआ। (arjun and chitrangada son) पुत्र का नाम ‘बभ्रुवाहन’ रखा गया। पुत्र-जन्म के उपरांत उसके पालन का भार चित्रांगदा पर छोड़ अर्जुन ने विदा ले ली। चलने से पूर्व अर्जुन ने कहा कि कालांतर में युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करेंगे, तभी चित्रांगदा अपने पिता के साथ इन्द्रप्रस्थ आ जाए। वहां अर्जुन के सभी संबंधियों से मिलने का सुयोग मिल जाएगा।
बभ्रुवाहन भी अपने पिता अर्जुन की तरह परमप्रतापी था जो भविष्य में बड़ा होकर अपने पिता अर्जुन को ही युद्द में हरा देता है। जो अपने नाना की मृत्यु के बाद मणिपुर के राजा बने। राजा बभ्रुवाहन ने अपने ही पिता अर्जुन से युद्ध किया और अर्जुन का वध भी किया।