प्रेरणादायक कहानी – एक समय की बात है एक ब्राह्मण पर उसकी पत्नी रहते थे| जो सदैव सभी को दान दिया करते थे| उस ब्राह्मण ने धीरे-धीरे अपना सब कुछ दान कर दिया| सब दान करने के बाद उसके पास दो समय का भोजन करने के लिए भी धन नहीं बचा|
तब एक दिन उस ब्राह्मण की पत्नी ने कहाँ – कि घर में भोजन बनाने के लिए अन्न का एक दाना नहीं है| आप कही से जाकर धन ले आइए तब वह बोला – मैं धन कहाँ से लेकर लाऊ? उसकी पत्नी बोली – पास के नगर में एक सेठ रहता हे जो पुण्य खरीदता है आप उसी के पास जाकर अपने पुण्य बेच दो|
ब्राह्मण का मन नहीं था तब भी उसकी पत्नी के हठ के कारण उसे उस सेठ के पास जाना पड़ा ,जब यह सेठ के पास जा रहा था तो उसकी पत्नी ने उसे चार रोटी बनाकर दी और कहा – जब आपको भूख लग तो उसे रस्ते में खा लेना|
ब्राह्मण, सेठ के नगर की ओर चल दिया| चलते-चलते उसे भूख लगी तो वह एक सरोवर के किनारे बैठकर रोटी खाने लगा| जैसे ही वह भोजन करना प्रारंभ करता है| उसके पास एक भिखारी आता है जो बहुत समय से भूखा होता है| वह उस ब्राह्मण से कहता है मुझे थोड़ा सा भोजन दे दो ,तब ब्राह्मण चार रोटी में से दो रोटी उठाकर उस भिखारी को दे देता है| वह भिखारी इतना भूखा था कि दो रोटी जल्दी-जल्दी खा लेता है और फिर से उस ब्राह्मण से भोजन मांगने लगता है तो ब्राह्मण बची हुई दो रोटी भी उस भिखारी को दे देता है|
वह भिखारी भोजन करके वह से चला जाता है और वह ब्राह्मण केवल सरोवर से पानी पीकर ही अपनी भूख को शांत कर लेता है| फिर वह वहाँ से चलकर सेठ के नगर में पहुँच जाता है| सेठ के पास जाकर वह कहता है मैं यहाँ अपने पुण्य बेचने आया हूँ| तब सेठ कहता है आप दोपहर में आना|
सेठ अपनी पत्नी के पास जाकर कहता है आज एक ब्राह्मण अपना पुण्य बचने आया है| उसके सभी पुण्यों में से कौन सा पुण्य सबसे बढ़कर है जिसे मुझे खरीदना चाहिए| उसकी पत्नी बहुत ही ज्ञानी और पतिव्रता थी उसने कहाँ – आज जो सरोवर के किनारे बैठकर उसने भूखे भिखारी को जो चार रोटी खिलाई है वह पुण्य उससे आपको खरीदना चाहिए क्योकि किसी भूखे को खाना खिलाने से ज्यादा पुण्य का काम कोई नहीं है जबकि वह ब्राह्मण स्वयं बहुत भूखा था लेकिन फिर भी उसने अपना भोजन बिना किसी स्वार्थ के उस भिखारी को दे दिया इसलिए उसका यह पुण्य सबसे बढ़कर है|
जब दोपहर के समय ब्राह्मण आया और सेठ ने बोला – सेठजी आप मेरा कौन सा पुण्य खरीदेंगे तो सेठ ने कहा – मैं आप से वह पुण्य खरीदना चाहता हूँ जो अपने उस भूखे भिखारी को सरोवर के किनारे चार रोटी खिलाकर कमाया है तो ब्राह्मण चकित हो गया और बोला – सेठजी यह सब आपको कैसे पता चला| तो सेठ ने कहा – यह सब मुझे मेरी पत्नी ने बताया है|
तो ब्राह्मण ने कहा- ठीक है आप मेरे इसी पुण्य को ले लीजिये ,लेकिन आप मुझे इसका कितना मूल्य देंगे? तो सेठ ने कहा – मैं तुम्हे उन चार रोटियों के वजन के बराबर सोना-चाँदी दूँगा| ब्राह्मण से कहा – ठीक है|
सेठ ने एक तराजू मंगवाया और उसके एक तरफ वैसी ही चार रोटी रखी जैसी ब्राह्मण से भिखारी को दी थी और दूसरी तरफ सोना-चाँदी रखा| सेठ ने देखा कि इतना सारा सोना-और चाँदी डालने पर भी रोटी का पलड़ा उठ ही नहीं रहा है| यह देखकर ब्राह्मण ने सोचा की मेरा यह पुण्य कितना प्रभावशाली है कि सेठ ने इतना सारा सोना-चाँदी चढ़ा दिया फिर भी रोटी का पलड़ा अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा है| तो ब्राह्मण ने सेठ से अपना पुण्य बेचने से मना कर दिया और वहां से अपने घर की ओर चल दिया|
जब ब्राह्मण जा रहा था तो उसने सोचा कि अगर में खाली हाथ घर जाऊँगा तो मेरी पत्नी गुस्सा हो जाएगी इसलिए उस ब्राह्मण से उसी सरोवर के पास रुककर उसके किनारे पर से कुछ चमकदार से पत्थर एक थैले में डाल लिए और घर जाकर उस थैले को एक खुटी से लटका दिया और बाहर चला गया|
जब उसकी पत्नी ने देखा कि उसके स्वामी घर आ गए है और थैले में कुछ लेकर आये है तो उसने उस थैले को खोलकर देखा| उसने देखा कि थैले के अंदर बहुत से रत्न और सोना-चाँदी था जिसे देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई| जब ब्राह्मण घर आया तो उसने इसके बारे में उसे बताया कि आप यह थैले में इतने सारे रत्न लेकर आये हो तभी मुझे देखने से मना कर रहे थे|
पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण हैरान हो गया और सोचने लगा कि मैं तो उसके अंदर साधारण से पत्थर लेकर आया था| वह रत्न में कैसे परिवर्तित हो गए| ब्राह्मण सोच ही रहा था कि इतने में उसकी पत्नी से वह थैली उसके सामने आकर रख दी जो सोना-चाँदी व रत्नो से भरी थी|
तब ब्राह्मण समझ गया कि यह मेरे उसी पुण्य का प्रभाव है जो उसने उस भूखे भिखारी को खाना खिलाकर कमाया था| तब उसने अपनी पत्नी को वह सारी घटना बताई जो उसके साथ घटित हुई थी | जिसे सुनकर पत्नी बहुत प्रसन्न हुई और वे पति-पत्नी प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवनयापन करने लगे|
शिक्षा – जो व्यक्ति अभावग्रस्त लोगों को दान देता है तो उसे उस दान का फल अनंतगुना होकर वापस मिलता है| इसलिए हमेशा गरीब, दुखी और अनाथ व्यक्तियों को दान देना चाहिए क्योकि यह सबसे उत्तम दान कहलाता है |
कहानी सार – जिस मनुष्य के पास जिस वस्तु का अभाव हो उस मनुष्य को वह वस्तु बिना किसी कामना के दे देना उत्तम दान होता है|
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सम्बंधित आपके प्रश्न –
सबसे उत्तम दान क्या है?
भूखे को भोजन दान देना उत्तम माना गया है। लेकिन सबसे बड़ा दान विद्या दान है। जिसे श्रीमद भगवदगीता में ज्ञानयज्ञ बताया गया है।
कौन सा दान महादान होता है?
विवाह संस्कार कन्या दान को महादान कहा जाता है।
किस प्रकार का दान उत्तम है और कौन सा नहीं?
भूखे को भोजन दान देना उत्तम दान माना गया है। लेकिन वह भोजन दान न करे जो स्वयं के खाने योग्य न हो।
दान कितने प्रकार के होते हैं?
दान नौ प्रकार का होता है। जीवनदान, कन्यादान, भूदान, गोदान औषधिदान, ज्ञान या शास्त्रदान, अभय या क्षमादान, आहारदान, द्रव्य /धन या अर्थदान
गीता के अनुसार दान कितने प्रकार का है?
गीता के अनुसार दान तीन प्रकार का होता है सतोगुणी, रजोगुणी, और तमोगुणी ।
अपनी कमाई का कितना हिस्सा दान करना चाहिए?
अपनी कमाई का 10 फीसदी हिस्सा दान में जरूर दें। लेकिन जिसको जरुरत हो उसको।
मरते समय क्या दान करना चाहिए?
मरने वाले व्यक्ति के हाथ से गाय दान करने को उत्तम माना गया है।
सर्वोत्तम दान क्या है?
सबसे बड़ा दान विद्यादान है।
दान और दक्षिणा में क्या अंतर है?
दान का अर्थ बिना स्वार्थ को साधे की गयी सहायता या देने वाली वस्तु है। जो किसी भी जरूरतमंद को दे सकते है।
तो वही दक्षिणा अपने ब्राह्मण या वेदज्ञ ब्राह्मण को किसी कर्म, पूजा,विधान और जप आदि के बदले में दिया जाता है।