Blog – आजकल सनातन धर्म के शत्रु, भक्त और भक्ति शब्द को निन्दित बनाने का प्रयत्न कर रहे है, तो यहाँ मैं अपने भावानुसार भक्ति को परिभाषित करने का प्रयास करता हूँ, हालाँकि भक्ति शब्द की इतनी बड़ी महिमा है कि उसको बड़े-बड़े परिभाषित करने में असमर्थ है, तो मेरी औकात ही क्या है। जो कुछ भी लिखूंगा, उसमे कुछ भी सकारात्मक है वह सब मेरे सद्गुरु श्रीरामदास जी की कृपा है।
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भक्ति क्या है?
भक्ति, सत्य प्रेम की उच्चतम सीमा है। अर्थात जब आप किसी विषय, वस्तु या जीव से निस्वार्थ भाव से प्रेम करते है, तब आप भक्ति की सीमा में प्रवेश करते है। चूँकि भक्ति समुद्र के समान अथाह है। आप जैसे ही निश्वार्थ भाव से किसी से प्रेम करना शुरू करते है, वैसे ही आप भक्ति रूपी के तट पर पहुंच जाते है, जहाँ भक्ति की लहरें बार बार आपको स्पर्श करती है। फिर आप निस्वार्थ भाव से उसी प्रेम का सहारा लेकर अपने प्रभु का स्मरण करना शुरू करते है, ठीक उसी पल प्रभु भी आपका स्मरण करना शुरू देते है। क्योंकि तत्वं असि।
उदाहरण के लिए –
जब आप नाम जप शुरू करते है तो कभी कभी घर परिवार में फंसकर नामजप करना भूल जाते है। तो स्वतः ही आभास होने लगता है कि प्रभु आपको याद कर रहे है, और आप अपने आप नाम जप करना शुरू कर देते है।
नोट – बिना ज्ञान निश्वार्थ भाव से प्रेम करना बहुत ही मुश्किल है, जो असंभव सा है। क्युकी जब आप जिसको जानते ही नहीं है, तब तक उससे प्रेम कैसे कर सकते है? खुद ज्ञान प्राप्त करने में अधिक समय लगता है, इसलिए गुरु के ज्ञान का अर्थात गुरु के अनुभव का सहारा लेना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन गुरु प्रतीक्षा न करे, एक एक करके शास्त्रों को पढ़ना और सुनना शुरू करे, इसके लिए शास्त्रों को ही गुरु रूप में मानकर उनसे प्रार्थना करे। जैसे ही आप पात्र बनेगे, भगवान् स्वयं गुरु के रूप में प्रकट हो जायेगे, क्युकी उन्हें आपकी चिंता आपसे ज्यादा है। क्योंकि तत्वं असि।
भक्ति का प्रमाण –
शास्त्रों का अगर आपने अध्ययन किया है तो आपको पता चलेगा कि कई बार भगवान् स्वयं बताते है कि मैं अपने भक्तों का दास हूँ। मनुष्यों के लिए इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है।
भक्ति को स्वयं अनुभव करे? –
इस सत्य को हमेशा धारण करके उनका नाम जप करें, फिर कुछ महीनो में उस परिणाम को स्वयं अनुभव करे। आप निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से अपने भगवान् के भक्त बने, परिवार का भक्त बने, अपने मित्रो और गुरुओं का भक्त बने फिर देखे वे सब आपके वश में होंगे क्युकी उन सबके अंदर का ब्रह्म आपको एक अलग रूप में देखेंगे। स्वयं करके देखे। क्योंकि तत्वं असि।
ध्यान रखे –
1. उन भक्तों का जो शास्त्रों का अध्ययन करके उस पर चिंतन और मनन करते है, फिर उस चिंतन और मनन जो प्रेम उत्पन्न होता है, उस प्रेम के वश भगवान् भी होते है।
2. यह भी ध्यान रखे कि भगवान् से आपका छल कपट नहीं चलेगा जैसे कि –
घी लेते समय दुकान पर बोलते है कि पूजा वाला घी दे दो। कोई भी सस्ता चलेगा, भगवान् कौन सा खाने आ रहे। उन्हें क्या आवश्यकता। और हमारे ऐसे छल और कपटी स्वाभाव के कारण आजकल हमे बाजार में सबसे सस्ता देसी घी, पूजा वाला ही मिलता है।
भक्त और भक्ति शब्द को निन्दित बनाने का प्रयास –
यह कलयुग का प्रथम चरण है, और प्रथम चरण में भी भक्त और भक्ति शब्द को निन्दित बनाने का प्रयास शुरू हो चुका है। आजकल बहुत सारे राजनीतिक दल अंधभक्त अर्थात बिना ज्ञान वाला भक्त कहकर सनातनी लोगो की उस डोर से काट रहे जिससे एक मनुष्य और भगवान् एक दूसरे से जुड़े है।
लेकिन स्वयं सनातनी भी दूसरे सनातनी को अंधभक्त बोलते है?
जो ऐसा करते है, या उनको वोट देते अर्थात समर्थन करते है, यह उनका दुर्भाग्य है कि उनके पित्तर भी उनका धर्म परिवर्तन करवाना चाहते है, ताकि जिन्हे श्राध्द के माध्यम से भोग प्रसाद नहीं मिलता तो कम से कम नकारात्मक ऊर्जा ही बन जाए। अर्थात इस प्रकार इस कलयुग में आध्यात्मिक और भौतिक रूप से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ रही है।
कैसे बचे?
निस्वार्थ भाव से शास्त्रों का अध्ययन करके उस पर चिंतन और मनन करते रहे है, फिर उस चिंतन और मनन जो प्रेम उत्पन्न होता है, उस प्रेम को बांटे भगवान के साथ, अपने पित्तरों के साथ, अपने परिवारजनो के साथ, संतो के साथ। तब आप भक्त है, अंधभक्त नहीं। और यही सच्ची भक्ति है फिर आप हर किसी में उस ब्रह्म को अनुभव करेंगे। क्युकी ज्ञान ही माया है। आप देने वाले बने, लेने वाले नहीं।
बाकि का आगे क्या करना है, कैसे करना है, ये आपके ह्रदय कमल में बसने वाले भगवान स्वयं बताते जायेगे, क्युकी उन्हें आपकी चिंता आपसे ज्यादा है। आप उनकी ओर एक कदम बढ़ाएंगे वो दौड़कर गले लगा लेंगे, जैसे-जैसे आप पात्र बनते जायेगे, ज्ञानरूपी अमृत उस पात्र में भरता जायेगा। फिर आपको ह्रदय को कमल क्यों कहते है, यह भी ज्ञान हो जायेगा।
हम यह अच्छी तरह से जानते है कि एक कुपात्र को तो एक गुरु भी ज्ञान नहीं देता। क्युकी कुपात्र उस ज्ञान से खेल खेल में अपना और अपनी पीढ़ी का ही नाश ही कर डालता है।
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नोट – यह जानकारी स्वयं के भाव से है, इसका किसी राजनितिक दल, जाति, और धर्म से सम्बंधित नहीं है। अगर न समझ में आये तो कई-कई बार पढ़े फिर चिंतन और मनन करे। अवश्य सत्य आत्मा को कुछ न कुछ पकड़ में आएगा। स्वयं अनुभव करके देखे।