पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए।

हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि –

  1. सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है?
  2. फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है?
  3. और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए
  4. संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए?
  5. फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान्‌ पुण्य कौन सा है?
  6. और सबसे महा भयंकर पाप कौन है?
  7. फिर मानस रोगों को समझाकर कहिए। आप सर्वज्ञ हैं और मुझ पर आपकी कृपा भी बहुत है।

फिर

सबसे बड़ा दुःख कौन है? और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए।

काकभुशुण्डिजी ने कहा – हे तात अत्यंत आदर और प्रेम के साथ सुनिए। मैं यह नीति संक्षेप से कहता हूँ। –

जगत्‌ में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा संतों के मिलने के समान जगत्‌ में सुख नहीं है।

और हे पक्षीराज! मन, वचन और शरीर से परोपकार करना, यह संतों का सहज स्वभाव है।

नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥