लंका से लौटते समय श्रीराम ने विमान-पर बैठी हुई सीता के कहने से उनके वाक्य का आदर करते हुए प्रसन्न होकर त्रिजटा कों वरदान दिया ।
पहले उसको वस्त्र-अलंकार आदि से संतुष्ट करके कहा –
हे त्रिजटे ! तुम मेरी मृदुलमयी वाणी सुनो।
कार्तिक, वैशाख, माघ और चैत्र इन चार महीनों में पहले के तीन दिन सभी नरश्रे्ठ तुमको प्रसन्न करने के लिए हो स्नान करेंगे। इससे तुम कृतकृत्य हो जाओगी।
जो मनुष्य इन चार महीनों में पूर्णिमा से लेकर तीन दिन तक स्नान न करे, उसका सारे महीने का किया हुआ पुण्य मेरे कहने से तुम वरण कर लेना,
और यह भी वर देता हूँ कि अपवित्र स्थान में विधिपूर्वक किये हुए श्राद्ध तथा हवन आदि भी यदि क्रोध से किये गये हों, तो वे भी तुम्हारे हो होंगे।
और भी सुनो, बिना तेल के पाँव धोने तथा बिना तिल के तर्पण करके वे पुण्य भी तुम्हारे होंगे।
हे त्रिजटे! दक्षिणा से शून्य सब श्राद्ध भी तुम्ही को प्राप्त होंगे।
इस तरह बहुतेरे वर देकर राम त्रिजटा, सरमा, विभीषण, सुग्रीव, मकर्धव्ज, , तथा वानरों के साथ आकाश मार्ग से सीता को मार्ग के कौतुक दिखाते हुए चल पड़े।
स्रोत – आनंद रामायण, पेज 135-136, सारकांड सर्ग – 12
सौजन्य से – श्री गीता प्रेस गोरखपुर