एकादशी को एक शुभ दिन माना जाता है जब भगवान विष्णु की बहुत श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। अन्य क्षेत्रों में इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी और देवउठनी एकादशी (Devutthana Ekadashi) के नाम से जाना जाता है।

तो आज हम, स्वयं भगवान् श्री कृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर को बताई गयी गुरुवयूर एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के बारे में जानते है, जिसका वर्णन पद्मपुराण के उत्तरखंड में मिलता है, जिसे आप गीता प्रेस की संक्षिप्त पद्मपुराण के पेज नंबर ६७४ पर स्वयं पढ़ सकते है।

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य –

युदिष्ठिर ने पूछा – श्रीकृष्ण ! मैंने आपके मुख से रमा एकादशी का यथार्थ माहात्म्य सुना। मानद ! अब कार्तिक शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है; उस (Dev Uthani Ekadashi) की महिमा बताइये ।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले – राजन्‌ ! कार्तिक के शुक्रपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका जैसा वर्णन लोकसृष्टा ब्रह्माजी ने नारदजी से किया था; वहीं मैं तुम्हें बताता हूँ। –

नारदजी ने कहा – पिताजी ! जिसमें धर्म-कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले भगवान्‌ गोविन्द जागते हैं, उस प्रबोधिनी’ एकादशी का महात्मय बतलाइये ।

ब्रह्माजी बोले – मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धि वाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से लेकर सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, वे सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जब तक कि कार्तिक मास में भगवान्‌ विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती | प्रबोधिनी एकादशी को एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञ का फल पा लेता है।

बेटा ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असम्भव है तथा जिसे त्रिलोकी में किसी ने भी नहीं देखा है; ऐसी वस्तु के लिये भी याचना करने पर ‘प्रबोधिनी ‘ एकादशी उसे देती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को हरिबोधिनी’ एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरुपर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास से भस्म कर देती है। पहले के हजारों जन्मों में जो पाप किये गये हैं, उन्हें ‘प्रबोधिनी ‘ की रात्रि का जागरण रूई की ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग “प्रबोधिनी’ एकादशी का मन से ध्यान करते तथा जो इसके व्रत का अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुःखों से छुटकारा पाकर भगवान्‌ विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं।

ब्रह्मन ! अश्वमेध आदि यज्ञ से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह ‘प्रबोधिनी’ एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। सम्पूर्ण तीर्थो में नहाकर सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्री हरि के निमित्त जागरण कर लेने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिए मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-सम्पत्तिमात्र भी क्षण भंगुर है; ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिये। तीनों लोको में जो कोई भी तीर्थ संभव हैं, वे सब ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के घर में मौजूद रहते हैं। कार्तिक की ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करने वाली है। जो ‘प्रवोधिनी को उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जित्तेन्द्रिय है तथा उसी को भोग और मोक्ष की
प्राप्ति होती है।

बेटा ! ‘प्रबोधिनी’ एकादशी को भगवान्‌ विष्णु के उद्देश्य से मानव जो स्नान, दान, जप और होम करता है, यह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथि को उपवास करके भगवान्‌ माघव की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मो के पापों से छुटकारा पा जाते हैं।

इस व्रत के द्वारा देवेश्वर ! जनार्दन को सन्तुष्ट करके मनुष्य सम्पूर्ण दिशाओं को अपने तेज से प्रकाशित करता हुआ श्रीहरि के बैकुण्ठ धाम कों जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होने पर भगवान्‌ गोविन्द मनुष्यों के बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किये हुए सौ जन्मो के पापों कों, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः सर्वथा प्रयत्न करके सम्पूर्ण मनोवांछित फल को देने वाले देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिये।

बेटा नारद ! जो भगवान्‌ विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक मास में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चन्द्रायण व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चा से मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है, बह अपने सम्पूर्ण पापों को जला डालता और दस हजार यज्ञॉ का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने सुनने से भगवान्‌ मधुसूदन को जैसा सन्तोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान अथवा जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभकर्म-परायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान्‌ विष्णु की कथा पढ़ते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है।

महामुने ! कार्तिक में भगवान्‌ केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिये।

मुनिश्रेष्ठ ! जो कार्तिक में कल्याण-प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि की कथा का प्रबन्ध करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान्‌ विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। जो ‘प्रबोधिनी’ एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है ।

मुनिश्रेष्ठ ! जो भगवन विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा-वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है।

नारद ! जो मनुष्य कार्तिक मासमें भगवतसबंधी गीत और शास्त्रविनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है।

मुने ! जो पुण्यआत्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह तीनो लोको के ऊपर विराजमान होता है।

मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक की ‘प्रबोधिनी’ एकादशी के दिन बहुत से फल फूल, कपूर, अरगजा, और कुकुम्ब के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिये। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिये; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है। ‘प्रबोधिनी’ को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रोजनार्दन को अर्घ्य देना चाहिये।

सम्पूर्ण तीर्थो में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वही ‘प्रबोधिनो’ एकादशी कों अर्ध्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षि ! अर्घ्य के पश्चात्‌ भोजन-आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान्‌ विष्णु की प्रसन्नता के लिये गुरू की पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्धागवत की कथा सुनता अथबा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है।

मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णव व्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान्‌ गरुड़ध्बज एक हजार वर्ष तक अत्यन्त तृप्त रहते है।

देवर्षि ! जो अगस्त के फूल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शनमात्र से नरक कीआग बुझ जाती है।
वत्स ! जो कार्तिक में भगवान जनार्दन कों तुल्सी के पत्र और पुष्प अर्पण करते हैं, उनका जन्मभर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है।

मुने ! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्त्र युगो तक पुण्य का विस्तार करते हैं।

नारद ! सब प्रकार के फूलो और पत्तों कों चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिक मास में तुलसी के एक पत्ते से मिल जाता है ।

कार्तिक आया देख प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिये। सौ यज्ञों द्वारा देवताओ का यजन करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, यह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशब की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।

श्रीकृष्ण कहते हैं – जैसी कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की रमा एकादशी है, वैसी ही कार्तिक मास के शुक्लपक्ष हरिबोधिनी या देव प्रबोधिनी की भी है; उनमें भेद नहीं करना चाहिये। जैसे सफेद रंग की गाय हो या काले रंग की, दोनों का दूध एक-सा ही होता है, इसी प्रकार दोनों पक्षों की एकादशियां समान फल देने वाली हैं। जो मनुष्य एकादशी व्रतों का माहात्म्य सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्री विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।

स्रोत – पद्मपुराण के उत्तरखंड में से।

सौजन्य – श्री गीताप्रेस हरिद्वार


 

FAQs –

देवउठनी एकादशी का दूसरा नाम क्या है?

इस तिथि को कई नामों से जानते हैं जैसे कि गुरुवयूर एकादशी, देवउठनी एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, देव-प्रबोधिनी एकादशी, हरिबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी ।

देवउठनी एकादशी का त्यौहार कब मनाया जाता है?

कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है।

देव प्रबोधिनी एकादशी का क्या महत्व है?

उसे आप ऊपर प्रबोधिनी एकादशी का महात्म्य पढ़ सकते है।

हरिबोधिनी एकादशी में क्या करें?

व्रत, पूजा करने के पश्चात श्रीमदभागवत महापुराण, श्रीमदपद्मपुराण और श्रीमदविष्णुपुराण अर्थात भगवान् विष्णु से सम्बंधित पुराणों को पढ़ सकते है, ताकि वे आपके भाव में प्रकट हो सके। अगर प्रकट हो जाए तो उनसे प्रार्थना करे कि वे हमेशा के लिए आपके भाव में वास करे। इसके लिए वे ही भाव को शुध्द करे, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।

साथ ही साथ भगवान नारायण के महामंत्र (ॐ नमो नारायणाय ) की कम से कम एक माला जप अवश्य करे।

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