{द्वारका में एक बार भगवान् श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा को बहुत से प्रश्नो के उत्तर देते है, उसी समय किसी प्रश्न के उत्तर देते समय भगवान् श्री कृष्ण ने महादेव के द्वारा कार्तिकेय को बताई गयी जानकरी को नीचे बताया है। }

महादेव जी अपने प्रिय पुत्र कार्तिकेय से कहते है कि – कार्तिकेय ! अब कार्तिक में दिये जाने वाले दीपदान का माहात्म्य सुनो ।

मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्री केशव को संतुष्ट कर सके।
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स्कन्द ! कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेध यज्ञ से क्या लेना है। जिसने कार्तिक में भगवान्‌ केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थो् में गोता लगा लिया।

बेटा ! विशेषतः कृष्णपक्ष में पाँच दिन बड़े पवित्र हैं। –

  1. कार्तिक कृष्णपक्ष 13 (त्रयोदशी अर्थात धनतेरस)
  2. कार्तिक कृष्णपक्ष 14 (चतुर्दर्शी अर्थात नरक चतुर्दशी)
  3. कार्तिक कृष्णपक्ष 15 (अमावस्या अर्थात दीपावली)
  4. कार्तिक शुक्लपक्ष 1 (प्रतिपदा)
  5. कार्तिक शुक्लपक्ष 2 (द्वितीया अर्थात भाईदूज)

इनमे जो कुछ भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय एवं सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। लीलावती वेश्या दूसरे के रखे हुए दीप को ही जलाकर शुद्ध हो अक्षय स्वर्ग को चली गयी। इसलिये रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में, गोशाला में, देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिये। देवताओं के मन्दिरों में, शमशानों में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिये घृत आदि से पाँच दिनों तक दीपक जलाने चाहिये । ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार धनतेरस –

भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं – भामिनि ! कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिये दीप देना चाहिये। इससे दुर्मुत्यु का नाश होता है। दीप देते समय इस प्रकार कहना चाहिये –

मृत्यु, पाशधारी काल और अपनी पत्नी के साथ सूर्यनन्दन यमराज त्रयोदशीको दीप देने से प्रसन्न हों।

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार नरक चतुर्दशी –

कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को चन्द्रोदय के समय नरक से डरने वाले मनुष्यों को अवश्य स्नान करना चाहिये। जो चतुर्दशी को प्रातःकाल स्नान करता है, उसे यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता । अपामार्ग (ओंगा या चिचड़ा), तुम्बी (लौकी), प्रपुन्नाट (चकवड़) और कट्फल (कायफल) इनको स्नान के बीच में मस्तक पर घुमाना चाहिये | इससे नरक के भय का नाश होता है। उस समय इस प्रकार प्रार्थना करे –
‘हे अपामार्ग ! मैं हराई के ढेले, काँटे और पत्तों सहित तुम्हें बार-बार मस्तक पर घुमा रहा हूँ। मेरे पाप हर लो।

यों कहकर अपामार्ग और चकवड़ को मस्तक पर घुमाये। तत्पश्चात्‌ यमराज के नामों का उच्चारण करके तर्पण करे।

वे नाम-मन्त्र इस प्रकार हैं –

यमाय नमः
धर्मराजाय नमः
मृत्यवे नमः
अन्तकाय नमः
वैवस्वताय नमः
कालाय नमः
सर्वभूतक्षयाय नमः
औदुम्बराय नमः
दक्षाय नमः
नीलाय नमः
परमेष्ठिने नमः
वृकोदराय नमः
चित्राय नमः
चित्रगुप्ताय नमः ।

देवताओं का पूजन करके दीपदान करना चाहिये। इसके बाद रात्रि के आरम्भ में भिन्न-भिन्न स्थानों पर मनोहर , दीप देने चाहिये। ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि के मन्दिरों में, गुप्त गृहों में, देववृक्षों के नीचे, सभा भवन में, नदियों के किनारे, चहार दीवारी पर, बगीचे में, बावली के तट पर, गली-कूचों में, गृहोद्यान में तथा एकान्त अश्वशालाओं एवं गजशालाओं में भी दीप जलाने चाहिये।

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार दीपावली –

इस प्रकार रात व्यतीत होने पर अमावास्या को प्रातःकाल स्नान करे और भक्ति-पूर्वक देवताओं तथा पितरों का पूजन और उन्हें प्रणाम करके पार्वण श्राद्ध करे; फिर दही, दूध, घी आदि नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों-द्वारा ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे क्षमा-प्रार्थना करे। तदनन्तर भगवान के जागने से पहले स्त्रियों के द्वारा लक्ष्मीजी को जगाये। जो प्रबोधकाल (न्राह्ममुहूर्त) में लक्ष्मीजी को जगाकर उनका पूजन करता है, उसे धन-सम्पत्ति की कमी नहीं होती।

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार गोवर्धन पूजा –

तत्पश्चात्‌ प्रातःकाल (कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को) गोवर्धन का पूजन करनाचाहिये। उस समय गौओं तथा बैलों को आभूषणों से सजाना चाहिये। उस दिन उनसे सवारी का काम नहीं लेना चाहिये तथा गायों को दुहना भी नहीं चाहिये। पूजन के पश्चात‌ गोवर्धन से इस प्रकार प्रार्थना करें –

गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ॥
विष्णुबाहु कृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव ।

या लक्ष्मीरलोकपालानां थेनुरूपेण संस्थिता ॥
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।

अग्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः ।
गावो मे हृदये सन्तु गयां मध्ये वसाम्यहम्‌॥

“पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन! आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं पर उठाया था। आप मुझे कोटि-कोटि गौएँ प्रदान करें। लोकपालों की जो लक्ष्मी धेनुरूप में स्थित हैं और यज्ञ के लिये घृत प्रदान करती है, वह मेरे पाप को दूर करे। मेरे आगे गौएँ रहें, मेरे पीछे भी गौएँ रहें, मेरे हृदय में गौओं का निवास हो तथा मैं भी गौं के बीच में निवास करूँ।’

ये पढ़ेगोवर्धन से ही सम्बन्ध है छप्पन भोग का

श्रीमदपद्मपुराण के अनुसार भाई दूज –

कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करे। यमुना में स्नान करके मनुष्य यमलोक को नहीं देखता। कार्तिक शुक्ला द्वितीया को पूर्वकाल में यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कार-पूर्वक भोजन कराया था।

उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बन्धनों से छुटकारा पा गये और सब-के-सब यहाँ अपनी इच्छा के अनुसार संतोषपूर्वक रहे । उन सब ने मिलकर एक महान्‌ उत्सव मनाया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुँचाने-वाला था। इसीलिये यह तिथि तीनों लोकों में यमद्धितीया के नाम से विख्यात हुई; अतः विद्वान‌ पुरुषों को उस दिन अपने घर भोजन नहीं करना चाहिये।

वे बहिन के घर जाकर उसी के हाथ से मिले हुए अन्न को, जो पुष्टि वर्धक है, स्रेहपूर्वक भोजन करें तथा जितनी बहिनें हों, उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधि पूर्वक सुवर्ण, आभूषण एवं वस्त्र दें।

सगी बहिन के हाथ का अन्न भोजन करना उत्तम माना गया है । उसके अभाव में किसी भी बहिन के हाथ का अन्न भोजन करना चाहिये। वह बल को बढ़ाने वाला है ।

जो लोग उस दिन सुवासिनी बहिनों को वस्त्र-दान आदि से सन्तुष्ट करते हैं, उन्हें एक साल तक कलह एवं शत्रु के भय का सामना नहीं करना पड़ता ।

यह प्रसंग, धन, यश, आयु, धर्म, काम एवं अर्थ की सिद्धि करने वाला है ।


स्रोत – संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तरखंड
विषय – भगवतपूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा, यम द्वितीया, के दिन करने योग्य कृत्यों का वर्णन।
पेज संख्या – 780
दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्राप्त पुस्तक के माध्यम से।


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