जो निर्विकार होते हुए भी अपनी माया से विराट् विश्व का आकार धारण कर लेते हैं, स्वर्ग तथा अपवर्ग जिनके कृपा कटाक्ष के वैभव बताये जाते हैं, तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदय के भीतर आत्म ज्ञानानन्द-स्वरूप में देखते हैं, उन तेजोमय भगवान् शंकर को, जिनका आधा शरीर शैलराज कुमारी पार्वती से सुशोभित है, निरन्तर मेरा नमस्कार है॥
जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकान की छटा से अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है, जो चन्द्रमा की कला से परम उज्वल है, जो तीनों भीषण तापों को शान्त कर देने में समर्थ है, जिसका स्वरूप सच्चिदानंदमय एवं परमानन्दरूप से प्रकाशित होता है तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वती के भुजपाश से आवेष्टित है, वह (शिव नामक) अनिर्वचनीय तेज:पुंज सबका मंगल करे॥
स्तुति स्रोत – श्री शिव महापुराण – चतुर्थी कोटि रूद्रसंहिता – अथ प्रथमोध्याय, द्वादस ज्योतिर्लिंगों एवं उनके उपलिंगो के माहात्म्य का वर्णन
अब श्री शिव महापुराण में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के माहात्म्य का वर्णन –
सभी ऋषिगणों के द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग के माहात्म्य के बारे में पूछने पर श्री सूतजी बोले –
- सौराष्ट्र में सोमनाथ, (श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग)
- श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, (श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग)
- उज्जयिनी में महाकाल, (श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग)
- ॐकार क्षेत्र में परमेश्वर, (श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग)
- हिमालय पर केदार, (श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग)
- डाकिनी में भीमशंकर, (श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग)
- वाराणसीमें विश्वेश्वर, (श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग)
- गौतमी नदी के तट पर त्यम्बकेश्वर, (श्री त्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग)
- चिताभूमि में वैद्यनाथ, (श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग)
- दारुकवन में नागेश, (श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग )
- सेतुबन्ध में रामेश्वर (श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग)
- तथा शिवालय में घुश्मेश्वर [नामक ज्योतिर्लिंग] हैं। (श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग)
जो [प्रतिदिन ] प्रातःकाल उठकर इन बारह नामों का पाठ करता है, उसके सभी प्रकार के पाप छूट जाते हैं और उसको सम्पूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त हो जाता है।
हे मुनीश्वरो! उत्तम पुरुष जिस-जिस मनोरथ की अपेक्षा करके इनका पाठ करेंगे, वे उस-उस मनोकामना को इस लोक में तथा परलोक में प्राप्त करेंगे, और जो शुद्ध अन्तःकरण वाले पुरुष निष्काम भाव से इनका पाठ करेंगे, वे [पुनः] माता के गर्भ में निवास नहीं करेंगे।
इस लोक में इन लिंगों का पूजन करने से [ ब्राह्मण आदि] सभी वर्णों *** का दुःख नष्ट हो जाता है और परलोक में निश्चित रूप से उनकी मुक्ति भी हो जाती है। इन लिंगों पर चढ़ाया गया प्रसाद सर्वथा ग्रहण करने योग्य होता है; उसे [ श्रद्धासे)] विशेष यत्न से ग्रहण करना चाहिये। ऐसा करने वाले के समस्त पाप उसी क्षण विनष्ट हो जाते हैं।
हे द्विजो! इन ज्योतिर्लिग का विशेष फल कहने में ब्रह्म आदि भी समर्थ नहीं हैं, फिर दूसरों की बात ही क्या? जिसने किसी एक लिंग का भी छः मास तक यदि निरन्तर पूजन कर लिया, उसे पुनर्जन्म का दुःख नहीं उठाना पड़ता है।
नीच कुल में उत्पन्न हुआ पुरुष भी यदि किसी ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, तो उसका जन्म पुनः निर्मल एवं उत्तम कुल में होता है। वह उत्तम कुल में जन्म प्राप्त कर धन से सम्पन्न एवं वेद का पारगामी विद्वान् होता है। उसके बाद [वेदोचित] शुभ कर्म करके वह स्थिर रहने वाली मुक्ति प्राप्त करता है।
हे मुनीश्वरो! म्लेच्छ***, अन्त्यज अथवा नपुंसक कोई भी हो-वह [ज्योतिर्लिंग के दर्शन के प्रभाव से] द्विजकुल में जन्म लेकर मुक्त हो जाता है, इसलिये ज्योतिर्लिंग का दर्शन [अवश्य] करना चाहिये।
आगे – इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के उपलिंगो का वर्णन
स्रोत – श्रीशिवमहापुराण – चतुर्थी कोटि रूद्रसंहिता – अथ प्रथमोध्याय, द्वादस ज्योतिर्लिंगों एवं उनके उपलिंगो के माहात्म्य का वर्णन
दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस गोरखपुर, पेज संख्या 201-202
मेरे मनोभाव –
- सभी वर्णों *** – श्री शिव महापुराण में सभी वर्णो को ज्योतिर्लिंग की पूजा को बताया गया है, अर्थात शूद्र वर्ण को मलेच्छियों और नीच लोगो ने भ्रमित करने का कार्य किया है ताकि शूद्र अपनी पीढ़ी को मुक्ति न दिला सके, और वे उनकी ऊर्जा (आत्मा) को ग्रास बना सके, या बंधक बना सके।
- म्लेच्छ*** – जबकि म्लेच्छ, अन्त्यज अथवा नपुंसक कोई भी हो-वह [ज्योतिर्लिंग के दर्शन के प्रभाव से] द्विजकुल में जन्म लेकर मुक्त हो जाता है।