भाव,” “अभाव,” “प्रभाव,” “दुर्भाव,” “समभाव,” “दुष्प्रभाव,” “भेदभाव,” और “कुप्रभाव” हिन्दी शब्द हैं जिनका अर्थ निम्नलिखित है –

भाव (expressions) –

किसी मनुष्य का किसी अन्य के प्रति सकारात्मक सोच, या विचार या भावना का होना ही भाव है। अर्थात सकारात्मक भावना का होना ही भाव है।

उदाहरण – जब कोई व्यक्ति भगवान् या किसी व्यक्ति के प्रति सकारात्मक भाव से अपने मस्तिष्क में सोचता या रखता है तो वह अपने मानवीय गुण को प्रदर्शित करता है।

ऐसा व्यक्ति सकारात्मक व्यक्ति या शक्ति के प्रेम के कारण हमेशा प्रसन्नचित्त भाव से समभाव को प्राप्त होता है।

समभाव (equanimity) –

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जीव या शक्ति के लिए समान विचार रखता है, अर्थात समान भाव रखता है, कोई अंतर नहीं करता है, इसे समभाव कहते है।

जैसे – शास्त्रों में ईश्वर को समभाव से परिपूर्ण बताया गया है अर्थात वे प्रत्येक जीव मात्र के प्रति समभाव रखते है, चाहे वे मनुष्य, पशु, देव, राक्षस, सर्प या कोई भी अन्य जीव या जाति हो। उनके कर्मो के अनुसार उन्हें ज्ञान व वरदान देते है।

यह शब्द न्याय, समानता, न्यायसंगतता, या समान दृष्टिकोण को दर्शाता है। इससे समानता या न्याय की भावना को व्यक्त किया जा सकता है।

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लेकिन अज्ञानतावश यहाँ से मानवता का पतन होना शुरू हो सकता है, जानिए कैसे

यदि यह व्यक्ति समभाव नहीं रखता या इसका वास्तविक ज्ञान नहीं होता है तो यह आगे चलकर सकारात्मकता के अभाव से ग्रस्त हो जाता है।

अभाव (Lack) –

किसी मनुष्य का किसी अन्य दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच, या विचार या भावना का न होना ही अभाव है। यह शब्द किसी चीज़ की अनुपस्थिति या अभाव को दर्शाता है।

उदाहरण – जब किसी व्यक्ति के पास भगवान् या किसी व्यक्ति के प्रति सकारात्मक विचार या सोच नहीं होती है तो वह अपने अमानवीय दुर्गुण को प्रदर्शित करता है।

और यह व्यक्ति अभाव का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण आगे चलकर अपनी अज्ञानतावश कुप्रभाव में आकर पहले भेदभाव, फिर दुर्भाव और अंत में दुष्प्रभाव का शिकार हो जाता है

प्रभाव (Effect) –

जो मनुष्य किसी के भी प्रति चाहे वो मनुष्य, जानवर अर्थात जीव या भगवान् हो उसके प्रति जैसा (सकारात्मक या नकारात्मक ) भाव रखता है तो वह सकारात्मक भाव के परिणामस्वरूप प्रेम के भाव में रहता है, इसे अनुभूति या अनुभव होना भी समझ सकते है।
अन्यथा नकारात्मकता के कारण प्रभाव में रहता है। अर्थात नकारात्मकता या संदेह के विचार से घिरने को ही प्रभाव कहते है।

दूसरे शब्दों में –

यह प्रभाव शब्द किसी सकारात्मक या नकारात्मक भाव का प्रभाव या परिणाम दर्शाता है। इससे किसी कार्य का परिणाम, उसका प्रभाव या असर समझा जा सकता है।

जब कोई मनुष्य किसी के नकारात्मकता या संदेह के प्रभाव में आता है तो नीचे दिए गए दुर्गुण उसे क्रमश घेरने लगते है और उसका मानवता से पतन करते है।

और यह व्यक्ति आगे चलकर कुप्रभाव में आकर पहले भेदभाव, फिर दुर्भाव और अंत में दुष्प्रभाव का शिकार हो जाता है

कुप्रभाव (Side Effects) –

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जीव या शक्ति के प्रति अज्ञानता होती है तो ऐसे व्यक्ति की बुद्धि पर भ्रम का कुप्रभाव अतिशीघ्र होता है।

अर्थात

यह शब्द किसी चीज़ की बुरी या अनुकूल असर को दर्शाता है। इससे किसी वस्तु या व्यक्ति के अनुकूल या बुरे प्रभाव का विवरण प्राप्त किया जा सकता है।

और यह व्यक्ति आगे चलकर पहले भेदभाव, फिर दुर्भाव और अंत में दुष्प्रभाव का शिकार हो जाता है

भेदभाव (Discrimination) –

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जीव या शक्ति के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव से कोई अंतर देखता है, उसमे ऊंच नीच की गणना करता है उसे भेदभाव कहते है। इसके परिणाम में उसे उस व्यक्ति, जीव या शक्ति से विछोह की प्राप्ति होती है।
और यह व्यक्ति आगे चलकर दुर्भाव और अंत में दुष्प्रभाव का शिकार हो जाता है

दुर्भाव (Malice) –

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जीव या शक्ति से कोई बैर भाव या नकारात्मक भाव रखता है उसे दुर्भाव कहते है।
जैसे – सिर्फ अपनी ही शक्ति (धर्म ) का ही अस्तित्व बताना, और दूसरी शक्तियों के खिलाफ नकारात्मक भाव रखना, या अनदेखा करना, भ्रम या झूठ फैलाना ।

और यह व्यक्ति आगे चलकर दुष्प्रभाव का शिकार हो जाता है

दुष्प्रभाव (Evil Side Effects) –

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जीव या शक्ति के लिए नकारात्मक भाव रखकर अकर्म करता है तो उस अकर्म के परिणाम में उसकी आने वाली मनुष्य पीढ़ियों को दुष्प्रभाव ही मिलते है।

यह शब्द नकारात्मक प्रभाव, हानि, या बुरा प्रभाव को दर्शाता है। अर्थात दुष्टता से भरे भाव को दुष्प्रभाव कहते है। इसलिए राक्षसों जैसे कर्म करने वाले मनुष्यों की संगत करने से सिर्फ दुष्प्रभाव ही मिलते है।

और यह व्यक्ति आगे चलकर दुष्प्रभाव के कारण अपने कुल, वंश या वंशवेल (Sarname) का पतन कर बैठता है ।

स्वभाव (Temperament) –

ऊपर दिए गए गुणों और दुर्गणों के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव का निर्माण होता है। अर्थात व्यक्ति को अपने शास्त्रों का ज्ञान अति आवश्यक है। जो उसके स्वभाव का निर्माण करता है।

ये शब्द भावनात्मक और तात्त्विक अर्थों में उपयोग किए जाते हैं और विभिन्न परिस्थितियों और उसके परिणाम को व्यक्त करने में मदद करते हैं।

नोट – यह लेखक के स्वयं के भाव है। इन शब्दों का अंतर आपके भाव या विचार से कुछ और हो सकते है। यदि है तो कमेंट में अवश्य बताये।

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Last Update: अक्टूबर 31, 2023