भगवान की प्राप्ति के लिए गीता में बताए गए तीन रास्तों का मतलब है – कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग।

कर्म योग –

यह योग उस तरीके को बताता है जिसमें कर्म (कार्य) के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है। यहां मुख्य बात यह है कि हमें अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

कर्म के दो प्रमुख प्रकार हैं – निष्काम कर्म और सकाम कर्म।

निष्काम कर्म –

यह कर्म ऐसा होता है जिसमें कार्य करने वाला फल की चिंता नहीं करता है। व्यक्ति केवल कर्म करता है और फल को ईश्वर को समर्पित कर देता है। उसे फल की चिंता नहीं रहती क्योंकि उसे पता होता है कि फल उसके नियत कर्म से होगा और वह कर्म ईश्वर की भक्ति में किया गया है। निष्काम कर्म मुक्ति की ओर ले जाने में सहायक होता है। इसमें इसमें मनुष्य कर्म फल और आसक्ति(लगाव) का त्याग कर जीवन मुक्त अवस्था का अनुभव करता है. निष्काम कर्म अधिक श्रेष्ठ होता है क्योंकि इससे कार्य करने वाले को बंधनों से मुक्ति मिलती है और वह अपने कर्मों का फल ईश्वर के लिए समर्पित करता है।

सकाम कर्म –

इसके विपरीत, सकाम कर्म वह कर्म है जिसमें कार्य करने वाला फल की चिंता करता है।अर्थात जो किसी उद्देश्य से किया जाता है, किसी लालसा से किया जाता है। कुछ पाने की इच्छा से किया जाता है। जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करना, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करना। सकाम कर्म में व्यक्ति अपने आपको फल की चिंता में उलझाता है, जो उसे बंधनों में फंसा सकता है।

ज्ञान योग –

यह योग ज्ञान की महत्ता पर जोर देता है। यहां ज्ञान की प्राप्ति द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह ज्ञान अनंतता, जीवन के असली स्वरूप, और ईश्वर के साथ हमारे संबंधों को समझने के लिए है। इसके लिए सबसे पहले पुराणों को सुने या पढ़े, फिर 108 उपनिषदों को पढ़े या सुने। अब आपको इतना तो ज्ञान प्राप्त हो ही जाता है कि आगे क्या करना है और कैसे करना है, ये पता चल जाता है, या पता चलने लगता है। ।

ह्रदय में ज्ञान के प्रकट होने से भक्ति माता प्रकट भक्ति माता ह्रदय में प्रकट होती है, इससे आप भगवान् के निस्वार्थ भक्त बनते है और भक्ति योग को अपना लेते है। ज्ञान होने से आपको अनुभव प्राप्त होता है। यह अनुभूति आपका मार्गदर्शन करती है। जिसे कुछ लोग ज्ञानसिद्दी भी कहते है।

ज्ञान योग में आगे बढ़ने के लिए आपको निम्न चरणों के अनुसार चलना होता है।

अध्ययन या श्रवण योग –

यह ज्ञान योग का पहला चरण है, जिसमें व्यक्ति अध्ययन या श्रवण के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है। उसे ज्ञान अपने गुरु या साधुओं से सुनने और सीखने को मिलता है। या वह स्वयं शास्त्रों को गुरु मानकर उनका स्वयं अध्ययन शुरू कर सकता है, या सुन सकते है।

मनन योग –

इस दूसरे चरण में व्यक्ति ने जो भी अध्ययन या श्रवण किया होता है उसका मनन या चिंतन करता है। वह उस ज्ञान को अपनी ध्यानाभ्यास के माध्यम से अपनी सामंजस्य तक पहुंचाने का प्रयास करता है। यहाँ व्यक्ति अनुभव या अनुभूति को प्राप्त करता है।

निदिध्यासन योग –

इस तीसरे चरण में व्यक्ति मनन करते-करते शिखर पर पहुँचता है अर्थात यह ध्यान और मनन की सबसे उच्चतम प्रक्रिया होती है, जो व्यक्ति को आत्मा के असली स्वरूप और ईश्वर के साथ अपने संबंधों की समझ में मदद करती है।

भक्ति योग –

इसमें प्रेम और भगवान के प्रति श्रद्धा को महत्त्व दिया गया है। यह योग भगवान में भक्ति (प्रेम) और पूजा (सेवा) के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग बताता है।

श्रवण –

भगवद भक्ति की शुरुआत श्रवण से होती है, यानी भगवद्‌कथा, सत्संग, भजन आदि सुनना।

कीर्तन-

श्रवण करने से भक्ति माता ह्रदय में प्रकट होती है, अब आप भगवान के गुणों और महिमा को गाना शुरू करते है। इसमें उसकी महिमा का गाना किया जाता है।

स्मरण –

श्रवण और कीर्तन से सदैव भगवान का स्मरण करना, उनका ध्यान रखना।

पादसेवन –

भगवान का स्मरण रखते हुए उनके विग्रह, और धर्म पर चलने वाले गरीबों की सेवा करना।

अर्चन –

भगवान, उनके साकार स्वरूपों, पार्षदों, ग्रहों, और देवताओं के लिए अनुष्ठान, यज्ञ, हवनादि करना।

वंदन –

भगवान् की स्तुति करना जैसे सहस्त्रनाम पाठ, चालीसा पाठ, कवच और स्रोत पाठ समर्पण और प्रणाम करना।

दास्य –

भगवान को अपना स्वामी मानकर उनकी सेवा करना। कहते है भक्ति में दासत्व का भाव होना, सेवाभाव सबसे उत्तम भाव है। इससे अहंकार अन्य भावों की तुलना में कम रहता या दूर रहता है।

सखा –

भगवान को मित्र या कोई रिश्ता या सम्बन्ध मानकर उनसे प्रेमभाव बढ़ाना। क्युकी भगवान् प्रेम के भूखे रहते है, इसलिए वे प्रेम के वश में आसानी से आ जाते है। प्रेमभाव सबसे श्रेष्ठ भाव है। क्युकी जहाँ अहंकार निवास करता है वहां प्रेम नहीं हो सकता। इसे आप व्यवहारिक जीवन में भी अनुभव कर सकते है।

शरणागति –

सबकुछ भगवान को समर्पित करना, अपने आप को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना। जैसे विभीषण का श्रीराम की शरण लेना

 

ये तीनों योग (कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग ) भगवान को प्राप्ति के तीन अलग-अलग मार्ग हैं। हर व्यक्ति अपनी अपने ज्ञान और प्रकृति के अनुसार, इनमें से किसी एक योग को अपना चाहिए, और वे सभी एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं।

एक सलाह – आज के विशेष नकारात्मक समय में नकारात्मक ऊर्जा या माया आपको भ्रम में डाल सकती है। इसलिए अपने आराध्य के किसी न किसी रूप का कवच पाठ अवश्य करना चाहिए।

नोट – यहाँ दी गयी जानकारी पब्लिक डोमेन और स्वयं के भावानुसार दी गयी है जो असत्य भी हो सकती है, कृपया श्रीमदभगवद गीता को पढ़े या सुने।

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Last Update: नवम्बर 5, 2023