प्रेरणादायक कहानी – एक राजा थे| उनके राज्य में प्रतिदिन एक विद्वान ब्राह्मण राजा को कथा सुनाने आया करते थे| ऐसा करते-करते कई साल बीत गए और राजा व ब्राह्मण की उम्र भी ढल गई| राजा ने एक दिन सोचा की मैं रोज भगवान की बाते सुनता हूँ लेकिन मेरे मन में भक्ति और मुक्ति का भाव अभी तक क्यों नहीं आया? तब राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा – हे ब्राह्मण देव् आपको मुझे कथा सुनते हुए कई साल हो गए है लेकिन मैं जैसा था वैसा का वैसा अभी हूँ|| मेरे स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया है और न ही मेरा मन भगवान की भक्ति में लगता है ऐसा क्यों?

आपकी कथा पर मैं सालभर में लगभग 6 हजार रूपये खर्च करता हूँ| लेकिन इसका फल मुझे कुछ मिल नहीं रहा है ये सारा धन व्यर्थ ही जा रहा है तो मैं अपना धन व्यर्थ में खर्च क्यों करूँ? इसके अलावा मेरा और आपका दोनों का अमूल्य समय भी नष्ट होता है| इतने समय में तो राज्य का जरुरी काम कर सकता हूँ|

राजा ने कहा – ब्राह्मण देव् मुझे इस समस्या का हल बताइए कि इतनी ज्ञान और वैराग्य की बातें सुनने के बाद भी मेरे मन में कोई परिवर्तन क्यों नहीं आया? मुझे इस सवाल का जबाव दस दिन के अंदर दीजिए नहीं तो मैं आपसे कथा सुनना बंद कर दूँगा और आपका वेतन भी बंद हो जायेगा|

राजा की यह बात सुनकर ब्राह्मण उदास हो गया और सोचने लगा की राजा के सवाल का मैं क्या जबाव दूँ? तब ब्राह्मण यह सोचता हुआ महल से बाहर जाने लगा|
जब ब्राह्मण घर जा रहे थे तो उन्हें रास्ता में एक महापुरुष मिले जिनके माथे पर तेज झलक रहा था| उन्होंने उस ब्राह्मण को चिंतित देखकर पूछ – हे ब्राह्मण आप इतने चिंतित क्यों है? अगर आप उचित समझे तो मुझे अपनी चिंता के विषय में बता सकते है शयद मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ|

तब ब्राह्मण ने उस महापुरुष को राजा द्वारा पूछे गए प्रश्न के बारे में बताया और कहा इस का जबाव मैं क्या दूँ? मुझे ये समझ में नहीं आ रहा है| तब महापुरुष ने कहा – आप मुझे राजा के पास ले चलिए इसका जबाव मैं उन्हें दूँगा| ब्राह्मण देव बोले – परन्तु ऐसा करने से तो मेरी हानि ही होगी क्योकि राजा ने इसका जबाव मुझे देने को कहा है, अगर आप इसका जबाव देंगे तो राजा मुझे वेतन देना बंद कर देगा|

तब महापुरुष ने कहा – चिंता मत करो| तुम राजा से कहना इस सवाल का जबाव मेरा शिष्य देगा अर्थात तुम मुझे अपना शिष्य बनाकर वहाँ पर ले चलो इससे तुम्हारी कोई हानि भी नहीं होगी और राजा को उसके सवाल का जबाव भी मिल जायेगा|

तब ब्राह्मण और वह महापुरुष दूसरे दिन राजा के पास गए और राजा से उस ब्राह्मण से कहा – अपने जो कल मुझसे प्रश्न पूछ था उसका जबाव बहुत ही मामूली सा है जो मेरा शिष्य ही आपको दे देगा| तो राजा ने कहा – ठीक है| मुझे मेरे जबाव से मतलब है वह तुम दो या फिर तुम्हारा शिष्य दे|

फिर राजा ने उस महापुरुष से पूछा – क्या तुम इस ब्राह्मण देव के शिष्य हो? उसने कहा – हाँ राजन, मैं इनका ही शिष्य हूँ| तो ठीक है मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर दो| उस महापुरुष ने कहा – मैं इस प्रश्न का उत्तर तब दूँगा जब आप कुछ समय के लिए अपने सभी अधिकार व शक्तियाँ मझे दे दे| तो राजा ने कहा -ठीक है, मैं अपने सारे अधिकार कुछ समय के लिए तुम्हे दे देता हूँ|

तब राजा ने अपने सैनिको को बुलाकर यह आदेश दिया कि यह महापुरुष कुछ समय के लिए तुम्हारा राजा है| यह जैसा बोले आप सब लोग वैसा ही करना| इसके बाद उस महापुरुष ने राजा के आसन पर बैठकर सैनिको को आदेश दिया कि दो रस्सियाँ लेकर ब्राह्मण और राजा को बांध दो तो सैनिको से ऐसा ही किया दोनों लोगो को रस्सी से बाँध दिया|

उसके बाद उस महापुरुष ने ब्राह्मण से कहा – राजा से कहो की वह तुम्हारी रस्सी खोल दे| तो उस पर राजा ने कहा – मैं इस ब्राह्मण की रस्सी कैसे खोल सकता हूँ| मैं तो स्वयं इस रस्सी से बँधा हुआ हूँ|

उस महापुरुष ने कहा – कोशिश कीजिए राजन शायद आप ब्राह्मण देव की रस्सी खोल सके| उस पर राजा ने कहा – आप कैसी बात कर रहे है जब मेरे दोनों ही हाथ बंधे हुए है मैं स्वयं की रस्सी नहीं खोल पा रहा हूँ तो भला मैं किसी दूसरे की रस्सी कैसे खोल सकता हूँ|
तब उस महापुरुष ने कहा – राजन आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिला की नहीं|

राजा ने कहा – मैं कुछ समझा नहीं,तो महापुरुष ने कहा – जब आप बंधे हो तो क्या दूसरे को बंधन मुक्त कर सकते हो तो राजा ने उत्तर दिया नहीं| तब उस महापुरुष ने राजा को समझने हुए कहा – राजन आप जिन ब्राह्मण देव से रोज कथा सुनते है वे खुद इस संसार के बंधन से बंधे है वे भला आपको इस बंधन से कैसे मुक्त करा सकते है| उसके लिए ब्राह्मण देव को खुद इस सांसारिक बंधन से मुक्त होना होगा तभी वे आपको मुक्ति दे सकते है|

महापुरुष के ऐसा कहते ही राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया और वे समझ गए कि इतने वर्षों तक कथा सुनने पर भी उनके मन में भक्ति या वैराग्य क्यों नहीं उत्पन्न हुआ|

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जैसी संगत वैसी रंगत अर्थात जो मनुष्य जैसा होता है उसका प्रभाव भी हम पर वैसा ही पड़ता है| अपने देखा होगा अगर कोई सच्चा महात्मा हमें ज्ञान के दो शब्द भी बताता है तो उसके द्वारा कहे गए वे वचन हमें भक्ति की ओर ले जाते है लेकिन अगर कोई ऐसा मनुष्य जो केवल महात्मा होने का दिखावा करता है उसकी कही गई किसी भी बात का आप पर कोई असर नहीं होता है न तो वह आपके अंदर भक्ति की भावना जाग्रत कर पता है और न की आपको मुक्ति का मार्ग दिखा पता है|

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Jaisi Sangat Waisi Rangat – Idiom – a Hindi Story

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Last Update: January 16, 2025