एक नगर में निर्धन ब्राह्मण पति-पत्नी रहते थे| ब्राह्मण देव बहुत ही सदाचारी, संतोषी और विद्वान थे परन्तु उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता, तत्वज्ञानी और जीवन्मुक्त थी| वह चाहती थी कि ब्राह्मण देव भी तत्वज्ञानी और जीवन्मुक्त हो जाए इसलिए ब्राह्मणी ने ब्राह्मण देव को उस देश के राजा के पास भेजने का सोचा जो एक तत्वज्ञानी व जीवन्मुक्त पुरुष थे|
ब्राह्मणी ने अपने पति से कहा – अब हमारे पास जीवन निर्वाह के लिए धन नहीं है| आप इस देश के राजा के पास जाकर कुछ धन माँग ले आइए, ताकि हम अपनी गृहस्थी चला सके| सुना है राजा बहुत ही सदाचारी और जीवन्मुक्त महापुरुष है जो ब्राह्मणों का बहुत ही आदर करते है और उन्हें बिना माँगे ही बहुत कुछ दे देते है| यह सुनकर ब्राह्मण देव ने राजा के पास जाने से मना कर दिया और कहा – मैं तब तक किसी से कुछ नहीं लेता जब तक उस पर कोई उपकार न कर दूँ| मैं बिना उपकार किये हुए धन को लेना निंदास्पद समझता हूँ ऐसे धन से तो भूखे रहना ज्यादा अच्छा है|
तो ब्राह्मणी ने कहा – आप तो ज्ञानी है राजा को उपदेश ज्ञान देकर उन पर उपकार कर देना और इसके बदले में जो भी दे उसे स्वीकार कर लेना| यह बात ब्राह्मण देव को सही लगी और वे राजा के पास चले गए|
जब ब्राह्मण देव राजा के पास पहुँचे तो राजा ने उनका बहुत ही आदर-सत्कार किया और कुछ सोने की मुद्राएं देने लगे तो ब्राह्मण देव ने लेने से मना कर दिया| राजा ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा – मैं बिना किसी उपकार के धन नहीं लेता हूँ| अगर आप मुझे कोई काम दे और जब मैं उस काम को पूरा कर दूँ| तब मैं इस धन को स्वीकार करूँगा| तो राजा ने कहा – ठीक है मैं आप से कुछ शब्दों के भाव अर्थ जानना चाहता हूँ अगर आप मुझे उसका ज्ञान दे दे तो बहुत अच्छा होगा| मुझे ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा और आप मुझ पर उपकार भी कर देंगे|
राजा – अनपेक्ष क्या है?
ब्राह्मण देव – जिस मनुष्य को किसी भी प्रकार की कामना और इच्छा न हो और जो किसी बात की चिंता न करे वही अनपेक्ष है|
राजा – शुचि का क्या मतलब होता है?
ब्राह्मण देव – जिसका मन बहुत ही पवित्र हो ,जिसका व्यवहार न्याययुक्त हो और जो वार्तालाप से ही दूसरो को पवित्र कर दे वही शुचि है|
राजा – दक्षता से क्या तात्पर्य होता है?
ब्राह्मण देव – जिस कार्य के लिए जीवन मिला है उसे प्राप्त कर लेना ही दक्षता है|
राजा – गतव्यथ का अर्थ क्या है?
ब्राह्मण देव – जिसके मन में किसी भी बात का दुःख व शोक न होता हो वही गतव्यथ है|
राजा – सर्वारम्भपरित्याग क्या होता है?
ब्राह्मण देव – जो अपने सभी कर्मों को त्यागकर केवल भाग्य पर निर्भर रहता है उसे सर्वारम्भपरित्याग कहते है|
राजा ने कहा – ब्राह्मण देव आप ने सभी का अर्थ तो बहुत सुन्दर बताया है जो कि शास्त्रसंगत है लेकिन आप इन सब के रहस्य से अपरिचित हो| राजा की बात सुनकर ब्राह्मण देव को क्रोध आ गया और वे बोले अगर मैं इनका रहस्य नहीं जानता तो अर्थ कैसे बता पता| अगर आप इनके रहस्य को जानते है तो बताइए| राजा ने कोई उत्तर नहीं दिया और थोड़ा रूक कर बड़े प्रेम के साथ ब्राह्मण से बोले – अपने मेरे द्वारा बताया गया काम पूरा कर दिया है इसलिए अब आप मेरी भेंट स्वीकार कीजिए|
ब्राह्मण ने कहा – आप यह बोल रहे है कि मैं इन शब्दों के रहस्य से अपरिचित हूँ इसका मतलब है कि मैंने आपको अपने अर्थ से पूरी तरह से संतोष नहीं दिया है इसलिए मैं आपकी यह भेट स्वीकार नहीं कर सकता हूँ| इतना कहकर ब्राह्मण देव वहाँ से चले गए|
घर आकर ब्राह्मण देव ने अपनी पत्नी को पूरा वृतांत सुनाया जिसे सुनकर उनकी पत्नी बोली – स्वामी राजा ने जो कहा वह तो उचित ही मालूम होता है इसमें नाराज होने वाली कौन सी बात है| पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण को ओर गुस्सा आ गया और बोलै तुम भी राजा का समर्थन करती हो क्या मुझे सचमुच इनके रहस्य का ज्ञान नहीं है|
ब्राह्मणी – स्वामी आप ही तो कहते है कि सच्ची बात का सदैव समर्थन करना चाहिए| देखिये किसी शब्द का अर्थ बताना सरल होता है लेकिन उसका रहस्य समझना कठिन होता है|
ब्राह्मण – वो कैसे?
ब्राह्मणी – बताइए राजा ने जिन शब्दों के मतलब पूछे क्या वह सारे गुण आप के अंदर है?
ब्राह्मण – क्यों नहीं? कौन सा गुण मुझ में नहीं है|
ब्राह्मणी – आप पुनः मुझे बताइए अनपेक्ष का क्या मतलब है?
ब्राह्मण – जिसे किसी भी प्रकार की कोई इच्छा न हो|
ब्राह्मणी – क्या आप के अंदर यह गुण है?
ब्राह्मण – हाँ, मैं तुम्हारे कहने पर राजा के पास गया था लेकिन उनके इतना कहने पर भी मैंने कोई भेट स्वीकार नहीं की|
ब्राह्मणी – आप बिल्कुल सत्य बोल रहे है आप मेरे कहने पर ही गए थे| अब बताइए शुचि का मतलब क्या है?
ब्राह्मण – जो पवित्र और न्याययुक्त हो और अपनी बातों से दुसरो को भी पवित्र कर दे|
ब्राह्मणी – क्या आपके अंदर यह गुण है? क्या आप पवित्र और न्याययुक्त है और अपनी बातों से दूसरो को पवित्र कर देते है? अगर आप में यह गुण है तो फिर राजा की बातों से आपको इतना क्रोध क्यों आया?
ब्राह्मण – अच्छा ठीक है यह गुण मुझ में नहीं है|
ब्राह्मणी – दक्षता का क्या अर्थ है?
ब्राह्मण – जिस कार्य के लिए जन्म लिया है उसे प्राप्त कर लेना दक्षता है|
ब्राह्मणी – क्या आप जिस काम के लिए संसार में आए है उसे पूरा कर लिया है?
ब्राह्मण – नहीं, अच्छा ठीक है मुझ में यह गुण भी नहीं है|
ब्राह्मणी – गतव्यथ का क्या अर्थ है?
ब्राह्मण – जिसको किसी भी बात से शोक या दुःख न होता हो|
ब्राह्मणी – क्या आप में यह गुण है अगर है तो मेरे द्वारा राजा की बातों का समर्थन करने पर आपको क्रोध क्यों आया?
ब्राह्मण – तुम सत्य कहती हो यह गुण भी मुझ में नहीं है|
ब्राह्मणी – अपने राजा को सर्वारम्भपरित्यागी का क्या मतलब बताया है?
ब्राह्मण – जो अपने सारे कर्मों को त्याग कर केवल भाग्य पर निर्भर रहता हो| अपने आप जो कुछ मिल जाये उसी में संतुष्ट हो|
ब्राह्मणी – क्या आप ऐसे है? क्या अपने अपने सभी कर्मों का त्याग कर दिया है?
ब्राह्मण – देवी मैं अपनी सारी कमियों को जान गया हूँ और यह भी समझ गया की राजा ने मुझ से ऐसा क्यों कहा – कि मैं इन सब शब्दों के केवल अर्थ जानता हूँ इनके रहस्य को नहीं| अब मैं एक सच्चा सन्यासी बनने जाता हूँ|
जब वे घर छोड़कर जाने लगे तो उनकी पत्नी ने प्रार्थना की स्वामी मुझे भी साथ लेकर चलिए| मैं यहाँ अकेले कैसे रहूँगी| आज जो मैंने आपको राजा के पास भेजा था वह धन के लिए नहीं बल्कि इसलिए भेजा था ताकि आप अपने जीवन के लक्ष्य को पहचान सके| मुझे ज्ञात था की राजा तत्वज्ञानी और जीवन्मुक्त महापुरुष है जो आपको जीवनमुक्ति का मार्ग दिखा सकते है|
अपनी पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण देव को बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा – चलो तुम भी मेरे साथ जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मेरी सहायता करना|
इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अपना सब कुछ त्याग कर परमात्मा की प्राप्ति के लिए चल दिए और अंत में ब्राह्मण देव तत्वज्ञान और जीवन्मुक्त ज्ञान को जानकर परमात्मा में विलीन हो गए|