युधिष्ठिर बोले – जनार्दन ! पाप का नाश और पुण्य का दान करने वाली एकादशी के माहात्म्य का पुनः वर्णन कीजिये, जिसे इस लोक में करके मनुष्य परम पद को प्राप्त होता है।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने कहा – राजन्‌ ! शुक्लपक्ष या कृष्णपक्ष में जब भी एकादशी प्राप्त हो, उसका परित्याग न करे, क्योंकि वह मोक्षरूप सुख को बढ़ाने वाली है। कलियुग में तो एकादशी ही भव-बन्धन से मुक्त करने वाली, सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को देने वाली त़था पापों का नाश करने वाली है। एकादशी रविवार को, किसी मंगलमय पर्व के समय अथवा संक्रान्ति के ही दिन क्यों न हो, सदा ही उसका व्रत करना चाहिये | भगवान्‌ विष्णु के प्रिय भक्तो को एकादशी का त्याग कभी नहीं करना चाहिये । जो शास्त्रोक्त विधि से इस लोक में एकादशी का व्रत करते हैं, ये जीवन्मुक्त देखे जाते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।

युधिष्ठिर ने पूछा – श्रीकृष्ण ! वे जीवन्मुक्त कैसे हैं ? तथा विष्णुरूप कैसे होते हैं ? मुझे इस बिषय को जानने के लिये बड़ी उत्सुकता हो रहो है।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले – राजन्‌! जो कलियुग में भक्तिपूर्वक शास्त्रीय विधि के अनुसार निर्जल रहकर एकादशी का उत्तम व्रत करते हैं, वे विष्णुरूप तथा जीवन्मुक्त क्‍यों नहीं हो सकते हैं? एकादशी व्रत के समान सब पापों कों हरने वाला तथा मनुष्यों की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला पवित्र व्रत दूसरा कोई नहीं है। दशमी को एक बार भोजन, एकादशी को निर्जल व्रत तथा द्वादशी को पारण करके मनुष्य श्रीविष्णु के समान हो जाते हैं।

पुरुषोत्तम मास के द्वितीय पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है। जो श्रद्धापूर्वक कामदा के शुभ व्रत का अनुष्ठान करता है, वह इस लोक और परलोक भी मनोवाज्छित वस्तु को पाता है। यह कामदा पवित्र, पावन, महापातक नाशिनी तथा व्रत करने वालों को भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली है।

नृपश्रेष्ठ ! कामदा एकादशी कों विधि-पूर्वक पुष्प, धूप, नैवेद्य तथा फल आदि के द्वारा भगवान्‌ पुरुषोत्तम की पूजा करनी चाहिये। व्रत करने वाला वैष्णव पुरुष दशमी तिथि कों काँस के बर्तन, उड़द, मसूर, चना, कोदो, साग, मधु, पराया अन्न, दो बार भोजन तथा मैथुन। इन दशो का परित्याग करें।

इसी प्रकार चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध और असत्य-भाषण–इन ग्यारह दोषों कों त्याग दे तथा द्वादशी के दिन काँस का बर्तन, उड़द, मसूर, तेल, असत्य-भाषण, व्यायाम, परदेश गमन, दो बार भोजन, मैथुन, बैल की पीठ पर सवारी, पराया अन्न तथा साग। इन बारह वस्तुओं का त्याग करे।

राजन! जिन्होंने इस विधि से पुरुषोत्तम कामदा एकादशी का व्रत किया और रात्रि में जागरण करके श्री पुरुषोत्तम की पूजा की है, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं। इसके पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।