यहाँ हम जानेगे की आखिर द्रोणाचार्य ने सिर्फ अर्जुन को ही महान धनुर्धर क्यों बनाया? इसके लिए हम शुरुआत करते है बारी-बारी से उनके शिक्षा-अध्ययन के दिनों की कुछ कहानियो से। – कौरवों की शिक्षा

तुम्हे क्या दिखता है? – ( एकाग्रता से लक्ष्य साधना )

आज हम द्रोणाचार्य और अर्जुन की कहानी जिसके अंत में हम देखेंगे कि हमें क्या शिक्षा मिलती है।

कौरवों की शिक्षा – एक दिन बात की है, द्रोणाचार्य ने अपने सभी कौरव और पांडव शिष्यों की शुरूआती परीक्षा लेने के लिए सोचा। क्युकी वो जानना जा रहे थे की इन राजकुमारों को मेरी शिक्षा समझ में आ भी रही है या नहीं।

गुरुवर ने एक आम के वृक्ष की टहनी पर एक चिड़ियाँ का पुतला बांध रखा था। और फिर उन्होंने शिष्यों को समझाया की आप सबको इस चिड़ियाँ को निशाना बनाना है, इसके लिए जरुरी है की आप सब इस लकड़ी की चिड़ियाँ की आँख को निशाना बनाये। उन्होंने कहा याद रखो कि लक्ष्य को भेदने के लिए सबसे पहले लक्ष्य का केंद्र ढूढे और केंद्र पर ही निशाना बनाना चाहिए।

यह भी पढ़ेएकाग्रता क्या है?

द्रोणाचार्य ने कहा – बच्चो ये बात किस-किस को समझ में आयी?

तो सभी बच्चो ने सहमति में सर हिलाया।

द्रोणाचार्य ने कहा – अब सभी बच्चे एक पंक्ति में आ जाए।  फिर बारी-बारी से राजकुमारों को धनुष और तीर को पकड़ाते हुए पूछा – तुम्हे क्या दीखता है?

सबसे पहले दुर्योधन को धनुष हाथ में दिया, क्युकी दुर्योधन हर पक्ति में हमेशा प्रथम में ही खड़ा होता था, जिसे शकुनि के द्वारा समझाया जाता था।

बालक दुर्योधन बोला – गुरूजी में मुझे सामने वृक्ष दिखाई देता है, वृक्ष का तना, फल, पत्तियां और उस पर बंधी चिड़ियाँ भी दिखाई दे रही है।

द्रोणाचार्य ने कहा – लक्ष्य भेदन करो पुत्र!

लेकिन निशाना चूक गया।

फिर उन्होंने भीम को बुलाया और धनुष बाण पकड़ाते हुए बोले – भीम लक्ष्य पर निशाना साधो और बताओ तुमको क्या दीखता है?

भीम ने कहाँ गुरुवर! मुझे पेड़ नहीं दिख रहा। यह सुनकर गुरु जी खुश हो गए सोचा, शायद भीम को लक्ष्य दिख गया है।

भीम ने फिर कहा – गुरु जी मुझे तो केवल पके हुए फल दिखाई दे रहे है, भूख भी लगी है, आप कहो तो कुछ फल तोड़कर लाता हु.

द्रोणाचार्य निराश होकर बोले – पहले लक्ष्य पर निशाना साधो और भेदन करो।

लेकिन भीम का निशाना तो आम थे, टहनी सहित आम गिरा दिए।

ठीक इसी प्रकार अर्जुन से पहले जितने राजकुमार थे सभी को लक्ष्य का केंद्र नहीं बल्कि वृक्ष के अलग अलग भाग दिखाए दिए और निशाना लगाने से सभी चूक गए।

द्रोणाचार्य ने फिर अंत में अर्जुन को धनुष बाण पकड़ाते है हुए बोले – कुंती पुत्र, बताओ तुमको क्या दीखता है?

अर्जुन बोला – गुरूजी, मुझे तो केवल चिड़ियाँ की आँख दिख रही है, इसके अलावा कुछ नहीं दीखता।

गुरु द्रोणाचार्य के प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही, और बोले – अर्जुन देर मत करो, लक्ष्य साधो।

फिर देखते ही देखते चिड़िया जमीन पर आ गिरती है।

गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन की एकाग्रता  देखकर बहुत प्रसन्न हो जाते है। और उस दिन का अभ्यास और परीक्षा समाप्त करके अपने आश्रम में वापस आ जाते है। आज गुरु द्रोण को अपने शिष्यों में एक ऐसा शिष्य मिलता है जो अपने लक्ष्य को देख ही नहीं सकता बल्कि भेदन भी करना जानता है, मन ही मन अपनी इस सफलता पर प्रसन्न होते है।


अर्जुन का अभ्यास – लक्ष्य प्राप्ति के लिए निष्ठा

फिर एक रात ऋषि द्रोणाचार्य अपने कमरे में आराम कर रहे थे। पांडव और कौरव भी अपने अपने आश्रम में अपने अपने स्थान पर आराम कर रहे थे। द्रोणाचार्य को नींद नहीं आ रही थी, क्युकी वो बदला लेने के लिए अंदर ही अंदर परेशान थे। कहते है मनुष्य सारे धोखे भूल सकता है। पर अपने मित्रो और अपनी स्त्री के धोखे को मरते दम तक याद रखता है। जिसका अंत या तो बदला लेने से होता है या क्षमा करने से।

तभी उनको कुछ आवाज़ सुनाई देती है। वो खड़े होकर बाहर निकलते है और देखते है की कोई अँधेरे में तीर चला रहा है। ऋषि द्रोण ने ऊँची आवाज़ में पूछा – कौन है वहां?

तभी आवाज़ आयी – में हूँ गुरु जी ! ये आवाज़ अर्जुन की थी।

गुरु द्रोण एक दीपक लेकर अँधेरे की तरफ गए और वहां देखते है की दीवार पर एक सफ़ेद गोल घेरा बना हुआ है जिसमे काफी तीर लगे हुए है।

गुरुवर को देखते ही अर्जुन ने प्रणाम किया और बोले – क्षमा करे गुरुवर! मेरे कारण आपकी निंद्रा भंग हो गयी।

ऋषि ने पूछा – तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो, वो भी अँधेरे में?

अर्जुन बोला – गुरुवर! में धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा हु। निशाना लगाने के लिए मेने दीवार पर गोला बनाया हुआ है।

गुरु द्रोण बोले – अर्जुन ! इसके लिए तुमको रात में अभ्यास करने की क्या आवश्यकता आ पड़ी। तुम दिन में भी ये अभ्यास कर सकते हो?

अर्जुन बोला – गुरुवर ! ये अभ्यास में इसलिए कर रहा हु की दिन में तो सभी अपने लक्ष्य को देखकर उसे भेदते है। लेकिन में बिना देख ही लक्ष्य को भेदना चाहता हु। में विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना चाहता हु गुरु जी।

द्रोण ने उस गोले को ध्यान से देखा। दीवार पर गोला काफी छोटा था और उसके चारो तरफ तीर लगे हुए थे। द्रोण ने कहा – अर्जुन! तुम्हारा प्रयन्त तो उचित है। लेकिन इतना समझ लो की सबसे अच्छा धनुर्धर बनने के लिए तुमको बहुत मेहनत करनी होगी। तभी तुम इस लक्ष्य और उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो।  इतना कहकर गुरुवर वहां से चले गए और अर्जुन फिर से अभ्यास करने में जुट गया।

द्रोणाचार्य फिर से चिंता के अथाह समुद्र में गोते लगाने लगे। अर्जुन के अभ्यास का शोर अभी भी हो रहा था। अपने मित्र द्वारा किये गए अपमान का बदला लेने के लिए तरह-तरह की योजना सोचने लगे। कि तभी एक विचार आता है। और उन्हें अर्जुन की एक बात याद आयी, कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना चाहता है और मेरा प्रतिशोध भी कोई श्रेष्ठ व्यक्ति ही ले सकता है। मेरा पुत्र अश्वत्थामा से ज्यादा अर्जुन धनुर्विद्या पर ध्यान दे रहा है, अगर में अर्जुन की आशा और अपना ध्येय एक कर दू तो दोनों काम एक साथ हो जायेगे। लेकिन फिर भी उनके मन में अभी शंका थी।

कहते है की भगवान् भी सिर्फ उसके साथ रहते है जो अपनी मेहनत और एकाग्रता से लक्ष्य को भेदने को अर्जुन की तरह तत्पर रहते है। जल्दी ही गुरु द्रोण की शंका मिटने वाली थी। कैसे वो बताते है


 

शिक्षा की प्राप्ति – परिश्रम से पारस की प्राप्ति

एक दिन की बात है की गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को एक नया, पांडवो और कौरवों की शिक्षा से सम्बंधित अध्याय बच्चो को सिखाने के लिए आश्रम से दूर वन में ले गए।

वहां एक घटादार वृक्ष  था गुरु द्रोण अपने शिष्यों को एक बड़े वृक्ष के सामने अपने शिष्यों को रुकने के लिए कहते है।

गुरु द्रोणाचार्य कहते है – बच्चो आज में तुम सबको एक अदर्भुत मंत्र सिखायूँगा, जिसके द्वारा किसी भी चीज़ को आसानी से भेद सकते है। जब मंत्र आपको याद हो जाए तो सामने वृक्ष के एक पत्ते का भेदन करना है।

फिर सभी शिष्यों को वह मन्त्र याद करने को देते है। साथ ही साथ उन सभी को कहते है की जब तक सभी लोग इस मन्त्र को याद नहीं कर लेते तब तक दोपहर का भोजन नहीं करेंगे। सभी कौरव और पांडव बच्चे मन्त्र याद करने में लग जाते है।

गुरु द्रोणाचार्य कहते है में स्नान के लिए जा रहा हु आप लोग अपना अपना पत्ता भेदन करके नदी के तट पर आ जाये। तभी उन्हें पता चलता है की वे अपने वस्त्र तो लेकर ही नहीं आये।

वो कहते है की – बच्चो! हम आश्रम से बहुत दूर निकल आये, और में वस्त्र लेकर नहीं आ पाया।

तभी अर्जुन बोला – गुरु जी ! में अभी लेकर आता हु।

गुरु द्रोणाचार्य बोले – पुत्र हम आश्रम से काफी दूर है। और तुम्हारा अभी अभ्यास भी बाकि है।

अर्जुन बोला – गुरु जी ! आप चिंता न करे में अभी लेकर आता हु, आप नदी के तट पर पहुंचे।

अर्जुन आश्रम की ओर निकल पड़ता है और वस्त्र लेकर वापस आता है।

वापस आकर देखता है की वृक्ष के सभी पत्ते में एक एक छिद्र है, अर्थात सभी साथी मन्त्र को याद करके पत्तो को भेद कर चले गए। वो जल्दी से वृक्ष के पास जाता है और उस मन्त्र को याद करता है। याद करने के बाद वह भी वृक्ष के पत्तो को भेदकर, वस्त्र लेकर गुरु जी के पास नदी के तट पर आता है। गुरु जी वस्त्र धारण जैसे ही उस वृक्ष के पास आते है तो देखते है की वृक्ष के सभी पत्तो में दो दो छिद्र है। तो गुरु दोर्णाचार्य चौंके और बोले – सभी बच्चो इधर आयो और ये बताओ की जब हम यहाँ से गए तब इस वृक्ष के हर पत्ते पर एक एक छिद्र था, पर इसमें अब दो दो छिद्र कैसे है ?

तभी अर्जुन बोला – क्षमा करे गुरुवर! जब में वस्त्र लेकर आया तो देखा सभी पत्तो में एक एक छिद्र था। मुझे याद नहीं था की एक पत्ते पर छिद्र करना है या सभी को तो मेरे द्वारा ही सभी पत्तो को भेदन किया गया है।

गुरु द्रोणाचार्य बहुत ही आश्चर्य चकित हो जाते है। और कहते है अर्जुन इस कार्य को इस संसार में केवल तुम ही संभव कर सकते हो वो भी इतनी आसानी से?  मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। तुम्हारी गुरु के प्रति और शिक्षा के प्रति सच्ची निष्ठां से बहुत ही खुश हु। तुम्हारी यही कला भविष्य में तुमको श्रेष्ठ बनाएगी।

धीरे धीरे करके समय बीतता गया। गुरु जी ने सभी को समान शिक्षा दी। लेकिन शिष्यों ने अपने अपनी रूचि और सामर्थ्य के हिसाब से शिक्षा प्राप्त की।  जैसे युधिष्ठर भाला चलाने में निपुण हुए, नकुल तलवार में, भीम और दुर्योधन गदा में और अर्जुन धनुर्विद्या में निपुण हुए।


 

शिक्षा की परीक्षा – दुर्घटना में विवेक का इस्तेमाल

समय बीतता गया फिर एक दिन गुरु द्रोण ने पांडवो और कौरवों की शिक्षा की परीक्षा लेने के बारे में सोचा। उन्होंने कहा – आज तुम लोगो की परीक्षा है सभी लोग स्नान करके आते है। और वे तालाब  के तट पर निकल पड़ते है। सबसे पहले गुरु द्रोण स्नान के लिए तालाब में प्रवेश करते है। सभी कौरव और पांडव तालाब  के तट पर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते है। सहसा एक घटना घटती है। गुरु द्रोण का एक पैर किसी मगरमच्छ के द्वारा पकड़ लिया जाता है। गुरु द्रोण दर्द से कहराते हुए चिल्लाते है और सहायता के लिए पुकारते है।

सभी शिष्य डर कर सहम जाते है और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे। क्युकी इतना बड़ा मगरमच्छ उन्होंने पहली बार देखा था।  तभी अर्जुन दौड़ता हुआ आता है, और मगरमच्छ को गुस्से में ललकारता है और अपने धनुष से इस प्रकार से तीर छोड़ता है कि मगरमच्छ का मुँह खुला का खुला रह जाता है। फिर  गुरु द्रोण अपना पैर उसके जवडे से निकालते है और झटककर तट पर आ जाते है।

अर्जुन चिंता से पूछता है – गुरु जी ! आप ठीक तो है न?

गुरु द्रोण – हा अर्जुन ! में एक दम ठीक हु। तूम सही समय पर आ गए।

तभी अर्जुन ने देखा की गुरु द्रोण का पैर तो एक दम ठीक है। तालाब में जब मगरमच्छ के जवड़ेमें था तब लहूलुहान था, तो अर्जुन आश्चर्यचकित होकर पूछता है।  गुरु जी यह चमत्कार कैसे?

गुरु द्रोण – अर्जुन ये सब काल्पनिक था। में सबकी परीक्षा ले रहा था की कौन सा मेरा शिष्य अचानक दुर्घटना घटने पर कैसे उस परीस्थिति को हल करता है। मेरी इतनी शिक्षा देने के बाद कौन सा शिष्य विवेक खोता है और कौन विवेक को सही समय पर इस्तेमाल करता है।

तुमने ये परीक्षा में उत्तीर्ण हो और में तुमसे बहुत  प्रसन्न हु, में आज तुम्हे ये वरदान देता हु की तुम इस विश्व के सबसे बड़े धनुर्धर होंगे।

तो आपको यह महाभारत में से कौरवों की शिक्षा में से यह कहानी कैसी लगी। आपके कमेंट हमारा प्रोत्साहन बढ़ाते है। कृपया जरूर बताये।

हरे कृष्ण हरे राम !!


FAQs –

महाभारत की कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

महाभारत की कथा में से इस कहानी से हमें एकाग्रता की शिक्षा मिलती है। एकाग्र चित्त ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है।

कौरवों और पांडवों के शिक्षक कौन थे?

गुरु द्रोणाचार्य ही कौरवो और पांडवो के गुरु अर्थात शिक्षक थे।

कौरवों के गुरु कौन थे?

कौरवो के गुरु द्रोणाचार्य थे।

अर्जुन का गुरु कौन है?

अर्जुन के गुरु भी द्रोणाचार्य थे।

दुर्योधन शूटिंग के समय क्या देखता है?

दुर्योधन को वृक्ष दिखाई देता है, वृक्ष का तना, फल, पत्तियां और उस पर बंधी चिड़ियाँ भी दिखाई देती है

Categorized in:

महाभारत,

Last Update: अक्टूबर 12, 2022