श्री शंकराचार्य ने उपनिषद् का अर्थ इस प्रकार किया है – ““उप, नि, षद्”
उप का श्रर्थ समीप
नि का अर्थ अत्यन्त,
और षद का अर्थ नाश,
अतः संपूर्ण “उपनिषद् ” शब्द का अर्थ यह हुआ कि जो जिज्ञासु श्रम और भक्ति के साथ उपनिषदों के श्रत्यन्त समीप जाता है, यानी उनका विचार करता है, वह आवागमन के क्लेशो से निवृत हो जाता है,
और किंसी किसी आचार्यो ने इसका अर्थ ऐसा भी किया है.
उप=समीप, नि=अत्यन्त,
और षद बैठना,
यानी जो जिज्ञासु को अध्ययन अध्यापन के द्वारा ब्रह्म के अतिसमीप बैठने के योग्य बना देता है वह उपनिषद कहा जाता है.
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