पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए।

हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि –

  1. सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है?
  2. फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है?
  3. और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए
  4. संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए?
  5. फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान्‌ पुण्य कौन सा है?
  6. और सबसे महा भयंकर पाप कौन है?
  7. फिर मानस रोगों को समझाकर कहिए। आप सर्वज्ञ हैं और मुझ पर आपकी कृपा भी बहुत है।

फिर कहिए कि

सबसे महा भयंकर पाप कौन है?

काकभुशुण्डिजी ने कहा- हे तात अत्यंत आदर और प्रेम के साथ सुनिए। मैं यह नीति संक्षेप से कहता हूँ। –

शंकर जी और गुरु की निंदा करने वाला मनुष्य (अगले जन्म में) मेंढक होता है और वह हजार जन्म तक वही मेंढक का शरीर पाता है। ब्राह्मणों की निंदा करने वाला व्यक्ति बहुत से नरक भोगकर फिर जगत्‌ में कौए का शरीर धारण करके जन्म लेता है। जो अभिमानी जीव देवताओं और वेदों की निंदा करते हैं, वे रौरव नरक में पड़ते हैं। संतों की निंदा में लगे हुए लोग उल्लू होते हैं, जिन्हें मोह रूपी रात्रि प्रिय होती है और ज्ञान रूपी सूर्य जिनके लिए बीत गया (अस्त हो गया) रहता है।
जो मूर्ख मनुष्य सब की निंदा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं।

हर गुर निंदक दादुर होई। जन्म सहस्र पाव तन सोई॥
द्विज निंदक बहु नरक भोग करि। जग जनमइ बायस सरीर धरि॥

सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ते प्रानी॥
होहिं उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत॥

 

** मेरा भाव – यहाँ ब्राह्मण का अर्थ उस ब्राह्मण से है जो भगवान् की सेवा करते है, या उनकी 7 पीढ़ी में से कोई भगवान सेवक रहा हो।
यह इसलिए बताया क्युकि निम्न बुध्दि वाले लोग, ब्राह्मणों पर स्वय की पूजा करवाने का आरोप लगाते है, और समाज में भ्रम फैलाते है।