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श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय अध्याय – श्रीमदभागवत कथा माहात्म्य

नारद के द्वारा भक्ति के कष्ट की निवृत्ति-

नारद जी ने कहा – हे! सनकादिक ऋषियों, अब में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को स्थापित करके श्री शुकदेव द्वारा कही गयी श्रीमद भागवत महापुराण का ज्ञान यज्ञ करूँगा। लेकिन महात्माओं इतना और बताते जाए की इस श्रीमद भागवत महापुराण की कथा को कहाँ करना चाहिए। इस कथा को कितने दिनों में सुनानी चाहिए? क्या कोई सुनाने की कोई विधि है?

सनकादि ऋषि बोले – हे! नारद आप तो परम ज्ञानी है फिर भी पूछा है तो बता रहे है। हरिद्वार के पास आनंद नाम का घाट है। वहाँ अनेको ऋषि मुनि रहते है और भगवान की कथा करते रहते है। वहाँ घाट के सामने बालू विछी हुयी है सुनहरे कमलो की सुगंध उस घाट को पवित्र करती रहती है। वहां के वातावरण में सिंह और हिरन में भी परस्पर विरोधी भाव नहीं रहता है। आप उसी स्थान पर इस कथा ज्ञान यज्ञ का आरम्भ करे।

हे! मुनि! जैसे ही आप इस कथा को शुरू करेंगे वैसे ही देवी भक्ति भी अपने पुत्रो ज्ञान और वैराग्य को वहाँ लेकर आ जाएगी। जैसे जैसे इस कथा के शव्द भक्ति के पुत्रो के कानों में पड़ेगे वो तरुण हो जायेगे। और आपका कार्य सिद्ध हो जायेगा।

सूत जी कहते है – इस प्रकार नारद जी के साथ सनकादिक ऋषि भी श्रीमद भागवत कथा का अमृत पान करने के लिए गंगा तट पर आते है। उनके तट पर पहुंचते ही सबको सूचना हो गयी, देवलोक, भूलोक, और ब्रह्मलोक में हल्ला हो गया। सभी दौड़ दौड़ कर कथा सुनने के लिए आनंद घाट पर आने लगते है।

नारद जी ने सनकादिक ऋषियों से ही कथा सुनाने की प्रार्थना की और आसान पर बैठने का निवेदन किया। तब सनकादिक नारद जी के दिए हुए आसान पर विराजमान होते है, और वहां उपस्थित सभी श्रोताओ ने उनकी वंदना की।

वहां एक ओर ऋषि, एक ओर देवता, वेद, उपनिषद और तीर्थ बैठे। तो दूसरी और स्त्रियाँ बैठी। कोई कोई देवता तो विमानों पर चढ़कर वहां बैठे हुए लोगो पर पुष्प वर्षा करने लगे।

सूत जी कहते है – इस प्रकार पूजा और आरती समाप्त होने पर सब शांत हो गए। तब सनकादिक ऋषि महात्मा नारद को श्रीमद भागवत का माहात्म्य स्पष्ट करके सुनाने लगे।

देवी भक्ति का अपने पुत्रो सहित श्रीमदभागवत कथा सुनने के लिए प्रकट होना।

सूत जी कहते है – शौनक जी ! सुनो। जिस समय सनकादिक ऋषि ये कथा सुना रहे थे उसी समय उस सभा में एक बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ। वहाँ सभी देखते है की भक्ति अपने तरुण अर्थात युवा पुत्रो (ज्ञान और वैराग्य ) के साथ बड़े ही प्रेम से – श्री कृष्ण ! गोविन्द हरे मुरारी। हे नाथ नारायण ! वासुदेव! का गान करते हुए प्रकट हो जाती है।

उन मुनियों की सभा में सभी ऋषि मुनि गण तर्क और वितर्क करने लगे। पूछने लगे की ये देवी कौन है? ये दोनों पुरुष कौन है? आदि आदि।

तब सनकादिक ऋषि ने सभा में उपस्थित लोगो को समझाया की ये भक्ति देवी श्रीमद भागवत कथा के अर्थ से ही प्रकट हुयी है।
उनके ये वचन सुनकर भक्ति ने अपने पुत्रो के साथ बड़ी ही विनम्र होकर सनतकुमार जी से बोली।

भक्ति ने कहा – हे ऋषिवरो ! में कलयुग के प्रभाव से क्षीण हो गयी थी, लेकिन आपकी कथा अमृत से में अपने पुत्रो सहित तरुणी हो गयी हु। अब आप कृपा करके बताए की मेरा स्थान कहा है?

सनकादिक ऋषि ने कहा – देवी ! तुम भक्तो को भगवान् का स्वरुप प्रदान करने वाली हो। अतः तुम धैर्य धारण करके विष्णु भक्तो के ह्रदय में वास करो। ये कलियुग के दोष भले ही सारे संसार पर बुरा प्रभाव डाले। लेकिन भक्तो के ह्रदय में आपका कोई कुछ नहीं विगाड़ सकता।

जिन भक्तो के ह्रदय में श्री हरि की भक्ति निवास करती है वो निर्धन होकर भी परम धन्य है। क्युकी इसी भक्ति की डोरी से बांधकर स्वयं श्री हरि भी भक्तो के ह्रदय में वास करने लगते है। भूलोक में यह कथा साक्षात् परब्रह्म का ही विग्रह है। हम इसकी महिमा का कहाँ तक वखान करे। इसका आश्रय लेकर इसे सुनाने और सुनने दोनों मनुष्य को भगवन श्रीकृष्ण की समता प्राप्त हो जाती है। सब धर्मो के भेद समझ में आ जाते है।

इस प्रकार भक्ति सनत्कुमार की आज्ञानुसार सभी भक्तो के ह्रदय में वास करने लगी।

– श्रीमद भागवत कथा (श्रीमदभागवत कथा माहात्म्य) तृतीय अध्याय समाप्त – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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आगे के चतुर्थ अध्याय में –
सनत्कुमारो का श्रीमदभागवत कथा माहात्म्य सुनाना – गोकर्णोपख्यान प्रारम्भ
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आपने पिछले श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय अध्याय में पढ़ा –
देवी भक्ति का दुःख / कष्ट दूर करने के लिए नारद ऋषि का प्रयास

 

Last Update: January 16, 2025