अथ षड्विंशोSध्याय: (श्रीमद देवी भागवत महापुराण)

नवरात्र व्रत-विधान, कुमारी पूजा में प्रशस्त कन्याओं का वर्णन

जनमेजय बोले – हे द्विजश्रेष्ठ! नवरात्र के आने पर और विशेष करके शारदीय नवरात्र में क्‍या करना चाहिये ? उसका विधान आप मुझे भलीभाँति बताइये। है महामते! उस पूजन का क्‍या फल है और उसमें किस विधि का पालन करना चाहिये। हे द्विजवर! कृपया विस्तार के साथ मुझे यह सब बताइये।

How to do navratri kanya pujan? – व्यासजी बोले – हे राजन्‌! अब मैं पवित्र | नवरात्र के विषय में बता रहा हूँ, सुनिये। शरत्काल के नवरात्र में विशेष करके यह ब्रत करना चाहिये।

उसी प्रकार प्रेमपूर्वक वसंत ऋतु के नवरात्र में भी इस ब्रत को करे। ये दोनों ऋतुएँ सब प्राणियों के लिये यमदंष्ट्रा कही गयी हैं। शरत तथा वसन्त नामक ये दोनों ऋतुएँ संसार में प्राणियों के लिये दुर्लभ हैं। अतएब आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को बड़े यत्न के साथ यह नवरात्र ब्रत करना चाहिये। ये वसंत तथा शरद दोनों ही ऋतुएँ बड़ी भयानक हैं और मनुष्यों के लिये रोग उत्पन्न करने वाली हैं। ये सबका विनाश कर देने वाली हैं। अतएव हे राजन्‌! बुद्धिमान्‌ लोगों को शुभ चैत्र तथा आश्विनमास में भक्तिपूर्वक चण्डिका देवी का पूजन करना चाहिये।

अमावस्या आने पर ब्रत कों सभी शुभ सामग्री एकत्रित कर ले और उस दिन एकभुक्त ब्रत करे और हविष्य ग्रहण करे। किसी समतल तथा पवित्र स्थान में सोलह हाथ लम्बे-चौड़े और स्तम्भ तथा ध्वजाओं से सुसज्जित मण्डप का निर्माण करना चाहिये। उसको सफेद मिट्टी और गोबर से लिपवा दे। तत्पश्चात्‌ उस मण्डप के बीच में सुन्दर, चौरस और स्थिर वेदी बनाये। वह वेदी चार हाथ लम्बी-चौड़ी और हाथ भर ऊँची होनी चाहिये। पीठ के लिये उत्तम स्थान का निर्माण करे तथा विविध रंगों के तोरण लटकाये और ऊपर चाँदनी लगा दे। रात्रि में देवी का तत्त्व जानने वाले, सदाचारी, संयमी और वेद-वेदांग के पारंगत विद्वान्‌ ब्राह्मणों को आममन्त्रित करके प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल नदी, नद, तड़ाग, बावली, कुआँ अथवा घर पर ही विधिवत्‌ स्नान करे।

प्रातःकाल के समय नित्यकर्म करके ब्राह्मणों का वरण-कर उन्हें मधुपर्क तथा अर्घ्य-पाद्य आदि अर्पण करे। अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें वस्त्र, अलंकार आदि प्रदान करे। धन रहते हुए इस काम में कभी कृपणता न करे। सन्तुष्ट ब्राह्मणों के द्वारा किया हुआ कर्म सम्यक्‌ प्रकार से परिपूर्ण होता है। देवी का पाठ करने के लिये नौ, पाँच, तीन अथवा एक ब्राह्मण बताये गये हैं।

देवीभागवत का पारायण करने के कार्य में किसी शान्त ब्राह्मण का वरण करे और वैदिक मन्त्रों से स्वस्तिवाचन कराये। वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करे। उसके ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करे। भगवती की प्रतिमा रत्नमय भूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित, शुभ लक्षण सम्पन्न और सौम्य आकृतिकी हो। वे कल्याणमयी भगवती शंख-चक्र-गदा-पद्म धारण किये हुए हों और सिंह पर सवार हों; अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी को प्रतिष्ठित करे।

भगवती की प्रतिमा के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र कों पीठ पर स्थापित करे और पीठ पूजा के लिये पास में कलश भी स्थापित कर ले। वह कलश पंचपल्लव युक्त, वैदिक मन्त्रों से भलीभाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थक जलसे पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिये। पास में पूजा की सब सामग्रियाँ रखकर उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्यों की ध्वनि भी करानी चाहिये।

हस्तनक्षत्रयुक्त नंदा (प्रतिपदा) तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। हे राजन्‌! पहले दिन विधिवत्‌ किया हुआ पूजन मनुष्यों का मनोरथ पूर्ण करने वाला होता है। सबसे पहले उपवासव्रत, एकभुक्तव्रत अथवा नक्तव्रत – इनमें से किसी एक व्रत के द्वारा नियम
करने के पश्चात्‌ ही पूजा करनी चाहिये। पूजन के पहले प्रार्थना करते हुए कहे –

हे माता! मैं सर्वश्रेष्ठ नवरात्र व्रत करूँगा। हे देवि! हे जगदम्बे! इस पवित्र कार्य में आप मेरी सम्पूर्ण सहायता करें। इस ब्रत के लिये यथाशक्ति नियम रखे। उसके बाद मन्त्रोच्चारण पूर्वक विधिवत्‌ भगवती का पूजन करे। चन्दन, अगरु, कपूर तथा मन्दार, करंज, अशोक, चम्पा, कनैल, मालती, ब्राह्मी आदि सुगन्धित पुष्पों, सुन्दर बिल्वपत्रों और धूप-दीप से विधिवत्‌ भगवती जगदम्बा का पूजन करना चाहिये। उस अवसर पर अर्ध्य भी प्रदान करे। हे राजन्‌! नारियल, बिजौरा नीबू, दाडिम, केला, नारंगी, कटहल तथा बिल्वफल आदि अनेक प्रकार के सुन्दर फलों के साथ भक्तिपूर्वक अन्न का नैवेद्य एवं पवित्र बलि अर्पित करे। होम के लिये त्रिकोण कुण्ड बनाना चाहिये अथवा त्रिकोण के मान के अनुरूप उत्तम वेदी बनानी चाहिये।

विविध प्रकार के सुन्दर द्र॒व्यों से प्रतिदिन भगवती का त्रिकाल (प्रात:-सायं-मध्याह्त) पूजन करना चाहिये और गायन, वादन तथा नृत्य के द्वारा महान्‌ उत्सव मनाना चाहिये। ब्रती नित्य भूमि पर सोये और वस्त्र, आभूषण तथा अमृत के सदृश दिव्य भोजन आदि से कुमारी कन्याओं का पूजन करे। नित्य एक ही कुमारी का पूजन करे अथवा प्रतिदिन एक-एक कुमारी की संख्या के वृद्धि क्रम से पूजन करे अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करे। अपने धन-सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करे, किंतु हे राजन! देवी के यज्ञ में धन की कृपणता न करे।

हे राजन्‌ | पूजाविधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिये; क्योंकि वह कन्या गन्ध और भोग आदि पदार्थो के स्वाद से बिलकुल अनभिज्ञ रहती है। कुमारी कन्या वह कही गयी है, जो दो वर्ष की हो चुकी हो। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छ: वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। इससे ऊपर की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह सभी कार्यो में निंद्य मानी जाती है। इन नामों से कुमारी का विधिवत्‌ पूजन सदा करना चाहिये।

अब मैं इन नौ कन्याओं के पूजन से प्राप्त होने वाले फलों को कहूँगा।

“कुमारी ‘ नाम की कन्या पूजित होकर दुःख तथा दरिद्रता का नाश करती है; वह शत्रुओं का क्षय और धन, आयु तथा बल की वृद्धि करती है। “त्रिमूर्ति’ नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म- अर्थ-काम की पूर्ति होती है, धन-धान्य का आगम होता है और पुत्र-पौत्र आदि की वृद्धि होती है। जो राजा विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की कामना करता हो, उसे सभी कामनाएँ प्रदान करने-वाली ‘कल्याणी” नामक कन्या का नित्य पूजन करना चाहिये।

शत्रुओं का नाश करने के लिये भक्तिपूर्वक “कालिका’ कन्या का पूजन करना चाहिये। धन तथा ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले को ‘चण्डिका’ कन्या की सम्यक्‌ अर्चना करनी चाहिये। हे राजन्‌! सम्मोहन, दुःख-दारिद्र के नाश तथा संग्राम में विजय के लिये ‘शाम्भवी” कन्या की नित्य पूजा करनी चाहिये। क्रूर शत्रु के विनाश एवं उग्र कर्म की साधना के निमित्त और परलोक में सुख पाने के लिये ‘दुर्गा’ नामक कन्या की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिये। मनुष्य अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये “सुभद्रा’
की सदा पूजा करे और रोगनाश के निमित्त “रोहिणी” की विधिवत्‌ आराधना करे।

श्रीरस्तु इस मन्त्र से अथवा किन्हीं भी श्रीयुक्त देवीमन्त्र से अथवा बीजमन्त्र से भक्तिपूर्वक भगवती की पूजा करनी चाहिये। जो भगवती कुमार के रहस्यमय तत्त्वों और ब्रह्मादि देवताओं की भी लीलापूर्वक रचना करती हैं, उन ‘कुमारी’ का मैं पूजन करता हूँ। जो सत्त्व आदि तीनों गुणों से तीन रूप धारण करती हैं, जिनके अनेक रूप हैं तथा जो तीनों कालों में सर्वत्र व्याप्त रहती हैं, उन भगवती “त्रिमूर्ति’ की मैं पूजा करता हूँ।

निरन्तर पूजित होने पर जो भक्तों का नित्य कल्याण करती हैं, सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली उन भगवती “कल्याणी’ का मैं भक्तिपूर्वक पूजन करता हूँ।

जो देवी सम्पूर्ण जीवों के पूर्वजन्म के संचित कर्मरूपी बीजों का रोपण करती हैं, उन भगवती रोहिणी की मैं उपासना करता हूँ। जो देवी काली कल्पान्त में चराचर सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने में विलीन कर लेती हैं, उन भगवती “कालिका’ की मैं पूजा करता हूँ। अत्यन्त उग्र स्वभाव वाली, उग्ररूप धारण करने वाली, चण्ड-मुण्ड का संहार करने वाली तथा घोर पापों का नाश करने वाली उन भगवती “चण्डिका’ की मैं पूजा करता हूँ।

वेद जिनके स्वरूप हैं, उन्हीं वेदों के द्वारा जिनकी उत्पत्ति अकारण बतायी गयी है, उन सुखदायिनी भगवती “शाम्भवी’ का मैं पूजन करता हूँ। जो अपने भक्त को सर्वदा संकट से बचाती हैं, बड़े-बड़े विघ्नों तथा दुःखों का नाश करती हैं और सभी देवताओं के लिये दुर्ज्ञेय हैं, उन भगवती ‘दुर्गा’ की मैं पूजा करता हूँ। जो पूजित होने पर भक्तों का सदा कल्याण करती हैं, उन अमंगलनाशिनी भगवती “सुभद्रा’ की मैं पूजा करता हूँ।

विद्वानों को चाहिये कि वस्त्र, भूषण, माला, गन्ध आदि श्रेष्ठ उपचारों से इन मन्त्रों के द्वारा सर्वदा कन्याओं का पूजन करें।

श्रीमददेवीभागवतमहापुराण के अनुसार-
नवरात्रि कन्या भोज और नवरात्र व्रत-विधान क्या है?
नवरात्रि किन कन्याओं का पूजन नहीं करना चाहिए ?
जब श्री राम ने किया आश्विनमास नवरात्रि उपवास

 

Last Update: अक्टूबर 6, 2024