इस प्रकार युधिष्ठिर भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अजा एकादशी का माहात्म्य भगवान् श्री कृष्ण से जानने के बाद, अब उन्होंने भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के बारे में श्री कृष्ण भगवान् से पूछा।

युधिष्ठिर ने पूछा – केशव ! भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम, कौन देवता और कैसी विधि है ? यह बताइये।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले – राजन्‌ ! इस विषय में मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ; जिसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारद से कहा था।

नारदजी ने पूछा – चतुर्मुख़ ! आपको नमस्कार है। मैं भगवान्‌ विष्णु की आराधना के लिये आपके मुख़ से यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में कौन-सी एकादशी होती है ?

ब्रह्माजी जी ने कहा – मुनिश्रेष्ठ ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है। क्यों न हो, वैष्णब जो ठहरे। भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी ‘पद्मा’ के नाम से विख्यात है। उस दिन भगवान्‌ हृषिकेश की पूजा होती है| यह उत्तम व्रत अवश्य करने योग्य है।

सूर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्य- प्रतिज्ञ और प्रतापी राजऋषि हो गये हैं। ये प्रजा का अपने औरस पुत्रों की भाँति धर्मपूर्वक पालन किया करते थे। उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चित्ताएँ नहीं सताती थीं और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था। उनकी प्रजा निर्भय तथा धन-धान्य से समृद्ध थी।

महाराज के कोष में केवल न्यायोपार्जित धन का ही संग्रह था। उनके राज्य में समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने-अपने धर्म में लगे रहते थे। मान्धाता के राज्य की भूमि कामघेनु के समान फल देने वाली थी। उनके राज्य करते समय प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होता था। एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षो तक वर्षा नहीं हुई। इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित हो नष्ट होने लगी; तब सम्पूर्ण प्रजा ने महाराज के पास आकर इस प्रकार कहा-

प्रजा बोली – नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजा की बात सुननी चाहिये। पुराणों मनीषी पुरुषों ने जल को “नारा कहा है। वह नारा ही भगवान् का अयन निवास स्थान है। इसलिये वे नारायण कहलाते हैं। नारायणस्वरूप भगवान्‌ विष्णु सर्वत्र व्यापकरूप में विराजमान हैं। ये ही मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है, और अन्न से प्रजा जीवन घारण करती है । नृपश्रेष्ठ ! इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है; अतः ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेम का निर्वाह हो।

राजा ने कहा – आप लोगों का कथन सत्य है, क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है। अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जगत्‌ जीवन धारण करता है। लोक में वहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत बिस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है; किन्तु जब मैं बुद्धि से विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता । फिर भी मैं प्रजा का हित करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करूँगा।

ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने-गिने व्यक्तियों को साथ ले, विधाता कों प्रणाम करके सघन वन की ओर चल दिये । वहाँ जाकर मुख्य-मुख्य मुनियों और तपस्वियो कि आश्रमो पर घूमते फिरे । एक दिन उन्हें ब्रह्म पुत्र अंगिरा ऋषि का दर्शन हुआ । उन पर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्ष में भरकर अपने वाहन से उतर पड़े, और इन्द्रियों कों वश रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनि ने भी ‘स्वस्ति’ कहकर राजा का अभिनंदन किया और उनके राज्य के सातों अंगो की कुशल पूछी।

राजा ने अपनी कुशल बताकर मुनि के स्वास्थ्य का समाचार पूछा | मुनि ने राजा कों आसन और अर्ध्य दिया। उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनि के समीप बैठे तो उन्होंने इनके आगमन का कारण पूछा ।

तब राजा ने कहा – भगवन्‌ ! मैं धर्मानुकूल प्रणाली से पृथ्वी का पालन कर रहा था। फिर भी मेरे राज्य में वर्षा का अभाव हो गया। इसका क्‍या कारण है?

इस बात को मैं नहीं जानता ।

ऋषि बोले – राजन्‌ ! यह सब युगों में उत्तम सत्ययुग है। इसमें सब् लोग परमात्मा के चिन्तन में लगे रहते हैं। तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है। इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं।

किन्तु महाराज ! तुम्हारे राज्य में यह शूद्र तपस्या करता है; इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते। तुम इसके प्रतीकार का यत्न करो; जिससे यह अनावृष्टि का दोष शांत हो जाय।

राजा ने कहा – मुनिवर ! एक तो यह तपस्या में लगा है, दूसरा निरपराध है; अतः मैं इसका अनिष्ट नहीं करूँगा। आप उक्त दोष को शांत करने वाले किसी अन्य धर्म का उपदेश कीजिये।

ऋषि बोले – राजन्‌ ! यदि ऐसी बात है, तो एकादशी का व्रत करो। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो पद्मा एकादशी नाम से विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी। नरेश! तुम अपनी प्रजा और परिजनों के साथ इसका व्रत करो।

ऋषि का यह वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये। उन्होंने चारों वर्णो की समस्त प्रजाओं के साथ भादो के शुक्लपक्ष की ‘पद्मा’ एकादशी का व्रत किया । इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे | पृथ्वी जल से अच्छलीत हो गयी और हरी-भरी खेती से सुशोभित होने लगी। उस व्रत के प्रभाव से सब लोग सुखी हो गये।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं – राजन्‌! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। ‘पद्मा’ एकादशी के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढंककर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिये, साथ ही छाता और जूता भी देने चाहिये।

दान करते समय निम्न मन्त्र का उच्चारण करें –

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञित ।
अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।।
भुक्ति मुक्ति प्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः।।
(५९॥ ३८-३९)

(बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन)
बुद्ध श्रवण नाम धारण करने वाले भगवान्‌ गोविन्द ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है; मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनो कों भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले तथा सुखदायक हैं।

राजन्‌ ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।

इस प्रकार युधिष्ठिर भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पद्मा एकादशी का माहात्म्य भगवान् श्री कृष्ण से जानने के बाद, उन्होंने आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में श्री कृष्ण भगवान् से पूछा।


 


FAQs –

पद्मा एकादशी का व्रत कब है?

पद्मा एकादशी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को किया जाता है।

पद्मिनी एकादशी का क्या महत्व है?

पद्मिनी एकादशी का महत्व है कि इसे मान्यता से विशेष माना जाता है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और प्रकृति में बदलाव और पुण्यों की वृद्धि के लिए इस व्रत को धारण किया जाता है।

पद्मिनी एकादशी का व्रत कैसे करें?

पद्मिनी एकादशी का व्रत करने के लिए व्रती को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और विशेष रूप से तुलसी के पत्ते सहित प्रसाद का भोग लगाकर और फल का भोजन करना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए?

पद्मिनी एकादशी व्रत में सात्विक आहार जैसे फल, शाकाहारी भोजन, और दाना-मूंगफल, दूध का सेवन करना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी को क्या दान करना चाहिए?

पद्मिनी एकादशी का पारण करने के पश्चात विधिवत आहार, वस्त्र, धन, और दान का देना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी कैसे करें?

पद्मिनी एकादशी का व्रत करने के लिए व्रती को नियमित ध्यान, भजन-कीर्तन, और भगवद गीता का पाठ करना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

पद्मिनी एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और इसे मनाने से आध्यात्मिक और भौतिक वृद्धि होती है, जीवन और शरीर से नकारामक वायु नष्ट होती है।

क्या पद्मिनी एकादशी अच्छी है?

जी हां, पद्मिनी एकादशी अच्छी और शुभ होती है।

क्या पद्मिनी एकादशी शुभ है?

हां, पद्मिनी एकादशी शुभ मानी जाती है।

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