प्रसाद, भंडारा और लंगर से सम्बंधित कई प्रश्न है यह इस ब्लॉग में हमने उन सभी मुख्य प्रश्नो के उत्तर देने की कोशिश कर रहे है जो प्रसाद, भंडारा और लंगर से सम्बंधित आपके भाव को बदल देंगे जिससे आप भगवान् और गुरु भगवान् की कृपा प्राप्त करने में चूंकेंगे नहीं। क्युकी कोई है जो नहीं चाहता है कि किसी व्यक्ति में अपने भगवान् और गुरु के प्रति आस्था पैदा न हो पाए, वे उनसे विमुख रहे।

इसलिए आपको प्रश्नो का जवाब बहुत ही छोटे-छोटे भाव के द्वारा देंगे।

प्रसाद क्या है?

मनुष्य अपने गृहस्थ आश्रम (गृह जीवन) में उपलब्ध अर्थ (Budget) और अपनी प्रेम भावना के अनुसार अपने प्रभु को अन्न अर्पण करता है। तो जिस अन्न या उस अन्न से बने खाद्य पदार्थ को भगवान् को अर्पित करता है फिर उस जूठन (प्रसाद/आशीर्वाद) को ग्रहण करता है। यह प्रसाद जिस भावना से अर्पित किया जाता है उसी भावना के अनुसार उसमे ऊर्जा (शक्ति रूपेण आशीर्वाद) का वास होता है।

प्रसाद का अर्थ –

प्रसाद का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है – प्र का अर्थ प्रत्यक्ष, सा से साक्षात्, से दर्शन।

यदि आप जिस देवी, देवता, राक्षस, पित्तर, प्रेत इत्यादि की प्रवृत्ति या गुण * को जानते नहीं, उसका प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिए, और जो व्यक्ति प्रसाद बांटता है और वह जानता है कि मेरे द्वारा बांटा जाने वाला प्रसाद सात्विक शक्ति या आत्मा का नहीं है, तो उसे अन्य को नहीं देना चाहिए।

इसलिए विधर्मी या बहरूपिये भी अपनी बुरी शक्तियों को कभी रोटी में थूककर, कभी सब्जी में थूककर, और हर उस प्रकार का काम करते है, जिसमे वे अपनी बुरी शक्तियों को बाँट सके, इससे सनातनी व्यक्ति का मष्तिष्क भ्रमित होता है, और पूरी तरह से अंत धर्म परिवर्तन करके हो जाता है।

(गुण – सत्वगुण, राजसिकगुण और तामसिक गुण )

नोट – हिन्दू, सिक्ख एवं अन्य धर्मो में हलाल मांस सेवन वर्जित है। फिर जो व्यक्ति पूर्णतः सात्विक है वह तो भगवान् का स्नेही है। इसलिए मनुष्यो में भगवान् को ब्राह्मण सबसे ज्यादा प्रिय है। ऐसे सात्विक मनुष्यों को सात्विक शक्तियाँ और सिध्दियां प्राप्त करने के मार्ग हमेशा खुले रहते है। 

भंडारा क्या है?

भंडारा अर्थात भंडार अर्थात प्रसाद का भंडार। भगवान् के प्रसाद में कोई भेदभाव नहीं होता है। यहाँ तक की भंडारा भोज के बाद अगर उस प्रसाद के अंश शेष रह जाते है तो उन्हें गाय या अन्य जानवरों को दिया जाता है।

इसलिए सिख्ख धर्म में भी भंडारा जिसे लंगर कहा जाता है, उसका महत्त्व है। लंगर उनके गुरु की महिमा को प्रदर्शित करता है। यह पूर्णतः सात्विक होता है और उसे किसी भी धर्म का व्यक्ति ग्रहण कर सकता है। भंडारा को एकत्रित करने में ज्यादा से ज्यादा लोग योगदान देते है ताकि उनका प्रसाद गुरु या सनातन सत्य ईश्वर तक तक पहुंचे और वह सभी लोगो में वितरित भी हो जाए। यह पूर्णतः सकारात्मक शक्ति अर्थात आशीर्वाद युक्त अर्थात सात्विक होता है।

प्रसाद का अर्थ – प्र का अर्थ प्रत्यक्ष, सा से साक्षात्, द से दर्शन।

और

भंडारा का अर्थ जहाँ प्रसाद का भंडार हो।

मुझे आशा है की आपको प्रसाद और भंडारा का अर्थ समझ में आ गया होगा।

भंडारा या लंगर कैसे करे?

अगर आप भी भगवान् या अपने सात्विक गुरुदेव को भोग लगाकर उनका प्रसाद वितरण करना चाहते है तो आपको यह कहानी अवश्य पढ़नी चाहिए –
एक भंडारे की पंगत में तीन मित्र प्रसाद पा कर रहे थे। उनमें से पहला व्यक्ति बोला- “मित्र ! काश.. हम भी ऐसे भंडारा करा पाते!”

दूसरा व्यक्ति बोला- “हाँ. इच्छा तो मेरी भी होती है लेकिन महीने का वेतन (सैलरी), तो आने से पहले ही खत्म हो जाती है। ”

तीसरा व्यक्ति बोला- “खर्चे.. इतने सारे होते हैं तो कहाँ से करे भंडारा..!!”

उनके पास बैठे एक महात्मा भी भंडारे का प्रसाद पा रहे थे और उन तीनों की बातें भी सुन रहे थे। महात्मा स्वाभाव से ही दयालु होते है, उनको उन पर दया आ गयी और प्रसाद पाने के बाद भगवान को प्रणाम किया, और प्रसाद को सर पर धारण करने के बाद उन तीनों से बोले- “बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है! और मुस्कराये !”

वह तीनों आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे। महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा –

सुनो ! बताता हूँ।

तुम..रोज़ मुठ्ठी भर आटा लो और प्रभु को अर्पित करने के बाद और उसे चीटियों के स्थान पर खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चींटियां-मकौड़े उसे खुश होकर खाएँगे।

लो हो गया भंडारा।

चावल-दाल के कुछ दाने लो और प्रभु को अर्पित करने के बाद, उसे अपनी छत पर बिखेर दो और एक कटोरे में पानी भर कर रख दो, चिड़िया-कबूतर आकर खाएंगे।

लो हो गया भंडारा।

गाय और कुत्ते को रोज़ एक-एक रोटी प्रभु के नाम से खिलाओ और घर के बाहर उनके पीने के लिये पानी भर कर रख दो। या जो बन सके वो कर दो।

लो हो गया भंडारा।

ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है। ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी-सब्जी का प्रसाद पा रहे हैं ना, इस अन्न पर ईश्वर ने हमारा नाम लिखा हुआ है। तुम भी जीव-जन्तुओं के भोजन का प्रबन्ध करने के लिए जो भी व्यवस्था करोगे, वह भी उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होगा,

यही तो है भंडारा।

महात्मा बोले- बच्चो जाने कौन कहाँ से आ रहा है और कौन कहाँ जा रहा है, किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसको कहाँ से क्या मिलेगा या नहीं मिलेगा यह पता होता, बस सब ईश्वर की माया है।

तीनों युवकों के चेहरे पर एक अच्छी सुकून देने वाली खुशी छा गई। उन्हें भंडारा खाने के साथ-साथ,भंडारा करने का रास्ता भी मिल चुका था

भोग, प्रसाद, और भंडारा में क्या अंतर है?

भोग – भगवान् के लिए कुछ पूड़ी या पकवान गाय के घी में बनाकर उन्हें अर्पित करना भोग है।

प्रसाद – भगवान् के लिए अपने घर में सदस्यों के हिसाब से कुछ पूड़ी या पकवान गाय के घी या अन्य तेल (घर के वजट के अनुसार ) में बनाकर उन्हें अर्पित करना प्रसाद है।

भंडारा – अपने वजट के अनुसार से पूड़ी बनवाकर भगवान् को प्रेम से खिलाना और उनका प्रसाद पूरे गांव, मोहल्ला, शहर या जाने, या अनजाने लोगो में वितरित करना। अर्थात सकारात्मक ऊर्जा, सूर्य की ऊर्जा की तरह सबको बिना किसी भेदभाव वितरित करना, भंडारा कहलाता है।

फिर भी आपके मन में भंडारे या लंगर या प्रसाद से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो कमेंट में बताये उनको हम FAQs section के द्वारा उत्तर देंगे।

इंटरनेट पर उपलब्ध कुछ FAQs इस प्रकार है। जिनसे आपको कुछ और सहायता मिल सकती है।


FAQs –

भंडारा क्यों किया जाता है?

जब भी सात्विक प्रसाद अपने गुरु या भगवान् या किसी देवी देवता को अर्पण किया जाता है तो उस सात्विक प्रसाद को आम-जन में वितरित करके समाज में सकारात्मक ऊर्जा का वितरण किया जाता है। जो समाज की रक्षा और हित करता है। क्युकी उसमे उस सकारात्मक शक्ति का आशीर्वाद होता है।

सात्विक प्रसाद में आप अन्न या अन्न से बना भोजन, कंद, मूल, फल, फूल, मेवा इत्यादि का प्रयोग कर सकते है।

भंडारा क्यों किया जाता है?

इंटरनेट पर उपलब्ध यह व्याख्या पूर्णतः गलत है कि “अमीर लोग पुण्य कमाने और अपने धन भंडार भरे रखने के लिए गरीबों और असहाय को भोजन कराने के लिए भंडारे का आयोजन करते हैं” .

अगर आप सत्यनारायण की कथा पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि वहां गरीब व्यापारी, गरीब लकड़हारे सत्यनारायण भगवान् के प्रसाद का वितरण करते है। और जो व्यक्ति प्रसाद ग्रहण किये बिना चला जाता है उसे उसके दोष का फल मिलता है। इसलिए प्रसाद या भंडारे का आयोजन कोई भी (गरीब, अमीर) कर सकता है। लेकिन वह सात्विक होना चाहिए।

भंडारा से आप क्या समझते हैं?

सात्विक भगवान् या गुरु के अर्पित प्रसाद के भंडार को अन्य मनुष्यो और जीवो में वितरत करने को भंडारा कहते है।

प्रसाद और भंडारे में क्या अंतर है?

नहीं दोनों में कोई अंतर नहीं है। जब प्रसाद को समाज में वितरित करने के लिए एकत्रित किया जाता है उसे भंडारा या लंगर कहते है।

विश्व का सबसे बड़ा भंडारा कौन सा है?

कोरोनाकाल में इस्कॉन मंदिर द्वारा भगवान् का सबसे ज्यादा प्रसाद वितरित किया गया था जो कि विश्व का सबसे बड़ा भंडारा था। यह भारत समेत कई देशो में किया गया था।

पूजा के बाद प्रसाद क्यों बांटा जाता है?

मान लीजिये हम सभी मनुष्य प्यासे है। भगवान् की पूजा करने से एक भक्त को एक गिलास पानी मिल जाता है। चूँकि वह भक्त है तो वह स्वयं के साथ साथ अन्य लोगो को वितरित करके उनका हित कर देता है। इसलिए घर, मंदिर या समाज में पूजा के बाद प्रसाद को बांटा जाता है। क्युकी सभी में कुछ न कुछ इच्छाओं की प्यास हमेशा रहती है।

लंगर और भंडारे में क्या अंतर है?

दोनों में कोई अंतर नहीं है, एक पंजाबी भाषा का शब्द है दूसरा हिंदी भाषा। लेकिन बहरूपिये इनमे भेद निकालकर जातिवाद, धर्म इत्यादि से इन्हे तोड़कर इन पर राज करना चाहते है।

क्या हमें लंगर खाना चाहिए?

अगर आप जानते है कि कोई प्रसाद किस देवी, देवता या गुरु का है? और उन देवी, देवता या गुरु की प्रकृति सात्विक है। तो आपको प्रसाद अवश्य लेना चाहिए। अनादर करने से दोष से लगता है। सात्विक ऊर्जा आपके जीवन में नहीं आएगी और नकारात्मक ऊर्जा आपके मष्तिष्क पर राज करेंगी।

भंडारे में क्यों नहीं खाना चाहिए?

लेकिन आपका भाव है कि यह प्रसाद जरुरतमंद लोगो को भी मिले तो आप प्रसाद इतनी मात्रा में अवश्य ले जो जीभ, और कंठ के नीचे तक जाए। क्युकी प्रसाद अगर मुख में ही रह गया तो आपका मष्तिष्क अर्थात मन, राहु और केतु के समान हो सकता है, जिसका अमृत कंठ तक ही पंहुचा था ।

लंगर शाकाहारी क्यों है?

सात्विक शक्ति या सात्विक ऊर्जा जैसे की भगवान् या गुरु का प्रसाद हमेशा शाकाहारी (सात्विक ) ही होता है।

क्या भंडारा खाना चाहिए या नहीं?

सत्यनारायण की कथा के अनुसार कभी भी प्रसाद का अनादर नहीं करना चाहिए। अगर आप अनजान है कि प्रसाद किस देवी देवता या नकारात्मक या सकारात्मक शक्ति का है तब उसको न लेने से कोई दोष नहीं लगता, यह अज्ञानता से उपजी भूल होगी।

लेकिन भूख मिटाने के लिए अगर आप लंगर या भंडारा पा रहे है तो एक एक कण सूत समेत किसी न किसी रूप में चुकाना पड़ेगा। लेकिन सक्षम होने के बाद भी भूख मिटाने के लिए अगर आप लंगर या भंडारा पा रहे है, तो एक एक कण सूत समेत किसी न किसी रूप में चुकाना पड़ेगा। क्युकी यह आप माता लक्ष्मी का अपमान कर रहे है। आप भर पेट पाने के बाद, वहां दान देकर उसका मूल्य चुका दे, तो यह उचित मार्ग है।

 

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Last Update: दिसम्बर 17, 2023