पुराण सत्य सनातन धर्म की सीख है, विद्या है और प्रत्येक मनुष्य चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बंधित हो उसके लिए जीने की सीख है। आजकल लोग इन्हे अज्ञानतावश हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ मानते है। आज हिन्दू वो है जिन्होंने सत्य सनातन धर्म को पूरी तरह से नहीं छोड़ा। इन महापुराण या ग्रंथो में संसार – ऋषियों – राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की पुरातन गाथाएँ कही गयी हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण दिया गया है।

‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘प्राचीन’ या ‘पुराना’ पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है, किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं, पुराण में पुरातन सत्य घटनाएं या पुरातन इतिहास मिलता है, जो भविष्य के मनुष्यों को ज्ञान देने की दृष्टि से सहेज कर रखा गया है।

पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है, फिर सत्य क्या है?

पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इनका ज्ञान अनंत माना गया है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है।

एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। जिसका प्रमुख कारण कल्पभेद है।

कल्पभेद अर्थात –

हर कल्प में असंख्य ब्रह्मांड होते है, और उनमे से अलग-अलग ब्रह्मण्डों की पृथ्वियो (कर्मलोक/मृत्युलोक) पर चार युग होते है। और प्रत्येक कल्प में ब्रह्म अलग अलग साकार रूप में प्रकट होता है।

जैसे –

  • किसी कल्प में विष्णु और महाविष्णु
  • किसी कल्प में शक्ति और आदि शक्ति
  • किसी कल्प में महादेव और आदि देव

ज्यादातर कल्प में ब्रह्माजी का जन्म श्री विष्णु भगवान् की नाभि से उत्पन कमलनाल से ही होता है।

 

ईश्वर की वाणी जो प्राचीन काल में ब्रह्मा जी से ऋषियों द्वारा सुनी गई थी और उन ऋषियों के शिष्यों के द्वारा सुनकर जगत में फैलाई गई थी। ये दिव्य ज्ञान श्लोक के रूप में था, जिसके कारण इनमे परिवर्तन नहीं हुआ। इस दिव्य स्रोत के कारण इन्हें धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत माना है।

श्रुति में चार वेद आते हैं :

ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। हर वेद के चार भाग होते हैं : संहिता, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद्। इनके अलावा बाकी सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति के अन्तर्गत आते हैं।

स्मृति – सुनने के बाद ऋषियों के स्मरण और बुद्धि से बने ग्रंथ 

अन्य ग्रंथों को स्मृति माना गया है – जिनका अर्थ है की ऋषियों में श्रुति से उत्पन्न ज्ञान के स्मरण और उत्पन्न बुद्धि से बने ग्रंथ जो वस्तुतः श्रुति के ही मानवीय विवरण और व्याख्या माने जाते हैं।

इसलिए श्रुति करने के बाद ऋषियों के स्मरण और बुद्धि से बने ग्रंथो में कल्पभेद के कारण असमानता या भिन्नता दिखती है, लेकिन सबका भाव और भक्ति एक ही होती है।

वेद व्यास ने पुरातन इतिहास को भविष्य के मनुष्य तक पहुंचाने के लिए 18 पुराणों की रचना की, जिन्हे स्मृति के द्वारा रचा गया है।

अठारह पुराणों के नाम इस प्रकार हैं –

  1. ब्रह्म पुराण – Buy Brahma Puran
  2. पद्म पुराण – Buy Padma Puran
  3. विष्णु पुराण — (उत्तर भाग – विष्णुधर्मोत्तर) – Buy Vishnu Puran
  4. वायु पुराण — (भिन्न मत से – शिव पुराण) – Buy Vayu Puran
  5. भागवत पुराण — (भिन्न मत से – देवीभागवत पुराण) – Buy Shri Mad Bhagwat Puran
  6. नारद पुराण  – Buy Narad Puran
  7. मार्कण्डेय पुराण – Buy Shree Markandey Puran
  8. अग्नि पुराण  – Buy Agni Puran Online
  9. भविष्य पुराण – Buy Bhavishya Puran
  10. ब्रह्मवैवर्त पुराण – Buy Brahmavaivarta Puran
  11. लिङ्ग पुराण – Buy Ling Puran
  12. वाराह पुराण – Buy Varah Puran
  13. स्कन्द पुराण – Buy Skand Puran
  14. वामन पुराण  – Buy Shri Vaman Puran
  15. कूर्म पुराण  – Buy Kurma Puran
  16. मत्स्य पुराण  – Buy Matsya Puran
  17. गरुड पुराण  – Buy Garuda Puran
  18. ब्रह्माण्ड पुराण  – Bhramand Puran

और ये 24 उपपुराण है –

  1. आदि पुराण (सनत्कुमार द्वारा कथित)
  2. नरसिंह पुराण
  3. नन्दिपुराण (कुमार द्वारा कथित)
  4. शिवधर्म पुराण
  5. आश्चर्य पुराण (दुर्वासा द्वारा कथित)
  6. नारदीय पुराण (नारद द्वारा कथित)
  7. कपिल पुराण
  8. मानव पुराण
  9. उशना पुराण (उशनस्)
  10. ब्रह्माण्ड पुराण
  11. वरुण पुराण
  12. कालिका पुराण
  13. माहेश्वर पुराण
  14. साम्ब पुराण
  15. सौर पुराण
  16. पाराशर पुराण (पराशरोक्त)
  17. मारीच पुराण
  18. भार्गव पुराण
  19. विष्णुधर्म पुराण
  20. बृहद्धर्म पुराण
  21. गणेश पुराण
  22. मुद्गल पुराण
  23. एकाम्र पुराण
  24. दत्त पुराण

नोट – ये जानकारी बहुत ही संक्षिप्त है, इसमें विस्तार की संभावना है। और स्वयं के भाव और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार है। किसी भी प्रकार के भ्रम की स्थिति में गुरुमार्गदर्शन आवश्यक है।