सम्पूर्ण रामायण पॉडकास्ट 1 – अगस्त्य ऋषि का शिव जी को रामकथा सुनाना

Sage Agastya narrates the story of Rama to Shiva

श्रीतुलसीदास जी कहते है कि मैं श्रीरघुनाथ जी के चरण कमलों को हृदय में धारण कर और उनका प्रसाद पाकर दोनों श्रेष्ठ मुनियों के मिलन का सुन्दर संवाद वर्णन करता हूँ। भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका श्रीरामजी के चरणों में अत्यन्त प्रेम है। वे तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेन्द्रिय, दया के निधान और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं।

माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं। श्रीवेणीमाधवजी के चरण कमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्शकर उनके शरीर पुलकित होते हैं। भरद्वाजजी का आश्रम बहुत ही पवित्र, परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनियों के मन को भाने वाला है। तीर्थराज प्रयाग में जो स्नान करने जाते हैं उन ऋषि-मुनियों का समाज वहाँ ( भरद्वाज के आश्रम में ) जुटता है। प्रातःकाल सब उत्साहपूर्वक स्नान करते हैं और फिर परस्पर भगवान्‌ के गुणों की कथाएँ कहते हैं।

ब्रह्म का निरूपण, धर्म का विधान और तत्त्वों के विभाग का वर्णन करते हैं तथा ज्ञान-वैराग्य से युक्त भगवान्‌ की भक्ति का कथन करते हैं। इसी प्रकार माघ के महीने भर स्नान करते हैं और फिर सब अपने- अपने आश्रमों को चले जाते हैं। हर साल वहाँ इसी तरह बड़ा आनन्द होता है। मकर में स्नान करके मुनिगण चले जाते हैं।

एक बार पूरे मकर भर स्नान करके सब मुनीश्वर अपने-अपने आश्रमों को लौट गये। परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि को चरण पकड़कर भरद्वाजजी ने रख लिया। आदरपूर्वक उनके चरण कमल धोये और बड़े ही पवित्र आसन पर उन्हें बैठाया। पूजा करके मुनि याज्ञवल्क्यजी के सुयश का वर्णन किया और फिर अत्यन्त पवित्र और कोमल वाणी से बोले – हे नाथ! मेरे मन में एक बड़ा संदेह है; वेदों का तत्त्व सब आपकी
मुट्ठी में है ( अर्थात्‌ आप ही वेद का तत्त्व जानने वाले होने के कारण मेरा सन्देह निवारण कर सकते हैं ) पर उस सन्देह को कहते मुझे भय और लाज आती है भय इसलिये कि कहीं आप यह न समझें कि मेरी परीक्षा ले रहा है, लाज इसलिये कि इतनी आयु बीत गयी, अब तक ज्ञान न हुआ और यदि नहीं कहता तो बड़ी हानि होती है क्‍योंकि अज्ञानी बना रहता हूँ।

हे प्रभो! संत लोग ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण तथा मुनिजन भी यही बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता। यही सोचकर मैं अपना अज्ञान प्रकट करता हूँ। हे नाथ! सेवक पर कृपा करके इस अज्ञान का नाश कीजिये। संतों, पराणों और उपनिषदों ने राम नाम के असीम प्रभाव का गान किया है। कल्याण स्वरूप, ज्ञान और गुणों की राशि, अविनाशी भगवान्‌ शम्भु निरन्तर रामनाम का जप करते रहते हैं। संसार में चार जाति के जीव हैं, काशी में मरने से सभी परमपद को प्राप्त करते हैं।

हे मुनिराज! वह भी राम नाम की ही महिमा है, क्योंकि शिवजी महाराज दया करके काशी में मरने वाले जीव को रामनाम का ही उपदेश करते हैं, इसी से उनको परमपद मिलता है। हे प्रभो! मैं आपसे पूछता हूँ कि वे राम कौन हैं ?

हे कृपानिधान! मुझे समझाकर कहिये।

एक राम तो अवधनरेश दशरथ जी के कुमार हैं, उनका चरित्र सारा संसार जानता है। उन्होंने स्त्री के विरह में अपार दुःख उठाया और क्रोध आने पर युद्ध में रावण को मार डाला।

हे प्रभो! ये वही राम हैं या और कोई दूसरे हैं? जिनको शिवजी जपते हैं?

आप सत्य के धाम हैं और सब कुछ जानते हैं, ज्ञान विचार कर कहिये।

हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा यह भारी भ्रम मिट जाय, आप वही कथा विस्तार पूर्वक कहिये।

इस पर याज्ञवल्क्य जी मुसकराकर बोले – श्रीरघुनाथजी की प्रभुता को तुम जानते हो। तुम मन, वचन और कर्मसे श्रीरामजी के भक्त हो। तुम्हारी चतुराई को मैं जान गया। तुम श्रीरामजी के रहस्यमय गुणों को सुनना चाहते हो; इसी से तुमने ऐसा प्रश्न किया है मानो बड़े ही मूढ़ हो।

हे तात! तुम आदर पूर्वक मन लगाकर सुनो; मैं श्रीरामजी की सुन्दर हे तात! तुम आदरपूर्वक मन लगाकर सुनो; मैं श्रीरामजी की सुन्दर कथा कहता हूँ। बड़ा भारी अज्ञान विशाल महिषासुर है और श्रीरामजी की कथा उसे नष्ट कर देनेवाली भयंकर कालीजी हैं। श्रीरामजी की कथा चन्द्रमा की किरणों के समान है, जिसे संतरूपी चकोर सदा पान करते हैं।

ऐसा ही संदेह पार्वतीजी ने किया था, तब महादेव जी ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था। अब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार वही उमा और शिवजी का संवाद कहता हूँ। वह जिस समय और जिस हेतु से हुआ, उसे हे मुनि! तुम सुनो, तुम्हारा विषाद मिट जायगा।

एक बार त्रेतायुग में शिव जी अगस्त्य ऋषि के पास गये। उनके साथ जगत जननी भवानी सती जी भी थीं। ऋषि ने सम्पूर्ण जगत्‌ के ईश्वर जानकर उनका पूजन किया। फिर मुनिवर अगस्त्य ने शिव जी से विस्तार से रामकथा कही। जिसको महेश्वर ने परमसुख मानकर सुना। फिर ऋषि ने शिव जी से हरिभक्ति पूछी, और शिव जी ने उन्हें अधिकारी पाकर रहस्य सहित भक्ति का निरूपण किया।


अगले भाग में – –

अगली सम्पूर्ण रामायण पॉडकास्ट 2 – किसी कल्प के त्रेतायुग में माता सती ने ली राम की परीक्षा


स्रोत – श्रीतुलसीदासजी विरचित श्रीरामचरितमानस, बालकाण्ड (हिंदी अनुवाद), पेज संख्या 46
दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा मुद्रित।


 

Last Update: दिसम्बर 2, 2024

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