सक्षिप्त श्री शिव महापुराण >> विद्येश्वर संहिता >> अध्याय 25 >> रुद्राक्ष धारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन, पेज संख्या – 69 से 71 तक
सूत जी कहते हैं- महाप्रज्ञ! महामते! शिव रूप शौनक! अब मैं संक्षेप से रुद्राक्ष का महात्म्य बता रहा हूं सुनो। रुद्राक्ष शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिए। रुद्राक्ष के दर्शन से, स्पर्श से तथा उस पर जप करने से यह समस्त पापों का अपहरण करने वाला माना गया है।
मुने! पूर्व काल में परमात्मा शिव ने समस्त लोगों का उपहार करने के लिए देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था।
भगवान शिव बोले -महेश्वरी! मैं तुम्हारे प्रेमवश भक्तों के हित की कामना से रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करता हूं, सुनो।
पूर्व काल की बात है, मैं मन को संयम में रखकर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या में लगा रहा। एक दिन से सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। परमेश्वरी! मैं संपूर्ण लोकों का उपकार करने वाला स्वतंत्र परमेश्वर हूं। अतः उस समय मैंने लीला वश ही अपने दोनों नेत्र खोलें, खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटों से कुछ जल की बूंदें गिरी। आँसू की उन बूंदो से रुद्राक्ष पैदा हो गया। भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए अश्रु बिंदु स्थावर भाव को प्राप्त हो गए। वे रुद्राक्ष मेंने विष्णु भक्त को तथा चारों वर्णों के लोगों को बांट दिए। भूतल पर अपने प्रिय रुद्राक्ष को मैंने गोड प्रदेश में उत्पन्न किया। मथुरा, अयोध्या, लंका, मलियागिरी, काशी तथा अन्य देशों में भी उनके अंकुर उगाए।
वे उत्तम रुद्राक्ष असह्य पाप समूहों का भेदन करने वाले तथा श्रुतियों के भी प्रेरक हैं।
मेरी आज्ञा से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति के भेद से भूतल पर प्रकट हुए। रुद्राक्ष की जाति के शुभाक्ष भी है। उन ब्राह्मणादि जाति वाले रुद्राक्ष के वर्ण स्वेत, रक्त पीत तथा कृष्ण जानने चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि विवरण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषतः शिव भक्तों को शिव पार्वती की प्रसन्नता के लिए रुद्राक्ष के फलों का अवश्य धारण करना चाहिए। आंवले के फल के बराबर रुद्राक्ष श्रेष्ठ बताया गया है। जो बेर के फल के बराबर हो उसे मध्यम श्रेणी का कहा गया है और जो चने के बराबर हो उसकी गणना निम्न कोटि में की गई है।
अब इसकी उत्तमता को परखने की यह दूसरी उत्तम प्रक्रिया बताई जाती है। इसे बताने का उद्देश्य है भक्तों की हित कामना। पार्वती तुम भली-भांति प्रेम पूर्वक इस विषय को सुनो।
महेश्वरी! जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है वो इतना छोटा होने पर भी लोक में उत्तम फल देने वाला तथा सुख सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है। जो रुद्राक्ष आंवले के फल के बराबर होता है वह समस्त अनिष्टों का विनाश करने वाला होता है तथा जो गुंजा फल के समान बहुत छोटा होता है वह संपूर्ण मनोरथ और फलों की सिद्धि करने वाला है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है वैसे ही वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक एक बड़े रुद्राक्ष से एक एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने 10 गुना अधिक फल देने वाला बताया है। पापों का नाश करने के लिए रुद्राक्ष धारण आवश्यक बताया गया है। वह निश्चय ही संपूर्ण मनोरथों का साधक है। अतः उसे अवश्य धारण करना चाहिए।
परमेश्वरी! लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फल देने वाला देखा जाता है वैसे ही फलदायी दूसरी कोई माला नहीं दिखाई देती।
देवी! समान आकार प्रकार वाले, चिकने, मजबूत, स्थूल, कंटक युक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानों वाले) और सुंदर रुद्राक्ष अभिलषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। जिसे कीडो ने दूषित कर दिया हो जो टूटा फूटा हो जिसमें उभरे हुए दाने न हो जो वर्ण युक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पांच प्रकार के रुद्राक्ष को त्याग देना चाहिए। जिस रुद्राक्ष में अपने आप ही छेद हो गया हो वही यहां उत्तम माना गया है। जिसमें मनुष्य के प्रयत्न से छेद किया गया हो वह मध्यम श्रेणी का होता है। रुद्राक्ष धारण बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाला है।
इसके बाद किस अंग में कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिए?
- इस जगत में ग्यारह सो रुद्राक्ष धारण करके मनुष्य जिस फल को पता है उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता।
- शक्तिमान पुरुष साढे़ पांच सौ रुद्राक्ष का सुंदर मुकुट बना ले और उसे सिर पर धारण करें।
- तीन सौ साठ रुद्राक्ष को लंबे सूत्र में पिरो कर एक हार बना ले। वैसे-वैसे तीन हार बनाकर भक्ति पुराण पुरुष उनका यह यज्ञोपवीत तैयार करें और उसे यथास्थान धारण किये रहे।
यह बताकर सूत जी बोले- महर्षियों ! –
- सिर पर ईशान मंत्र से
- कान में तत्पुरुष मंत्र से
- तथा गले और ह्रदय में अघोर मंत्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
- विद्वान पुरुष दोनों हाथों में अघोर बीज-मंत्र से रुद्राक्ष धारण करें।
- उदर पर वामदेव मंत्र से 15 रुद्राक्ष द्वारा गूँथी हुई माला धारण करें
- अथवा अंगों सहित प्रणव का 5 बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पांच या 7 मालाएं धारण करें
- अथवा मूल मंत्र (नमः शिवाय) से ही समस्त रुद्राक्ष को धारण करें।
- रुद्राक्ष धारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्याग दें।
गिरिराज नंदिनी उमें ! –
- श्वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिए।
- गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिए हितकर बताया गया है।
- वैश्यों के लिए प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्यक है
- और शूद्र को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
यह वेदोक्त मार्ग है। ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और सन्यासी सबको नियम पूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य से प्राप्त होता है।
उमे! पहले आंवले के बराबर और फिर उससे भी छोटे रुद्राक्ष धारण करें।
जो रोगी हो, जिनमें दाने ना हों, जिन्हें कीडों ने खा लिया हो, जिनमें पिरोने योग्य छेद न हो ऐसे रुद्राक्ष मंगलाकांक्षी पुरुषों को नहीं धारण करने चाहिए। रुद्राक्ष मेरा मंगलमय लिंग विग्रह है। वह अंततोगत्वा चने के बराबर लघुतर होता है। सूक्ष्म रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्त माना गया है।
सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों और शूद्र को भी भगवान शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
यतियों के लिए प्रणव के उच्चारण पूर्वक रुद्राक्ष धारण का विधान है। जिसके ललाट में त्रिपुंड लगा हो और सभी अंग रुद्राक्ष से विभूषित हो तथा जो मृत्युंजय मंत्र का जप कर रहा है उसका दर्शन करने से साक्षात रुद्र के दर्शन का फल प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष के प्रकार –
पार्वती! रुद्राक्ष अनेक प्रकार के बताए गए हैं। उनके भेदों का वर्णन करता हूं। वे भेद भोग और मोक्ष रूप फल देने वाले हैं। तुम उत्तम भक्ति भाव से उनका परिचय सुनो। –
- एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्ष रूपी फल प्रदान करता है। जहां रुद्राक्ष की पूजा होती है वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती। उस स्थान के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं तथा वहां रहने वाले लोगों की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण होती हैं।
- दो मुख वाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। वह संपूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है।
- तीन मुख वाला रुद्राक्ष सदा साक्षात साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती है।
- चार मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थ को देने वाला है।
- पांच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात कालाग्नि रूद्र रूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुखी रुद्राक्ष समस्त पापों को दूर कर देता है।
- छः मुख वाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। यदि दाहिनी बांह में उसे धारण किया जाए तो धारण करने वाला मनुष्य ब्रह्म हत्या आदि पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें संशय नहीं है।
- महेश्वरी! सात मुख वाला रुद्राक्ष अनंग स्वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वरयशाली हो जाता है।
- आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्ट मूर्ति भैरव रूप है, उसको धारण करने से मनुष्य पूर्ण आयु होता है और मृत्यु के पश्चात शूल धारी शंकर हो जाता है।
- नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है अथवा नौ रूप धारण करने वाली महेश्वरी दुर्गा उस की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। जो मनुष्य भक्ति परायण हो अपने बाएं हाथ में नवमुखी रुद्राक्ष को धारण करता है वह निश्चय ही मेरे समान सर्वेश्वर हो जाता है इसमें संशय नहीं है।
- महेश्वरी! दस मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात भगवान विष्णु का रूप है।
- ग्यारह मुख वाला जो रुद्राक्ष है वह रुद्र रूप है। उसको धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है।
- बारह मुखी रुद्राक्ष को केस प्रदेश में धारण करें, उसके धारण करने से मानव मस्तक पर बारह आदित्य विराजमान हो जाते हैं।
- तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विष्णु का स्वरूप है। उसको धारण करके मनुष्य संपूर्ण अभीष्ट को पाता तथा सौभाग्य और मंगल लाभ करता है।
- चौदह मुखी रुद्राक्ष परम शिव रुप है उसे भक्ति पूर्वक मस्तक पर धारण करें इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है।
गिरिराजकुमारी! इस प्रकार मुखों के भेद से रुद्राक्ष के चौदह भेद बताए गए हैं।
अब तुम क्रम से उन रूद्राक्षों के धारण करने के मंत्रों को प्रसन्नता पूर्वक सुनो। –
1 ॐ ह्रीं नमः
2 ॐ नमः
3 ॐ क्लीं नमः
4 ॐ ह्रीं नमः
5 ॐ ह्रीं नमः
6 ॐ ह्रीं हुं नमः
7 ॐ हुं नमः
8 ॐ हुं नमः
9 ॐ ह्रीं हुं नमः
10 ॐ ह्रीं नमः
11 ॐ ह्रीं हुं नमः
12 ॐ क्राँ क्षाँ राँ नमः
13 ॐ ह्रीं नमः
14 ॐ नमः
इन 14 मंत्रों के द्वारा क्रम से एक से लेकर 14 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का विधान है।
साधु को चाहिए कि वह निद्रा और आलस्य का त्याग करके श्रद्धा भक्ति से संपन्न हो संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए मंत्रों द्वारा रुद्राक्ष को धारण करें। रुद्राक्ष की माला धारण करने वाले पुरुष को देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा अन्य द्रोहकारी राक्षस आदि है, वे सब के सब दूर भाग जाते हैं जो कृत्रिम अभिचार आदि में प्रयुक्त होते है। वह सब रुद्राक्षधारी को देखकर सशंकित होकर दूर खिसक जाते हैं।
पार्वती रुद्राक्ष मालाधारी पुरुष को देखकर मैं शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य आदि देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
महेश्वरी! इस प्रकार रुद्राक्ष की महिमा धर्म की वृद्धि के लिए भक्ति पूर्वक मंत्रों द्वारा विधिवत धारण करना चाहिए।
मुनीश्वर! भगवान शिव ने देवी पार्वती के सामने जो कुछ कहा था, वह सब तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने कहा। मैंने तुम्हारे समक्ष इस विद्येश्वर संहिता का वर्णन किया है। यह संहिता संपूर्ण सिद्धियों को देने वाली तथा भगवान शिव की आज्ञा से नित्य मोक्ष प्रदान करने वाली है।
।।अध्याय 25, विद्येश्वर संहिता सम्पूर्ण।।
स्रोत – सक्षिप्त श्री शिव महापुराण – अध्याय 25, विद्येश्वर संहिता ( रुद्राक्ष धारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन), पेज संख्या – 69 से 71 तक
दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस गोरखपुर, सक्षिप्त श्री शिव महापुराण
FAQs –
रुद्राक्ष पहनने के बाद के नियम क्या है? रुद्राक्ष पहनकर क्या क्या नहीं करना चाहिए?
Rudraksha Niyam – रुद्राक्ष धारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्याग दें।
लड़कियों को रुद्राक्ष पहनना चाहिए कि नहीं?
सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों और शूद्र को भी भगवान शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।