युधिष्ठिर ने पूछा – जगन्नाथ ! श्रीकृष्ण ! आदिदेव ! जगत्पते ! माघ मास के कृष्ण पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है ? उसके लिये कैसी विधि है ? तथा उसका फल क्या है ?

महाप्राज्ञ ! कृपा करके ये सब बातें बताइये ।

श्री भगवान्‌ बोले – नृपश्रेष्ठ ! सुनो, माघ मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, वह षट्तिला के नाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करने वाली है।
अब तुम षट्तिला की पापहारिणी कथा सुनो, जिसे मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य से कहा था।

दाल्भ्य ने पूछा – ब्रह्मण ! मृत्युलोक में आये हुए प्राणी प्रायः पाप कर्म करते हैं । उन्हें नरक में न जाना पड़े, इसके लिए कौन सा उपाय है ? बताने की कृपा करें ।

Shattila Ekadashi (षटतिला एकादशी) की विधि –

पुलस्त्य जी बोले – महाभाग ! तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है, बतलाता हूँ; सुनो। माघ मास आने पर मनुष्य को चाहिये कि वह नहा-धोकर पवित्र हो इन्द्रियों को संयम में रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली आदि बुराइयों को त्याग दे। देवाधिदेव ! भगवान्‌ का स्मरण करके जल से पैर धोकर भूमि पर पड़े हुए गोबर का संग्रह करे । उसमें तिल और कपास छोड़कर एक सौ आठ पिंडिकाएँ बनाये। फिर माघ में जब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्णपक्ष की एकादशी करने के लिये नियम ग्रहण करें। भलीभाँति स्नान करके पवित्र हो शुद्धभाव से देवाधिदेव श्री विष्णु की पूजा करें। कोई भूल हो जानेपर औ्रीकृष्णका नामोघारण करें। रातकों जागरण और होम करे | चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि सामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करे। तत्पश्चात्‌ भगवान का स्मरण करके बारम्बार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरे के फल से भगवान्‌ को विधि-पूर्वक पूजकर अर्घ्य दे। अन्य सब सामग्रियों के अभाव में, सौ सुपारियों के द्वारा भी पूजन और अर्घ्यदान किये जा सकते हैं।

अर्घ्य का मन्त्र इस प्रकार है —

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्तवमगतीनां गतिर्भव।
संसारार्णवमग्राणां प्रसीद पुरुषोत्तम।।
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्रभावन।
सुब्रहाण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज।।
गृहाणार्घ्य मयां दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।

सचिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं। हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्नयदाता होइये।
पुरुषोत्तम ! हम संसार-समुद्र में डुब रहे है, आप हम पर प्रसन्न होइये।
कमलनयन ! आपको नमस्कार है।
विश्वभावन ! आपको नमस्कार है।
सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज! आपको नमस्कार है।
जगत्पते ! आप लक्ष्मीजी के साथ, मेरा दिया हुआ अर्घ्य स्वीकार करें ।

तत्पश्चात्‌ ब्राह्मण की पूजा करे। उसे जल का घड़ा दान करे। साथ ही छाता, जूता और वस्त्र भी दे। दान करते समय ऐसा कहे – इस दान के द्वारा- भगवान्‌ श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों। अपनी शक्ति के अनुसार, श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गौ दान करे ।

द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान पुरुष को चाहिये कि वह तिल से भरा हुआ पात्र भी दान करे। उन तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्ष तक वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। तिल से स्नान करे, तिल का उबटन लगाये, तिल से होम करे; तिल मिलाया हुआ जल पिये, तिल का दान करे और तिल को भोजन के काम में ले। इस प्रकार छः कामो में तिल का उपयोग करने से यह एकादशी षट्तिला कहलाती है, जो सब पापों का नाश करने वाली है ।


स्रोत – श्री पदमपुराण (संक्षिप्त), उत्तरखंड – माघ मास की षटतिला और जया एकादशी का माहात्म्य
दंडवत आभार – श्री गीताप्रेस, गोरखपुर।


FAQs –

माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत कब है?

माघ मास के कृष्ण पक्ष में Shattila Ekadashi (षटतिला एकादशी), अँग्रेजी के कैलेंडर के अनुसार मंगलवार, 6 फ़रवरी, 2024 को है।

षटतिला एकादशी व्रत करने से क्या होता है?

मृत्युलोक में आये हुए प्राणी प्रायः पाप कर्म करते हैं । उन्हें नरक में न जाना पड़े अर्थात किसी भी प्रकार का पाप हो, इस व्रत के करने से उनका नाश होता है।

षटतिला एकादशी व्रत कब है?

अँग्रेजी के कैलेंडर के अनुसार मंगलवार, 6 फ़रवरी, 2024 को है।

षटतिला एकादशी का पारण कितने बजे है?

एकादशी तिथि का समापन,आपको हिंदी कैलेंडर, या किसी सात्विक ब्राह्मण से पूछना चाहिए।