अपुत्रोSनेन विधिना सुतां कुर्वीत पुत्रिकाम् ।
यदपत्यं भवेदस्यां तन् मम स्यात् स्वधाकरम् ॥ ॥१२७॥
अनेन तु विधानेन पुरा चक्रे5 थ पुत्रिका: ।
विवृद्धार्थ स्ववंशस्य स्वयं दक्षः प्रजापति: ॥ ॥१२८॥
ददौ स दश धर्माय कश्यपाय त्रयोदश ।
सोमाय राज्ञे सत्कृत् प्रीतात्मा सप्तविंशतिम् ॥ ॥१२९॥
जिसके पुत्र न हो वह कन्या दान के समय जामाता से नियम करे की इस कन्या ले जो पुत्र होगा वह मेरा श्राद्ध आदि कर्म करेगा। पहले दक्षप्रजापति ने अपने वंश की वृद्धि के लिए इसी विधि से कन्या को पुत्रिकाएं की थी। दक्ष ने प्रसन्न होकर धर्म को दस, कश्यप को तेरह और राजा सोम को सत्ताईस पुत्री दान में दी थीं।
यथैवात्मा तथा पुत्र: पुत्रेण दुहिता समा ।
तस्यामात्मनि तिष्ठन्त्यां कथमन्यो धनं हरेत् ॥ ॥१३०॥
मातुस्तु यौतक॑ यत् स्थात् कुमारीभाग एव सः ।
दौहित्र एव च हरेदपृत्रस्याखिलं धनम् ॥ ॥१३१॥
दौहित्रो हाखिलं रिक्थमपुत्रस्य पितुहरित् |
सएव दद्याद् द्वौ पिण्डौ पित्रे मातामहाय च ॥ ॥१३२॥
पौत्रदौहित्रयोलेकि न विशेषो5स्ति धर्मतः ।
तयोहि मातापितरौ संभूतौ तस्य देहतः ॥ ॥१३३॥
जैसी आत्मा है वैसा ही पुत्र है और पुत्र और पुत्री समान हैं। इसलिए पिता की आत्मारूप-पुत्री वैठी हो तो दूसरा धन कैसे ले जाय ? जो धन माता को दहेज में मिला हो वह कन्या’ का ही भाग है। और पुत्रहीन का सब धन दौहित्र का ही है। जिसको पुत्रिका किया हो उसके पुत्र को अपुत्र-पिता का धन लेना चाहिए और उसी को पिता और नाना को पिण्ड दान करना चाहिए। लोक में धर्मानुसार पौत्र और दौहित्र में कुछ भेद नहीं है । क्योंकि दोनों के माता-पिता एक ही देह से उत्पन्न हुए हैं ॥ १३०-१३३॥
इसका अर्थ यह है कि अगर आपके बेटा नहीं है, या पुत्र न होने पर कौन कर सकता है श्राध्द।
तो यह बहुत अच्छा विचार है।
यह मनुस्मृति कहती है कि आप विवाह से पूर्व कन्यादान से पहले अपने जमाता से ये वचन ले ले कि उसके पुत्र अपने नाना-नानी के श्राध्दकर्म आवश्यक रूप से करेंगे, उसके बदले में वे नाना-नानी की सम्पति या धन को ले सकते है।
अगर नाना-नानी की सम्पति लेकर वे अपने वचन या संकल्प का पालन नहीं करते तो उनकी आत्मा ऋणी हो जाएगी, जिसे उन्हें अगले जन्मो में उन्हें चुकाना पड़ेगा।
*दौहित्र = पुत्री का पुत्र या नाती
शास्त्र का स्रोत या शास्त्र प्रमाण – मनुस्मृति भाषानुवाद पण्डित तुलसीराम स्वसीना
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