Shree Vishnu Sahastranaama benefits (Mahatmya) – ऋषियों ने कहा – सूत जी ! आपका हृदय अत्यन्त करुणायुक्त है; अतएव श्री महादेव जी और देवर्षि नारद का जो अद्भुत संवाद हुआ था, उसे आपने हम लोगों से कहा है। हम लोग श्रद्धापूर्वक सुन रहे हैं। अब आप कृपा पूर्वक यह बताइये कि महात्मा नारद ने ब्रह्माजी से भगवान् सहस्त्र नामों की महिमा का किस प्रकार श्रवण किया था।

सूतजी बोले – द्विजश्रेष्ठ मुनियो ! इस विषय में मैं पुराना इतिहास सुनाता हूँ। आप सब लोग ध्यान देकर सुनें। इसके श्रवण से भगवान्‌ श्रीकृष्ण में भक्ति बढ़ती है। एक समय की बात है, चित्त को पूर्ण एकाग्र रखने वाले नारद जी अपने पिता ब्रह्माजी का दर्शन करने के लिये मेरु पर्वत के शिखर पर गये । वहाँ आसन पर बैठे हुए जगत्पति ब्रह्माजी को प्रणाम करके मुनिश्रेष्ठ नारदजी ने इस प्रकार कहा–‘विश्वेश्वर ! भगवान के नाम की जितनी शाक्ति है, उसे बताइये।

प्रभो! ये जो सम्पूर्ण विश्व के स्वामी साक्षात्‌ श्रीनारायण हरि हैं, इन अविनाशी परमात्मा के नाम की कैस्री महिमा है ? विशेष प्रकार से नाम कीर्तन पूर्वकभगवान् की भक्ति जिस प्रकार करनी चाहिए वह सुनो। जिनके लिए शास्त्रों में कोई प्रायश्चित नहीं बताया गया है, उन सभी पापों की शुध्दि के लिये एक मात्र विजयशील भगवान्‌ विष्णु का प्रयत्रपूर्वक स्मरण ही सर्वोत्तम साधन देखा गया है, वह समस्त पापों का नाश करने वाला है । अतः श्रीहरि के नाम का कीर्तन और जप करना चाहिये । जो ऐसा करता है, वह सब पांपॉ से मुक्त हे; श्रीविष्णु के परमपद कों प्राप्त होता है।

जो मनुष्य ‘हरि’ इस दो अक्षरो वाले नामका सदा उच्चारण करते हैं, वे उसके उच्चारण मात्र से मुक्त हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। तपस्या के रूप में किये जाने वाले जो सम्पूर्ण प्रायश्चित हैं, उन सबकी अपेक्षा श्रीकृष्ण का निरन्तर स्मरण श्रेष्ठ है।

जो मनुष्य प्रातः साय, रात्रि तथा मध्यान आदि के समय ‘नारायण’ नाम का स्मरण करता हैं, उसके समस्त पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं । उत्तम ब्रत का पालन करने वाले नारद ! मेरा कथन सत्य है, सत्य है, सत्य है । भगवान के नामों का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य बड़े-बड़े पापों से मुक्त हो जाता है।

राम-राम-राम-राम’ इस प्रकार बारम्बार जप करने वाला मनुष्य यदि चाण्डाल हो तो भी वह पवित्राआत्मा हो जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। उसमे नाम कीर्तन मात्र से कुरुक्षेत्र, काशी, गया, और द्वारका आदि सम्पूर्ण तीर्थो का सेवन कर लिया।

जो कृष्ण! कृष्ण ! कृष्ण ! इस प्रकार जप और कीर्तन करता है, यह इस संसार का परित्याग करने पर भगवान्‌ विष्णु के समीप आनंद भोगता है। ब्रहमन! जो कलियुग में प्रसश्नतापूर्वक ‘नृसिंह” नाम का जप और कीर्तन करता है, यह भगवद भक्त मनुष्य महान्‌ पाप से छुटकारा पा जाता है।

सत्ययुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञ तथा द्वापर में पूजन करके मनुष्य जो कुछ पाता है, वही कलियुग में केवल भगवान्‌ केशब का कीर्तन करने से पा लेता है। जो लोग इस बात को जानकर जागतात्मा केशव के भजन में लीन होते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णु के परमपद को प्राप्त कर लेते हैं।

  1. मत्स्य
  2. कूर्म
  3. वराह
  4. नृसिंह
  5. वामन
  6. परशुराम
  7. श्रीराम
  8. श्रीकृष्ण
  9. बुद्ध
  10. तथा कल्कि

ये दस अबतार इस पृथ्वी पर बताये गये हैं। इनके नामधारण मात्र से सदा ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध होता है। जो मनुष्य प्रातःकाल जिस किसी तरह भी श्रीविष्णु नाम का कीर्तन, जप तथा ध्यान करता है, वह निसंदेह मुक्त होता है, वह निश्चय ही नर से नारायण बन जाता है।

सूत जी कहते है – यह सुनकर नारद जी कों बड़ा आश्चर्य हुआ। बे अपने पिता ब्रह्माजी से बोले – तात ! तीर्थसेबन के लिये पृथ्वी पर भ्रमण करने की क्‍या आवश्यकता है; जिनके नाम का ऐसा माहात्य है कि इसे सुनने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, इन भगवान्‌ का ही स्मरण करना चाहिये। जिस मुख में ‘राम- राम’ का जप होता रहता है, यही महान्‌ तीर्थ है, यही प्रधान क्षेत्र है तथा यही समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। सुव्रत ! भगवान्‌ के कीर्तन करने- योग्य कौन-कौन से नाम हैं? उन सबको विशेष रूप से बताइये।

ब्रह्माजी ने कहा – बेटा ! ये भगवान्‌ विष्णु सर्वश्रव्याफ्क सनातन परमात्मा हैं। इनका न आदि है न अन्त। ये लक्ष्मी से युक्त, सम्पूर्ण भूतो कि आत्मा तथा समस्त प्राणियों उत्पन्न करने वाले हैं। जिनसे मेरा प्रादुर्भाव हुआ है, वे भगवान्‌ विष्णु सदा मेरी रक्षा करें ।

बही काल के भी काल और वही मेरे पूर्वज हैं। उनका कभी विनाश नहीं होता। उनके नेत्र कमल के समान शोभा पाते हैं। वे परम बुद्धिमान, अविकारी एवं पुरुष (अन्तर्यामी) हैं। सदा शोषनाग की शैय्या पर शयन करने वाले भगवान्‌ विष्णु सहस्रों मस्तक वाले हैं।

ये महाप्रभु हैं। सम्पूर्ण भूत उन्हीं के स्वरूप हैं। भगवान्‌ जनार्दन साक्षात्‌ विश्वरूप हैं। कैटभ नामक असुर का वध करने के कारण वे कैटभारि कहलाते हैं। वे ही व्यापक होने के कारण विष्णु, धारण-पोषण करने के कारण धाता और जगदीश्वर हैं।

नारद ! मैं उनका नाम और गोत्र नहीं जानता।

तात ! मैं केवल बेदों का वक्ता हूँ, बेदातीत परमात्मा का ज्ञाता नहीं, अतः देव ! तुम वहाँ जाओ. जहाँ भगवान बिश्वनाथ रहते हैं।

मुनिश्रेष्ठ ! वे तुमसे सम्पूर्ण तत्व का वर्णन करेंगे। कैलाश के स्वामी श्री महादेव जी ही अन्तर्यामी पुरुष है। वे देवताओ के स्वामी और सम्पूर्ण भक्तो के आराध्यदेव है। पाँच मुखों से सुशोभित भगवान्‌ उमानाथ सब दुःखॉ का विनाश करने वाले हैं। सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर श्रीविश्वनाथ जी सदा भक्तों पर दया करने वाले हैं ।

नारद ! वहीं जाओ, वे तुम्हें सब कुछ बता देंगे।

सूतजी कहते हैं – पिता की बात सुनकर देवर्षि नारद कैलाश पर्वत पर, जहाँ कल्याणप्रद भगवान्‌ विश्वेश्वर नित्य निवास करते हैं, गये। देवताओं द्वारा पूजित देवाधिदेव जगदगुरु भगवान्‌ शंकर कैलास के शिखर पर विराजमान थे। उनके पाँच मुख, दस भुजाएँ, प्रत्येक मुख में तीन नेत्र तथा हाथों में त्रिशुल, कपाल, खटवांग, तीक्ष्ण शूल, खड़ग और पिनाक नाम का धनुष शोभा पा रहे थे। बैल पर सवारी करने वाले बरदाता भगवान्‌ भीम अपने अंगो में भस्म रमाये सर्पो की शोभा से युक्त चन्द्रमा का मुकुट पहने करोड़ों सूर्यो के समान देदीप्यमान हो रहे थें।

नारदजी ने देवेश्वर शिव को साष्टाड़ दण्डबत्‌ किया। उन्हें देखकर महादेवजी के नेत्र कमल खिल उठे। उस समय वैष्णवों में सर्वश्रेष्ठ शिव ने बह्मचारियों में श्रेष्ठ नारदजी से पूछा – ‘देवर्षिप्रवर ! बताओ, कहाँसे आ रहे हो ?

नारदजी ने कहा – भगवन्‌ ! एक समय मैं ब्रह्माजी के पास गया था । वहाँ उनके मुख से मैंने भगवान्‌ विष्णु के पाप नाशक माहात्म्य का श्रवण किया।

सुरश्रेष्ठ! बह्याजी ने मेरे सामने भगवान की महिमा का भली-भाँति वर्णन किया। भगवान के नाम की जितनी शक्ति है, वह भी मैंने उनके मुख से सुनी है। तत्पश्चात्‌ पहले यिष्णु के नामों के विषय में प्रश्न किया। तब उन्होंने कहा – “नारद ! मैं इस बात कों नहीं जानेता; इसका ज्ञान
महारुद्र को है । वे ही सब कुछ बतायेंगे ।

यह सुनकर मैं आपके पास आया हूँ । इस घोर कलियुग में मनुष्यों की आयु थोड़ी होगी। वे सदा अधर्म में तत्पर रहेंगे। भगवान के नामों में उनकी निष्ठा नहीं होगी । कलियुग के ब्राह्मण पाखंडी, धर्मसे विरक्त, संध्या न करने वाले, व्रतहीन, दुष्ट और मलिन होंगे; जैसे ब्राह्मण होंगे, वैसे ही क्षत्रिय, वैश्य, शूद तथा अन्य जाति के लोग भी होंगे । प्राय: मनुष्य भगवान के भक्त नहीं होंगे। द्विजों से बाहर गिने जाने वाले शूद्र कलियुग में धर्म-अधर्म तथा हिताहित का ज्ञान भी नहीं रखते; ऐसा जानकर मैं आपके निकट आया हूँ। आप कृपा करके विष्णु के सहस्त्र नामों का वर्णन कीजिये, जो पुरुषों कि लिये सौभाग्यजनक, परम उत्तम तथा सर्वदा भक्तिभाव कों वढ़ाने वाला है; इसी प्रकार जो ब्राह्मणों को ब्रह्मज्ञान, क्षत्रियों कों विजय, वैश्यों को धन तथा शूद्रों को सदा सुख देने वाले हैं।

सुब्रत ! जो सहस्रनाम परम गोपनीय है, उसका वर्णन कीजिये । वह परम पवित्र एवं सदा सर्वतीर्थमय है; अतः मैं उसका श्रवण करना चाहता हूँ । प्रभो ! विश्वेध्वर ! कृपया उस सहस्रनाम का उपदेश कीजिये ।

नारदजी के वचन सुनकर भगवान्‌ शंकर के नेत्र आश्चर्य से चकित हो उठे । भगवान्‌ विष्णु के नाम काबारम्बार स्मरण करके उनके शरीर में रोमांच हो आया ।

वे बोले – ब्रह्मण! भगवान्‌ विष्णु के सहस्रनाम परम गोपनीय हैं। इन्हें सुनकर मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता ।

यों कहकर भगवान्‌ शंकर ने नारदजी कों विष्णुसहस्त्रनाम का उपदेश दिया, जिसे पूर्वकाल में ने भगवती पार्वतीजी को सुना चुके थे । इस प्रकार नारदजी ने कैलास पर्वत पर भगवान्‌ महेश्वरसे श्रीविष्णुसहस्रनाम का ज्ञान प्राप्त किया ।

फिर दैवयोग से एक बार वे कैलास से उतरकर नैमिषारण्य नामक तीर्थ में आये। वहाँ के ऋषियों ने ऋषिश्रेष्ठ महात्मा नारद को आया देख विशेष रूप से उनका स्वागत-सल्कार किया । उन्होंने विष्णुभक्त विप्रवर नारदजी के ऊपर फूल बरसाये, पाद्य और आर्थ्य निवेदन किया, उनकी आरती उतारी और फल-मूल निवेदन करके पृथ्वी पर साष्टांग प्रणाम किया ।

तत्पश्चात वे बोले – महामुने ! हम लोग इस वंश में जन्म लेकर आज कृतार्थ हो गये; क्योंकि आज हमें परम पवित्र और पापों का नाश करने वाला आपका दर्शन प्राप्त हुआ।

देवर्षि ! आपके प्रसाद से हमने पुराणों का श्रवण किया है। ब्रह्मन्‌ ! अब आप यह बताइये कि किस प्रकार से समस्त पापों का क्षय हो सकता है । दान, तपस्या, तीर्थ, यज्ञ, योग, ध्यान, इन्द्रिय-निगृह और शात्र-समुदाय के बिना ही कैसे मुक्ति प्राप्त हो सकती है ?

नारदजी बोले – मुनिवरों ! एक समय भगवती पार्वती ने कैलाश शिखर पर बैठे हुए अपने प्रियतम देवाधिदेव जगद्‌गुरु महादेवजी से इस प्रकार प्रश्न किया |

पार्वती बोलीं – भगवन्‌ ! आप सर्वश और सर्वपूजित श्रेष्ठ देवता हैं। जन्म और मृत्यु से रहित, स्वयम्भू एवं सर्वशक्तिमान्‌ हैं। स्वामिन्‌ ! आप सदा किसका ध्यान करते हैं ? किस मन्त्र का जप करते हैं ?

देवेश्वर ! इसे जानने की मन में बड़ी उत्कंठा है।

सुव्रत ! यदि मैं आपकी प्रियतमा और कृपापात्र हूँ तो मुझसे यथार्थ बात कहिये।

महादेवजी बोले – देवि ! पहले सत्ययुग में विशुद्ध चित्तवाले सब पुरुष सम्पूर्ण ईश्वरॉ के भी ईश्वर एकमात्र भगवान्‌ विष्णु का तत्व जानकर उन्हीं के नामों का जप किया करते थे और उसी के प्रभाव से इस लोक तथा ‘परलोक में भी परम ऐश्वर्य कों प्राप्त करते थे।

प्रिये ! तुलादान, अश्वमेघ आदि यज्ञ, काशी, प्रयाग आदि तीर्थो में किये हुए स्न्नान आदि शुभकर्म, गया में किये हुए पितरों कि श्राद्ध-तर्पण आदि, वेदों के स्वाध्याय आदि, जप, उग्र तप, नियम, यम, जीवॉ पर दया, गुरु शुश्रूषा, सत्यभाषण, वर्ण और आश्रम के धर्मा का पालन, ज्ञान तथा ध्यान आदि साधनों का कोटि जन्मोतक भलीभाँति अनुष्ठान करने पर भी मनुष्य परम कल्याणमय सर्वेश्वर भगवान्‌ विष्णु को नहीं पाते । परन्तु जो दूसरे का भरोसा न करके सर्वभाव से पुराण पुरुषोत्तम श्रीनारायण की शरण ग्रहण करते हैं, वे उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग ‘एकमात्र श्रीभगवान्‌ विष्णु के नामों का कीर्तन करते हैं, वे सुखपूर्वक जिस. गति कों प्राप्त करते हैं, उसे समस्त धार्मिक भी नहीं पा सकते । अतः सदा भगवान्‌ विष्णु का स्मरण करना चाहिये, इन्हें कभी भी भूलना नहीं चाहिये । क्योंकि सभी विधि और निषेध इन्हीं के किक्वर हैं – इन्हीं की आशा का पालन करते हैं।

प्रिंये! अब मैं तुमसे भगवान्‌ विष्णु के मुख्य-मुख्य हजार नामों का वर्णन करूँगा, जो तीनों लोको को मुक्ति प्रदान करने वाले हैं ।

नोट – इस प्रकार श्रीमदपद्मपुराण में श्री महादेव ने स्वयं अपने मुख से श्री विष्णुसहस्रनाम का वर्णन किया।

(श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ के लिए कोई पीडीऍफ़ या वेबसाइट का इस्तेमाल नहीं करे, सिर्फ पुस्तक से ही करे।)

श्रीविष्णुसहस्त्रनाम फल – इस प्रकार ये सबके हृदय में बास करने वाले भगवान्‌ विष्णु के सहस्त्र नाम हैं। इन सब नामों कों मेरा बारम्बार नमस्कार है।

यह विष्णुसहस्ननामस्तोत्र समस्त अपराधों को शांत करने वाला, परम उत्तम तथा भगवान में भक्ति को बढ़ाने-वाला है। इसका कभी नाश नहीं होता। ब्रह्मलोक आदि का तो यह सर्वस्व ही है। विष्णुलोक तक पहुँचने के लिये यह अद्वितीय सीढ़ी है। इसके सेवन से सब दुःखों का नाश हो जाता है। यह सब सुखों को देने वाला तथा शीघ्र ही परम मोक्ष प्रदान करने बाला है। काम, क्रोध आदि जितने भी अन्तःकरण के मल हैं, उन सबका इससे शोधन होता है। यह परम शान्तिदायक एवं महापातकी मनुष्यों को भी पवित्र बनाने वाला है। समस्त प्राणियों को यह शीघ्र ही सब प्रकार के अभीष्ट फल दान करता है। समस्त विश्वों की शान्ति और सम्पूर्ण अनिष्टों का विनाश करने वाला है।

इसके सेवन से भयंकर दुःख शान्त हो जाते हैं। दुःख दरिद्रता का नाश हो जाता है, तथा तीनों प्रकार के ऋण दूर हो जाते हैं। यह परम गोपनीय तथा धन-धान्य और यश की वृद्धि करने वाला है। सब प्रकार के ऐश्वर्यो, समस्त सिद्धियों और सम्पूर्ण धर्मो को देने वाला है। इससे कोटि-कोटि तीर्थ, यज्ञ, तप, दान और ब्रतों का फल प्राप्त होता है। यह संसार की जडता दूर करने वाला और सब प्रकार की विद्याओं में प्रवृत्ति कराने वाला है। जो राज्य से भ्रष्ट हो गये हैं, उन्हें यह राज्य दिलाता और रोगियों के सब रोगो कों हर लेता है। इतना ही नहीं, यह स्तोत्र वन्ध्या स्त्रियों कों पुत्र और रोग से क्षीण हुए पुरुषों को तत्काल जीवन देने वाला है।

यह परम पवित्र, मंगलमय तथा आयु बढ़ाने वाला है। एक बार भी इसका श्रवण, पठन अथवा जप करने से अंगों सहित सामपूर्ण वेद, कोटि-कोटि मन्त्र, पुराण, शास्त्र तथा स्मृतियों का श्रवण और पाठ हो जाता है ।

प्रिये ! जो इसके एक श्लोक, एक चरण अथवा एक अक्षर का भी नित्य जप या पाठ करता है, उसके सम्पूर्ण मनोरथ तत्काल सिद्ध हो जाते हैं। सब कार्यों की सिद्धि से शीघ्र विश्वास पैदा कराने वाला इसके समान दूसरा कोई साधन नहीं है।

कल्याणी ! तुम्हें इस स्तोत्र को सदा गुप्त रखना चाहिये और अपने अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिये केवल इसी का पाठ करना चाहिये। जिसका हृदय संशय से दूषित हो, जो भगवान्‌ विष्णु का भक्त न हो, जिसमें श्रद्धा और भक्ति का अभाव हो तथा जो भगवान्‌ विष्णु को साधारण देवता समझता हो, ऐसे पुरुष कों इसका उपदेश नहीं देना चाहिये। जो अपना पुत्र, शिष्य अथवा सुद्दद हो, उसे उसका हित करने की इच्छा से इस श्रीविष्णुसहस्ननाम का उपदेश देना चाहिये। अल्पबुद्धि पुरुष इसे नहीं ग्रहण करेंगे।

देवर्षि नारद मेरे प्रसाद से कलियुग में तत्काल फल देने बाले इस स्तोत्र को ग्रहण करके कल्पप्राम (कलापग्राम ) में ले जायेंगे, जिससे भाग्यहीन लोगों का दुःख दूर हो जायगा | भगवान्‌ विष्णु से बढ़कर कोई धाम नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और श्रीविष्णु से भिन्न कोई मन्त्र नहीं है। भगवान्‌ श्रीविष्णु से भिन्न कोई सत्य नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर जप नहीं है, श्रीविष्णु से उत्तम ध्यान नहीं है तथा श्रीविष्णु से श्रेष्ठ कोई गति नहीं है। जिस पुरुष की भगवान्‌ जनार्दन के चरणों में भक्ति है, उसे अनेक मन्त्रों के जप, बहुत विस्तार वाले शास्त्रों के स्वाध्याय तथा सहस्त्रों बाजपेय यज्ञों के अनुष्ठान करने की क्या आवश्यकता है ? मैं सत्य-सत्य कहता हूँ, भगवान्‌ विष्णु सर्वतीर्थमय हैं, भगवान्‌ विष्णु सर्वशास्त्रमय हैं तथा भगवान्‌ विष्णु सर्वयज्ञमय हैं। यह सब मैंने सम्पूर्ण विश्व का सर्वस्वभूत सार-तत्त्व बतलाया है।

पार्वती बोलीं – जगत्पते ! आज मैं धन्य हो गयी। आपने मुझ पर बड़ा अनुग्रह किया। मैं कृतार्थ हो गयी, क्योंकि आपके मुख से यह परम दुर्लभ एवं गोपनीय स्तोत्र मुझे सुनने को मिला है। देवेश ! मुझे तो संसार की अवस्था देखकर आश्चर्य होता है।

हाय ! कितने महान्‌ कष्ट की बात है कि सम्पूर्ण सुखों के दाता श्रीहरि के विद्यमान रहते हुए भी मूर्ख मनुष्य संसार में कष्ट उठा रहे हैं। भला, लक्ष्मी के प्रियतम भगवान्‌ मथुसूदन से बढ़कर दूसरा कौन देवता है। आप-जैसे योगीश्वर भी जिनके तत्त्व का निरन्तर चिन्तन करते रहते हैं, उन श्रीपुरुषोत्तम से बड़ा दूसरा कौन-सा पद है।

उनको जाने बिना ही अपने को ज्ञानी मानने वाले मूढ़ मनुष्य दूसरे किस देवता की आराधना करते हैं।

अहो ! सर्वेश्वर भगवान्‌ विष्णु सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवताओं से भी उत्तम हैं।

स्वामिन! जो आपके भी आदिगुरु हैं, उन्हें मूढ़ मनुष्य सामान्य दृष्टि से देखते हैं; किन्तु प्रभो ! सर्वेश्वर ! यदि मैं अर्थ-कामादि में आसक्त होने या केबल आप में ही मन लगाये रहने के कारण अथवा प्रमादवश ही समूचे सहस्ननामस्तोत्र का पाठ न कर सकूँ, तो उस अवस्था में जिस किसी भी एक नाम से मुझे सम्पूर्ण सहस्ननाम का फल प्राप्त हो जाय, उसे बताने की कृपा कीजिये।

महादेवजी बोले – सुमुखे ! मैं तो राम ! राम ! राम ! इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीरामनाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ। रामनाम सम्पूर्ण सहस्त्र नाम के समान हैं ।

पार्वती ! यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शुद्र भी प्रतिदिन विशेष रूप से इस श्रीविष्णुसहस्ननाम का पाठ करें तो वे धन-धान्य से युक्त होकर भगवान्‌ विष्णु के परम पद को प्राप्त होते हैं।

देवि! जो लोग पूर्वोक्त अंगन्यास से युक्त श्रीविष्णुसहस्ननाम का पाठ करते हैं, वे श्रेष्ठ पुरूष अविनाशी पद को प्राप्त होते हैं । सुमुखि ! बार-बार बहुत कहनेसे क्‍या लाभ; थोड़े में इतना ही जान ले कि भगवान्‌ विष्णु का सहस्ननाम परम मोक्ष प्रदान करने बाला है। इसके पाठ में उताबली नहीं करनी चाहिये। यदि उत्तावली की जाती है, तो आयु और धन का नाश होता है। इस पृथ्वी पर जम्बूद्वीप के अंदर जितने भी तीर्थ हैं, वे सदा बहीं निवास करते हैं, जहाँ श्रीविष्णुसहस्ननाम का पाठ होता है। जहाँ श्रीविष्णुसहस्ननाम की स्थिति होती है, वहीं गंगा, यमुना, कृष्णबेणी, गोदावरी, सरस्वती और समस्त तीर्थ निवास करते हैं। यह परम पवित्र स्तोत्र भक्तों कों सदा प्रिय है। भक्तिभाव से भावित चित्त के द्वारा सदा ही इस स्तोत्र का चिन्तन करना चाहिये ।

जो मनीषी पुरुष परम उत्तम श्रीविष्णुसहस्ननामस्तोत्र का पाठ करते हैं, ये सब पापों से मुक्त होकर श्रीहरि के समीप जाते हैं। जो लोग सूयोदय के समय इसका पाठ और जप करते हैं, उनके बल, आयु और लक्ष्मी की प्रतिदिन वृद्धि होती है। एक-एक नाम का उच्चारण करके श्रीहरि को तुलसीदल अर्पण करने से जो पूजा सम्पन्न होती है, उसे कोटि यज्ञॉ की अपेक्षा भी अधिक फल देने वाली समझना चाहिये | पार्वती ! जो द्विज रास्ता चलते हुए भी श्रीविष्णुसहस्ननाम का पाठ करते हैं, उन्हें मार्गजनित दोष नहीं प्राप्त होते। जो लोग भगवान्‌ केशव के इस माहात्य का श्रवण करते हैं, वे मनुष्यो में श्रेष्ठ, पवित्र एवं पुण्यस्वरूप हैं।

 


स्रोत – श्रीमदपद्मपुराण, उत्तरखंड, नाम कीर्तन की महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनाम स्रोत्र का वर्णन
दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस द्वारा उपलब्ध संक्षिप्त श्रीमदपद्मपुराण, पेज संख्या 611 से लेकर 694 तक

 


FAQs –

सबसे अच्छा सहस्रनाम कौन सा है?

सभी सहस्रनाम अच्छे है, किसी में किंचित मात्र भेद नहीं करना चाहिए। फिर यह तो श्री महादेव के श्रीमुख से प्रकट हुआ है।

मूल विष्णु सहस्रनाम कौन सा है?

अगर पद्मपुराण में श्रीमहादेव स्वयं अपने मुख से माता पार्वती को बता रहे है तो उसमे किसी भी प्रकार का भेद नहीं करना चाहिए।

विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ने से क्या होता है?

श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का महत्त्व स्वयं शिव जी ने नारद भगवान् को बताया है, आप ऊपर पढ़ सकते है।

क्या महिलाएं विष्णु सहस्रनाम का जाप कर सकती हैं?

बिल्कुल, कोई भी कर सकता है, अगर एकादशी व्रत के दौरान ऐसा किया जाए तो फिर कहना ही क्या।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ कब करना चाहिए?

किसी भी व्रत के दौरान जैसे कि कृष्णजन्माष्टमी, एकादशी, सत्यनराणाय व्रत, रामनवमी इतियादी के दिन कर सकते है।

कौन सा सहस्रनाम सबसे शक्तिशाली है?

सभी सहस्रनाम शक्तिशाली होते है, बस आपको अपने इष्ट पर आपका भरोसा होना चाहिए।

मैं मदद के लिए भगवान विष्णु को कैसे बुलाऊं?

आप गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ ह्रदय से कर लीजिये। उन्हें अपने पिता की भांति पुकारिये जैसे एक बच्चा कुए में गिर जाता है और सहायता के लिए अपने पिता और माता को पुकारता है। अगर आप धर्म, सत्य के लिए पुकार रहे है तो वे अवश्य किसी न किसी रूप में सहायता भेज देंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।

विष्णु सहस्रनाम किसने लिखा था?

विष्णु सहस्रनाम या स्तोत्र ऋषि व्यास द्वारा मानव कल्याण के लिए लिखा गया है, जिसका वर्णन स्वयं देवाधि देव महादेव ने किया है।

क्या हम विष्णु सहस्रनाम रोज पढ़ सकते हैं?

अगर ऐसा कर सकते है तो आप स्वयं विष्णु भगवान और श्री शिव जी के प्रिय बन जाएंगे, ऐसा मेरा भाव या विचार है। आपको उनके माहात्म्य के अनुसार पूर्ण फल प्राप्त होगा।

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