तदनन्तर ऋषियों के पूछने पर सूत जी ने शिवजी की आराधना के द्वारा उत्तम एवं मनो वांछित फल प्राप्त करने वाले बहुत से महान्‌ स्त्री पुरुषों के नाम बताये। इसके बाद ऋषियों ने फिर पूछा –

व्यास शिष्य ! किस ब्रत से संतुष्ट होकर भगवान्‌ शिव उत्तम सुख प्रदान करते हैं? जिस ब्रत के अनुष्ठान से भक्तजनों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सके, उसका आप विशेष रूप से वर्णन कीजिये।

सूत जी ने कहा – महर्षियो! तुमने जो कुछ पूछा है, वही बात किसी समय ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती जी ने भगवान्‌ शिव से पूछी थी। इसके उत्तर में शिवजी ने जो कुछ कहा, वह मैं तुम लोगों को बता रहा हूँ।

भगवान्‌ शिव बोले – मेंरे बहुत से व्रत हैं, जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। उन में मुख्य दस व्रत हैं, जिन्हें जाबाल श्रुति के विद्वान “दश शैव व्रत” कहते हैं। द्विजों को सदा यत्न-पूर्वक इन व्रतों का पालन करना चाहिये।

हरे! प्रत्येक अष्टमी को केवल रात में ही भोजन करें। विशेषतः: कृष्ण-पक्ष की अष्टमी को भोजन का सर्वथा त्याग कर दे। शुक्लपक्ष की एकादशी को भी भोजन छोड़ दे। किंतु कृष्ण पक्ष की एकादशी को रात में मेरा पूजन करने के पश्चात भोजन किया जा सकता है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को तो रात में भोजन करना चाहिये; परंतु कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को शिव व्रत धारी पुरुषों के लिये भोजन का सर्वथा निषेध है। दोनों पक्षों में प्रत्येक सोमवार को प्रयत्न पूर्वक केवल रात में ही भोजन करना चाहिये।

शिव के व्रत में तत्पर रहने वाले लोगों के लिये यह अनिवार्य नियम है। इन सभी व्रतों में व्रत की पूर्ति के लिये अपनी शक्ति के अनुसार शिवभक्त ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये। द्विजों को इन सब व्रतों का नियम पूर्वक पालन करना चाहिये । जो द्विज इनका त्याग करते हैं, वे चोर होते हैं। मुक्ति मार्ग में प्रवीण पुरुषों को मोक्ष की प्राप्ति कराने वाले चार व्रतों का नियम पूर्वक पालन करना चाहिये।

वे चार व्रत इस प्रकार हैं –

  1. भगवान‌ शिव की पूजा
  2. रुद्रमंत्रो का जप
  3. शिव मन्दिर में उपवास
  4. तथा काशी में मरण।

ये मोक्ष के सनातन मार्ग हैं। सोमवार की अष्टमी और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी,  इन दो तिथियों को उपवास पूर्वक व्रत रखा जाये तो वह भगवान‌ शिव को संतुष्ट करने वाला होता है, इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है।

हरे! इन चारों में भी शिवरात्रि का व्रत ही सबसे अधिक बलवान्‌ है। इसलिये भोग और मोक्षरूपी फल की इच्छा रखने वाले लोगों को मुख्यतः: उसी का पालन करना चाहिये। इस व्रत को छोड़कर दूसरा कोई मनुष्यों के लिये हित कारक व्रत नहीं है। यह व्रत सब के लिये धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकाम भाव रखने वाले सभी मनुष्यों, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, बालकों, दासों, दासियों तथा देवता आदि सभी देहधारियों के लिये यह श्रेष्ठ व्रत हित कारक बताया गया है।

माघ मास के कृष्ण पक्ष में शिवरात्रि तिथि का विशेष महात्म्य बताया गया है। जिस दिन आधी रात के समय तक वह तिथि विद्यमान हो, उसी दिन उसे व्रत के लिये ग्रहण करना चाहिये । शिवरात्रि करोडों हत्याओं के पाप का नाश करने वाली है।

केशव ! उस दिन सबेरे से लेकर जो कार्य करना आवश्यक है, उसे प्रसनंतापूर्वक तुम्हें बता रहा हूँ; तुम ध्यान देकर सुनो।

बुद्धिमान‌ पुरुष सबेरे उठकर बड़े आनन्द के साथ स्नान आदि नित्य कर्म करे। आलस्य को पास न आने दे। फिर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिवत्‌ पूजन करके मुझ शिव को नमस्कार करने के पश्चात‌ उत्तम रीति से संकल्प करें।

— संकल्प —
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोSस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रत॑ तब ॥

तब प्रभावाहेवेश निर्विघ्नेननिर्विघ्ननेंन भवेदिति।
कामद्या: शस्त्रवो मां वै पीड़ाँ कुर्वन्तु नैव हि।

आपको नमस्कार है। देव! मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ। देवेश्वर ! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हों और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें।

 ऐसा संकल्प करके पूजन सामग्री का संग्रह करें और उत्तम स्थान में जो शास्त्र प्रसिद्ध शिवलिंग हो, उसके पास रात में जाकर स्वयं उत्तम विधि-विधान का सम्पादन करें; फिर शिव के दक्षिण या पश्चिम भाग में सुन्दर स्थान पर उनके निकट ही पूजा के लिये संचित सामग्री को रखे। तदनंतर श्रेष्ठ पुरुष वहाँ फिर स्नान करें। स्नान के बाद सुन्दर वस्त्र और उप वस्त्र धारण करके तीन बार आचमन करने के पश्चात‌ पूजन आरम्भ करे। जिस मन्त्र के लिये जो द्रव्य नियत हो, उस मन्त्र को पढ़कर उसी द्रव्य द्वारा पूजा करनी चाहिये। बिना मन्त्र के महादेवजी की पूजा नहीं करनी चाहिये। गीत, वाद्य, नृत्य आदि के साथ भक्तिभाव से सम्पन्न हो रात्रि के प्रथम पहर में पूजन करके विद्वान‌ पुरुष मन्त्र का जप करें। यदि मन्त्रज्ञ पुरुष उस समय श्रेष्ठ पार्थिव लिंग का निर्माण करें तो नित्य कर्म करने के पश्चात‌ पार्थिव लिंग का ही पूजन करें। पहले पार्थिव बनाकर पीछे उसकी विधिवत्‌ स्थापना करें। फिर पूजन के पश्चात‌ नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान‌ वृषभध्वज को संतुष्ट करें। बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि उस समय शिवरात्रि-व्रत के महात्म्य का पाठ करे।

श्रेष्ठ भक्त अपने व्रत की पूर्ति के लिये उस महात्म्य को श्रद्धा पूर्वक सुने। रात्रि के चारों पहरों में चार पार्थिव लिंगों का निर्माण करके आवाहन से लेकर विसर्जन तक क्रमशः: उनकी पूजा करें और बड़े उत्सव के साथ प्रसन्नता पूर्वक जागरण करें। प्रातःकाल स्नान करके पुन: वहाँ पार्थिव शिव का स्थापन और पूजन करें।

इस तरह व्रत को पूरा करके हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर बारंबार नमस्कार पूर्वक भगवान‌ शम्भु से इस प्रकार प्रार्थना करें।

— प्रार्थना एवं विसर्जन —

नियमों यो महादेव कृतश्चैव॒ त्वदाज्ञया।
विसृज्य्ते मया स्वामिन व्रतं जांतमनुत्तमम॥

ब्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टों भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि॥

महादेव ! आप की आज्ञा से मैंने जो व्रत ग्रहण किया था, स्वामिन्‌ ! वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया। अतः अब उसका विसर्जन करता हूँ। देवेश्वर शर्व ! यथाशक्ति किये गये इस व्रत से आप आज मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।

तत्पश्चात शिव को पुष्पांजलि समर्पित करके विधिपूर्वक दान दे। फिर शिव कों नमस्कार करके व्रत सम्बन्धी नियम का विसर्जन कर दे। अपनी शक्ति के अनुसार शिव भक्त ब्राह्मणों, विशेषतः: संन्यासियों को भोजन कराकर पूर्णतया संतुष्ट करके स्वयं भी भोजन करें।

हरे ! शिवरात्रि को प्रत्येक प्रहर में श्रेष्ठ शिवभक्तों को जिस प्रकार विशेष पूजा करनी चाहिये, उसे मैं बताता हूँ; सुनो !

प्रथम प्रहर की पूजा —

प्रथम प्रहर में पार्थिव लिंग की स्थापना करके अनेक सुन्दर उपचारों द्वारा उत्तम भक्ति भाव से पूजा करें। पहले गन्ध, पुष्प आदि पाँच द्रव्यों द्वारा सदा महादेव जी की पूजा करनी चाहिये। उस उस द्रव्य से सम्बन्ध रखने वाले मन्त्र का उच्चारण करके पृथक्‌-पृथक्‌ वह द्रव्य समर्पित करे। इस प्रकार द्रव्य समर्पण के पश्चात‌ भगवान‌ शिव को जलधारा अर्पित करे। विद्वान पुरुष चढ़े हुए द्रव्यों को जलधारा से ही उतारे। जलधारा के साथ-साथ एक सौ आठ मन्त्र का जप करके वहाँ निर्गुण-सगुण रूप शिव का पूजन करें।

गुरु से प्राप्त हुए मन्त्र द्वारा भगवान्‌ शिव की पूजा करे। अन्यथा नाम मन्त्र द्वारा सदाशिव का पूजन करना चाहिये। विचित्र चन्दन, अखण्ड चावल और काले तिलों से परमात्मा शिव की पूजा करनी चाहिये। कमल और कनेर के फूल चढ़ाने चाहिये।

आठ नाम-मन्त्रों द्वारा शंकर जी को पुष्प समर्पित करे। वे आठ नाम इस प्रकार हैं –

  1. भव
  2. शर्व
  3. रुद्र
  4. पशुपति
  5. उग्र
  6. महान
  7. भीम
  8. और ईशान।

इनके आरम्भ में श्री और अन्त में चतुर्थी विभक्ति जोड़कर श्रीभवाय नमः इत्यादि नाम मस्त्रों द्वारा शिव का पूजन करे। पुष्प-समर्पण के पश्चात्‌ धूप, दीप और नैवेद्य निवेदन करें। पहले प्रहर में विद्वान‌ पुरुष नैवेद्य के लिये पकवान बनवा ले। फिर श्रीफल युक्त विशेष अर्ध्य देकर ताम्बूल समर्पित करे। तदनन्तर नमस्कार और ध्यान करके गुरु के दिये हुए मन्त्र का जप करें।

गुरुदत्त मन्त्र न हो तो पंचाक्षर (नम:शिवाय ) मन्त्र के जप से भगवान्‌ शंकर को संतुष्ट करें, धेनु मुद्रा दिखाकर उत्तम जल से तर्पण करें। पश्चात‌ अपनी शक्ति के अनुसार पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे। फिर जब तक पहला प्रहर पूरा न हो जाय, तब तक महान उत्सव करते रहे।

दूसरे प्रहर की पूजा —

दूसरा प्रहर आरम्भ होने पर पुन: पूजन के लिये संकल्प करें। अथवा एक ही समय चारों प्रहरों के लिये संकल्प करके पहले प्रहर की भाँति पूजा करता रहे। पहले पूर्वोक्त द्रव्यों से पूजन करके फिर जलधारा समर्पित करें। प्रथम प्रहर की अपेक्षा दुगुने मन्त्रों का जप करके शिव की पूजा करे। पूर्वोक्त तिल, जौ तथा कमल-पुष्पों से शिव की अर्चना करें। विशेषतः: बिल्वपत्रों से परमेश्वर शिव का पूजन करना चाहिये। दूसरे प्रहर में बिजौरा नीबू के साथ अर्घ्य देकर खीर का नैवेद्य निवेदन करें।

जनार्दन! इसमें पहले की अपेक्षा मंत्रो की दुगुनी आवृत्ति करनी चाहिये। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे। शेष सब बातें पहले की ही भाँति तब तक करता रहे, जब तक दूसरा प्रहर पूरा न हो जाये।

तीसरे प्रहर की पूजा —

तीसरे प्रहर के आने पर पूजन तो पहले के समान ही करें; किंतु जौ के स्थान में गेहूँ का उपयोग करें और आक के फूल चढ़ाये। उसके बाद नाना प्रकार के धूप एवं दीप देकर पुए का नैवेद्य भोग लगाये। उसके साथ भाँति-भाँति के शाक भी अर्पित करें। इस प्रकार पूजन करके कपूर से आरती उतारे। अनार के फल के साथ अर्घ्य दे और दूसरे प्रहर की अपेक्षा दुगुना मन्त्र जप करें।

तदनंतर दक्षिणा सहित ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करें और तीसरे प्रहर के पूरे होने तक पूर्ववत्‌ उत्सव करता रहे।

चौथा प्रहर की पूजा –

चौथा प्रहर आने पर तीसरे प्रहर की पूजा का विसर्जन कर दे। पुन: आवाहन आदि करके विधिवत्‌ पूजा करें। उड़द, कँगनी, मुँग, सप्तधान्य,शंखीपुष्प तथा बिल्वपत्रों से परमेश्वर शंकर का पूजन करें। उस प्रहर में भाँति-भाँति की मिठाइयों का नैवेद्य लगाये अथवा उड़द के बड़े आदि बनाकर उनके द्वारा सदाशिव को संतुष्ट करें। केले के फल के साथ अथवा अन्य विविध फलों के साथ शिव को अर्घ्य दे। तीसरे प्रहर की अपेक्षा दूना मन्त्र जप करे और यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करें। गीत,वाद्य तथा नृत्य से शिव की आराधना पूर्वक समय बिताये। भक्तजनों को तब तक महान्‌ उत्सव करते रहना चाहिये, जब तक अरुणोद्य न हो जाय। अरुणोदय होने पर पुनः स्नान करके भांति-भांति के पूजनोपचारों और उपहारों द्वारा शिव की अर्चना करें। तत्पश्चात‌ अपना अभिषेक कराये, नाना प्रकार के दान दे और प्रहर की संख्या के अनुसार ब्राह्मणों तथा संन्यासियों को अनेक प्रकार के भोज्य-पदार्थों का भोजन कराये। फिर शंकर को नमस्कार करके पुष्पांजलि दे और बुद्धिमान‌ पुरुष उत्तम स्तुति करके निम्नांकित मंत्रों से प्रार्थना करें —

सुखदायक कृपानिधान शिव! मैं आपका हूँ। मेरे प्राण आप में ही लगे हैं और मेरा चित्त सदा आपका ही चिन्तन करता है। यह जानकर आप जैसा उचित समझें, वैसा करें। भूतनाथ! मैंने जानकर या अनजान में जो जप और पूजन आदि किया है, उसे समझकर दया सागर होने के नाते ही आप मुझ पर प्रसन्न हों। उस उपवास व्रत से जो फल हुआ हो, उसी से सुखदायक भगवान‌ शंकर मुझ पर प्रसन्न हों । महादेव ! मेरे कुल में सदा आपका भजन होता रहे। जहाँ के आप इष्ट देवता न हों, उस कुल में मेरा कभी जन्म न हो।

इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात‌ भगवान‌ शिव को पुष्पांजलि समर्पित करके ब्राह्मणों से तिलक और आशीर्वाद ग्रहण करें। तदनंतर शम्भु का विसर्जन करें। जिसने इस प्रकार व्रत किया हो, उससे मैं दूर नहीं रहता। इस व्रत के फल का वर्णन नहीं किया जा सकता। मेरे पास ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे शिवरात्रि-व्रत करने वाले के लिये मैं दे न डालूँ। जिसके द्वारा अनायास ही इस व्रत का पालन हो गया, उसके लिये भी अवश्य ही मुक्ति का बीज बो दिया गया। मनुष्यों को प्रतिमास भक्ति पूर्वक शिवरात्रि-व्रत करना चाहिये। तत्पश्चात‌ इसका उद्यापन करके मनुष्य सांगोपांग फल लाभ करता है। इस ब्रत का पालन करने में मैं शिव निश्चय ही उपासक के समस्त दुःखों का नाश कर देता हूँ और उसे भोग-मोक्ष आदि सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।

सूतजी कहते हैं – महर्षियों ! भगवान‌ शिव का यह अत्यन्त हित कारक और अद्भुत वचन सुनकर श्री विष्णु अपने धाम को लौट आये। उसके बाद इस उत्तम व्रत का अपना हित चाहने वाले लोगों में प्रचार हुआ। किसी समय केशव ने नारदजी से भोग और मोक्ष देने वाले इस दिव्य शिवरात्रि-व्रत का वर्णन किया था।

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आभार – श्री गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा

स्रोत – श्री संक्षिप्त महापुराण, पेज संख्या – 562

कोटिरुद्र संहिता / अध्याय ३७-३८ – भगवान शिव को संतुष्ट करने वाले व्रतों का वर्णन, शिवरात्रि-व्रत की विधि एवं महिमा का कथन

Last Update: February 26, 2025