अपनी भक्ति को भगवान्, देवी या किसी भी देवता के प्रति भक्ति को दृढ़ बनाने के लिए आप अपने भगवान् के साथ कोई न कोई सम्बन्ध स्थापित कर ले।

अब आप पूछेंगे की कैसा सम्बन्ध?

अपने सम्बन्ध को विचारने के लिए आपको अपनी ज़िंदगी में झांककर देखना होगा कि आप के जीवन मैं कौन सा सम्बन्ध गायब है या अर्थात नहीं है, या जो है उनसे सम्बन्ध किसी कारणवश अच्छे नहीं है।

जैसे की बड़ा भाई, पिता, माता या माता पिता, या ऐसा सम्बन्धी जिसके आगे आप झुकते हो और प्रेम भी करते हो। अर्थात आदर देते हो, और थोड़ी बहुत बात भी मानते हो।

अब आप पूछेंगे कि “ठीक है भगवान् मेरे सम्बन्धी हो गए अब आगे क्या?

अब मैं कहूंगा कि अब आप जो भी आपका उस सम्बन्धी के प्रति कर्तव्य हो वो करना चाहिए। अब जब सम्बन्धी है तो जिम्मेदारी भी आपकी होगी –

जैसे की (मंत्र या पूजा नहीं भी आता हो तब भी ) –

  • रोज़ रोज़ उन्हें नहलाना
  • रोज़ रोज़ उन्हें पुष्प दे सकते है।
  • जो आप खाते है वो आप उन्हें खिला सकते है।
  • कभी कभी उनके लिए फल लाकर उनको चकित कर सकते है। या फिर जिसका जैसा बजट हो।
  • कभी कभी उनके लिए चॉकलेट भी ला सकते है।
  • आते जाते उन्हें राम राम या नमस्कार करे, प्रेम के साथ।
  • अपने पूर्वजों का नाम जिसे सरनेम कहते है और उनकी याद कभी न छोड़े।
  • कुछ नास्तिक लोग सबसे पहले किसी सीधे साधे व्यक्ति से उसका सरनेम छुड़वाते है। इसके लिए कई प्रकार के प्रोपेगंडा वाले भ्रमिक तथ्य बताते है। सरनेम छूटने से पूर्वजों की निशानी मिट जाती है, उनका वंश की पहचान मिट जाती है जिसके लिए उन्होंने अपनी पीढ़ी को भविष्य के लिए बचाकर रखा था।

क्युकी श्री भगवान् तो अपने भक्तो के दास है, जिनके भगवान् भक्तो के दास है आखिर ऐसे भगवान् से कौन अपना रिश्ता नहीं बनाना चाहेगा? है न?

एक बार आप भी बिना स्वार्थ अर्थात निस्वार्थ भाव से भगवान् से सम्बन्ध बनाकर तो देखिये। आप चाहे किसी भी जाति या धर्म के हो। कोई पूजा पाठ नहीं करते हो तब भी कोई बात नहीं। बस उन्हें अपने सम्बन्धी के रूप में बुलाकर देखिये।

योग्यता –

अगर आपकी आत्मा कुछ भी अच्छा बुरा करने से पहले आपको रोकने और समझाने लगे तो समझिये स्वयं भगवान् आपसे कुछ कहना चाहते है। क्या आप ऐसे भगवान् से सम्बन्ध नहीं बना सकते?

भक्ति की विशेषताएं –

  • ऐसा सुनने में आता है कि भक्ति के लिए आपको किसी भी कर्म कांड की आवश्यकता नहीं होती है।
  • भगवान् को सबसे प्रिय भक्ति है।
  • अधर्मी या नास्तिक लोग भगवान की प्रिय भक्ति पर ही सबसे ज्यादा टारगेट करते है, उन्होंने तो भक्त शब्द को किसी नेता से जोड़कर, भक्ति शब्द की महिमा पर भी वार किया है।
  • भक्ति के लिए आपको किसी भी यम और नियम की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ सत्य को धारण करने की कोशिश शुरू कर सकते है। क्युकी झूठ से बड़े से बड़ा रिश्ता टूट जाता है, तो आपका और भगवान् का रिश्ता भी टूट सकता है। अर्थात भक्ति की डोर टूट सकती है।

तो अब आप कलयुग में भगवान को कैसे प्राप्त करें? ये सोचना बंद करे और स्वयं अनुभव करे कि भगवान को कैसे महसूस करें, भगवत कृपा कैसे होती है। अपने ही सम्बन्धी  से इतना प्रेम करना की आप उनके भगत बन जाए तो समझो उनकी भगवद कृपा की वरसात हो रही है।

भगवान के प्रति गलत विचार आना –

यह भक्ति की प्रथम वाधा है। लेकिन आप अभ्यास और प्रयास करना न छोड़े क्युकी आपका प्रेम निस्वार्थ और निष्कपट है तो चिंता की आवश्यकता नहीं है, ये भ्रम रुपी बहरूपियाँ है। खुद ही नष्ट हो जायेगा। मेरे साथ तो ये अक्सर होता रहता है। लेकिन जब अपने विचारो से जीत जाता हूँ तो बड़ा स्वतंत्र और सुख का अनुभव होता है।

तो भगवान से अपनेपन का रिश्ता बनाकर तो देखिये, अगर मिलेगा नहीं, कुछ तो जायेगा भी नहीं।

एक बार करके तो देखिये और कमेंट कीजिये कि भगवन से संबंध बनाने के कारण आपकी भक्ति दृढ़ होने का पैरामीटर घटा है या बढ़ा है ?

 

दासों का दास – प्रदीप सिंह तोमर

Disclaimer – यह ब्लॉग पोस्ट लेखक के अपने मनोभाव है।

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Last Update: जुलाई 26, 2023