संसार में जन्म लेने वाले सभी मनुष्यों को त्रिविध तापों से गुजरना ही पड़ता है। ये किसी का भी पक्षपात नहीं करते और एकसमान रूप से सबको ग्रस्त और त्रस्त करते हैं। यहाँ त्रिविध का अर्थ है “तीन प्रकार के” और “ताप” का अर्थ है अर्थात जलन।
त्रिविध ताप कितने है?
आपको नाम का अर्थ बताते ही आपको पता चला गया होगा कि तीन प्रकार के दुःख होते है जिनसे प्रत्येक मनुष्य कभी न कभी अवश्य पीड़ित होता है।
ये त्रिविध ताप हैं –
- आधिभौतिक (अर्थात भौतिक कारणों से प्राप्त दुःख)
- आधिदैविक (अर्थात दैवीय कारणों से प्राप्त दुःख)
- आध्यात्मिक (अर्थात अज्ञानता के फलस्वरूप प्राप्त दुःख)
अब हम इनके बारे में विषय में जानने का प्रयास करते हैं।
1. आधिभौतिक ताप –
आधिभौतिक ताप सांसारिक वस्तुओं अथवा जीवों से प्राप्त होने वाला कष्ट होता है। अर्थात संसार के नित्य कर्मो के दौरान उत्पन्न दुःख को आधिभौतिक ताप कहते है। ये दुःख परिवार, नौकरी, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज, इत्यादि किसी भी जगह पर उत्त्पन्न हो जाते है। अपने आप को सही और गलत को सिद्ध करने के चक्कर में मनुष्य नाना प्रकार के कष्टों को सहन करने के लिए विवश हो जाता है।
तो जो कष्ट भौतिक जगत के बाह्य कारणों से होता है उसे आधिभौतिक या भौतिक ताप कहा जाता है। शत्रु आदि स्वयं से परे वस्तुओं या जीवों के कारण ऐसा कष्ट उपस्थित होता है।
2. आधिदैविक ताप –
आधिदैविक ताप दैवी शक्तियों द्वारा दिये गये या पूर्वजन्मों में स्वयं के किए गये कर्मों से प्राप्त कष्ट कहलाता है।
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अगर हम आज के विज्ञान के रूप में इसे समझे तो पाएंगे की –
आत्मा क्या है?
आत्मा को अगर ऊर्जा समझे तो आत्मा एक प्रकार की ऊर्जा है वह अपने मुख्य ऊर्जा स्रोत से निकली है जिन्हे परमात्मा कहते है। जैसे की सूर्य। ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती सिर्फ अपने एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। त्वरित क्षीण अवश्य होता है लेकिन ऊर्जा पूरी तरह से नष्ट कभी नहीं होती है। ऊर्जा का क्षीण या प्रवल होना उसके वर्त्तमान के कर्मो पर निर्भर करता है और क्षीण या प्रवल होने से विविध योनियों में जन्म लेता रहता है।
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शुभाशुभ कर्मो का फल भोगते हुए कई प्रकार के उतार-चढावों को पार करना मानो उस ऊर्जा की नियति बन जाती है। इसके साथ-साथ अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ओलावृष्टि, सुनामी, बाढ़, भूकम्प आदि दैविक तापों उसे सताते रहते हैं, मनुष्य को उनसे मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह इन सब को भोग नहीं लेता।
सांसारिक विघ्न-बाधाएँ भी उसे कदम-कदम पर डराती रहती हैं और तब मनुष्य विवश होकर अपने खोल में एक कछुए की भाँति सिमट जाता है। इसे ही वह अपने भाग्य का फैसला मानकर अपना सर झुक लेता है।
3. आध्यात्मिक ताप –
आध्यात्मिक ताप अज्ञान जनित कष्ट होते हैं। मनुष्य जब तक ज्ञानार्जन नहीं करता तब तक वह संसार में तिरस्कृत होता रहता है। हर दूसरा इन्सान उसे दुत्कार करके चला जाता है।
वह व्यक्ति विद्वानों की सभा में उसी प्रकार सुशोभित नहीं होता जैसे हंसों की सभा में कौआ। यह कष्ट उसके लिए असहनीय होता है। जब तक मनुष्य स्वाध्याय नहीं करेगा और सज्जनों की संगति में नहीं रहेगा तब तक वह अपनी अज्ञानता को कोसता रहेगा।
आध्यात्मिक ताप दूर करने के लिए मनुष्य को ईश्वर के समीप जाना चाहिए। इसमें आत्मा या अपने को अविद्या, राग, द्वेष, मू्र्खता, बीमारी आदि से मन और शरीर को कष्ट होता है। भगवद् प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए। यम-नियम के साथ-साथ धर्म के नियमों का भी पालन करना चाहिए।
धर्म के लक्षण हैं –
धृति क्षमा दमोSस्तेयं शोचमिन्द्रियनिग्रहः।
धी विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
अर्थात धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रियों का संयम, सद् बुद्धि, विद्या, सत्य बोलना, क्रोध न करना- धर्म के दस लक्षण हैं।
आध्यात्मिक ताप से मुक्ति के लिए इस प्रकार अध्ययन करे –
- सर्वप्रथम श्रीमद भगवद गीता
- फिर महापुराण
- फिर उपनिषद
- फिर वेद
भगवान कृष्ण ने मनुष्य को गीता में समझते हुए कहा है- ‘मामेकं शरण व्रज’ अर्थात बस केवल मेरी शरण में आओ। इन तीनो प्रकार के कष्टों से मुक्ति का आधारभूत तरीका स्वअध्ययन करते हुए सदाचरण को ही बताया गया है जिसके सहारे मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब कुछ प्राप्त करता है।
स्रोत – पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों से।
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FAQs –
तीन ताप कौन से हैं?
ताप तीन प्रकार का माना गया है— आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ।
दैहिक, दैविक, भौतिक ताप क्या है?
दैहिक अर्थात देह में या देह से व्याप्त दुःख
दैविक अर्थात पिछले जन्म के कुकर्म के अनुसार मिलने वाले दुःख
भौतिक ताप अर्थात संस्कार में प्राकर्तिक रूप से मिलने वाले दुःख
संसार में कितने प्रकार के दुख हैं?
दुःख तीन प्रकार के माने गए हैं— त्रिविध ताप – आध्यात्मिक, आधिभौतिक और अघिदैविक
What are three Taap?
In this world, living beings suffer in three ways, which are called triple heat (sorrow). These are – spiritual heat, semi-physical heat, and semi-divine heat.
meaning
- Material heat means worldly sorrow
- Body heat means pain in the body
- Spiritual heat i.e. present sufferings according to past deeds