पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए।
हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि –
- सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है?
- फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है?
- और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए।
- संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए?
- फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है?
- और सबसे महा भयंकर पाप कौन है?
- फिर मानस रोगों को समझाकर कहिए। आप सर्वज्ञ हैं और मुझ पर आपकी कृपा भी बहुत है।
फिर
सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है?
काकभुशुण्डिजी ने कहा – हे तात अत्यंत आदर और प्रेम के साथ सुनिए। मैं यह नीति संक्षेप से कहता हूँ। –
दुर्लभ शरीर – मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है। ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं।
नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही॥
नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥
काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं॥