पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए।
हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि –
- सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है?
- फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है?
- और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए।
- संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए?
- फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है?
- और सबसे महा भयंकर पाप कौन है?
- फिर मानस रोगों को समझाकर कहिए। आप सर्वज्ञ हैं और मुझ पर आपकी कृपा भी बहुत है।
फिर कहिए कि
श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है?
काकभुशुण्डिजी ने कहा– हे तात अत्यंत आदर और प्रेम के साथ सुनिए। मैं यह नीति संक्षेप से कहता हूँ। –
संतों का अभ्युदय सदा ही सुखकर होता है, जैसे चंद्रमा और सूर्य का उदय विश्व भर के लिए सुखदायक है। वेदों में अहिंसा को परम धर्म माना है और परनिन्दा के समान भारी पाप नहीं है।
संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी॥
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा। पर निंदा सम अघ न गरीसा॥
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