अगर आप किसी भी तीर्थ, मंदिर, दर, चौखट या किसी भी धर्म के धर्म स्थल पर कृपा प्राप्त करने जा रहे है तो मेरी इस जानकारी पर जरूर ध्यान दे।
पोस्ट टाइटल (After all, why should not go to any pilgrimage or temple?) के हिसाब से अपने समझा होगा की मैं आपको मंदिर या तीर्थ जाने को रोक रहा हूँ। ऐसा नहीं है पहले इस नकारात्मक भाव को एक तरफ रख लीजिये तब आप इस बात को समझेंगे।
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आपको पता होगा कि?
आपको पता होगा कि महाभारत के समय या उससे पहले सिर्फ कुछ लोगो जैसे की महात्मा विदुर, भीष्म पितामह, माता कुंती इत्यादि को पता था कि श्री कृष्ण जी भगवान् है बाकी कुछ लोग जैसे की दुर्योधन, शिशुपाल, धृतराष्ट्र इत्यादि उन्हें चमत्कारी, छलिया, माखन चोर इत्यादि समझते थे। ऐसा क्यों? उन्हें क्यों नहीं पता चला की सामने वाला व्यक्ति भगवान् भी हो सकता है।
आपको ये भी पता होगा कि –
आपको ये भी पता होगा कि ज्यादातर शास्त्रों के आगे वाला पृष्ठ या अध्याय उस शास्त्र का की महिमा अर्थात माहात्म्य कहने वाला होता है। ऐसा क्यों?
वो इसलिए क्युकी जब तक आपको उस शास्त्र की महिमा नहीं पता होगी तब तक आप उस शास्त्र के प्रति दुर्योधन, शिशुपाल, धृतराष्ट्र जैसा भाव प्रकट हो सकते है। जिन लोगो को भगवान् श्री कृष्ण की महिमा पता नहीं थी तो वे लोग उनके प्रति वैसा ही भाव रखते थे।
लेकिन
जिन महापुरुषों के पास ज्ञान दृष्टि थी, वे भगवान् श्री कृष्ण की महिमा जानते थे। ज्ञान दृष्टि कोई भी मनुष्य प्राप्त कर सकता है। उसके लिए आपको शास्त्रों का अध्ययन, मनन, चिंतन करना होगा। एक समय ऐसा आता है जब आप निधिध्यासन के बाद साधना वाली स्थिति तक पहुंचते है। उस स्थिति के समय ज्ञान दृष्टि प्रकट होना शुरू हो जाती है।
तो इस ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक था कि आखिर क्यों किसी भी तीर्थ या मंदिर नहीं जाना चाहिए।
तो निष्कर्ष निकलता है कि जब तक आप उस तीर्थ या मंदिर की शास्त्रों में महिमा या गुरु के द्वारा महिमा नहीं जान लेते तब तक आपका जाना व्यर्थ तो नहीं, लेकिन उतना महत्वपूर्ण भी नहीं होता। तीर्थ या मंदिर जाने से भक्ति में बड़ोत्तरी निसंदेह हो जाती है, लेकिन लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते।
आज इंटरनेट का युग है, सूचानाओं का युग है। अगर शास्त्र या गुरु तक नहीं पहुंच सकते तो शुरुआत इंटरनेट से ही किसी भी तीर्थ या मंदिर का माहात्म्य पता करके ही यात्रा करे।
आप अनुभव करेंगे की आपकी यात्रा पहले से ज्यादा सुखद, और चमत्कारी प्रतीत होगी।
बिना जाने किसी भी धर्म की, किसी भी दर या चौखट पर सर न पटके। उसका कोई परिणाम निकलने वाला नहीं हो सकता है, उल्टा दोष लग सकता है। सबसे पहले पितृ दोष लग सकता है, जैसे कि कोई अपराध करने पर घर में माता पिता सबसे पहले डांटते है, बाद में कानून या पुलिस दोष के अनुसार सजा तय करती है । जिन्हे कर्मो की सजा या कर्मो का फल कहा जा सकता है।
दोष क्यों?
जब हम किसी भी धर्म के विशेष जगह पर जाते है तो स्वार्थवश प्रार्थना भी करते है। लेकिन समस्या तब है जब आप प्रार्थना के बदले कोई संकल्प या वचन देकर आ जाते है, जैसे कि मैं फिर आयूंगा, भोज करूँगा, घंटा चढायूँगा, इत्यादि और बाद में आप भूल जाते है। ऐसे में आप उस विशेष स्थान के देव, यक्ष, राक्षस, आत्मा, इत्यादि के क्रोध का पात्र बन सकते है। क्रोध नहीं मिला तो श्राप या हायतो मिल ही सकता है।
इसलिए भगवान् श्री कृष्ण ने श्रीमदभगवदगीता में बिल्कुल साफ़-साफ़ कहा है जो व्यक्ति देव, यक्ष, राक्षस, आत्मा इत्यादि को पूजता है वो उनको प्राप्त होता है, जो मेरी भक्ति में प्रेम से श्रदा और विश्वास रखता है वो मुझे प्राप्त होता है।
डिस्क्लेमर – यह ब्लॉग पोस्ट स्वयं के अनुभव पर आधारित है। आप भी अपना अनुभव कमेंट के द्वारा अवश्य बताये।