दक्ष तथा क्रिया से उत्पन्न पुत्री ‘सन्नति’ से क्रतु ऋषि ने विवाह रचाया था। इसी दम्पत्ति से साठ हज़ार ‘बालखिल्य’ नाम के पुत्र हुए थे।
बालखिल्य ऋषि हमारे अंगूठे के आकार के हैं और ये 60000 ऋषि है जो सूर्य भगवान विवस्वान के रथ पर बैठते हैं, जो सूर्य भगवान् की तरफ मुख करके सूर्य भगवान की महिमा करते हुए वैदिक मंत्रोच्चारण करते हैं और तपस्या करते रहते है और अपनी तपस्या का फल भगवान् सूर्य को देते रहते है।
एक समय कश्यप ऋषि पुत्र कामना से यज्ञ कर रहे थे, इस यज्ञ में देवता भी उनके सहायक थे। कश्यप ऋषि ने इन्द्र तथा बालखिल्य मुनियों को समिधा (यज्ञ में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियां ) लाने का कार्य सौंपा। इन्द्र तो बलिष्ठ थे, उन्होंने वहां समिधाओं का ढेर लगा दिया। लेकिन बालखिल्य मुनिगण अंगूठे के बराबर आकार के थे तथा सब मिलकर पलाश की एक टहनी ला रहे थे, अर्थात जब ये छोटे ऋषि यज्ञ के लिए लकड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा उठाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन्हें इस प्रकार पलाश की टहनी लाते देखकर, इन्द्र ने उनका परिहास किया।
इससे वे ऋषि इन्द्र से रुष्ट होकर, किसी दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति की कामना से प्रतिदिन विधिपूर्वक आहुति देने लगे। क्युकी उनकी आकांक्षा थी कि इन्द्र से सौ गुने अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी, दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति हो।
इससे इन्द्र बहुत संतप्त होकर कश्यप ऋषि के पास पहुँचे। कश्यप इन्द्र के साथ बालखिल्य मुनियो के पास पहुँचे। इन्द्र को भविष्य में घमंण्ड न करने का आदेश देते हुए कश्यप ऋषि ने उन सभी बालखिल्य मुनियों को समझाया-बुझाया।
लेकिन बालखिल्य मुनियों की तपस्या भी व्यर्थ नहीं जा सकती थी, अत: उन्होंने कहा-“हे कश्यप! तुम पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रहे हो। तुम्हारा पुत्र ही वह पराक्रमी, शक्तिशाली प्राणी होगा, वह पक्षियों का इन्द्र होगा।”
ऋषि बालखिल्य द्वारा इस तरह के शक्तिशाली यज्ञ के साथ सबसे शक्तिशाली गरुड़ का जन्म कश्यप ऋषि के घर में हुआ। गरुड़ महाराज भगवान श्रीमन नारायण की सवारी हुए ।
ऐसा भी कहा जाता है कि बालखिल्य मुनि सूर्य से आने वाले अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन से बचाने में सभी जीवों की रक्षा करते हैं।
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