यह विल्व वृक्ष महादेव का ही रूप है। देवताओ ने भी इसकी स्तुति की है। फिर जिस किसी तरह से इसकी महिमा कैसे जानी जा सकती हैं।

तीनों लोकों में जितने पुण्य-तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वे सम्पूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में निवास करते हैं। जो पुण्यात्मा मनुष्य बिल्व के मूल में लिंग स्वरूप अविनाशी महादेवजी का
पूजन करता हैं, वह निश्चय ही शिवपद कों प्राप्त होता हैं। जो बिल्व की जड़ के पास जल से अपने मस्तक को सींचता है, वह सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल पा लेता है और वही इस भूतल पर पावन माना जाता है।

इस बिल्व की जड़ के परम उत्तम थाले को जल से भरा हुआ देखकर महादेव जी पूर्णतया संतुष्ट होते हैं। जो मनुष्य गन्ध, पुष्प आदि से बिल्व के मूलभाग का पूजन करता है, वह शिवलोक कों पाता है और इस लोक में भी उसकी सुख-संतति बढ़ती है।

जो बिल्व की जड़ के समीप आदरपूर्वक दीपावली जलाकर रखता है, वह तत्त्वज्ञान से सम्पन्न हो भगवान्‌ महेश्वर में मिल जाता है। जो बिल्व की शाखा थामकर हाथ से उसके
नये-नये पल्लव उतारता और उनसे उस बिल्व की पूजा करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

जो बिल्व की जड़ के समीप भगवान्‌ शिव में अनुराग रखने वाले एक भक्त कों भी भक्तिपूर्वक भोजन कराता है, उसे कोटिगुना पुण्य प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के पास शिवभक्त को खीर और घृत से युक्त अन्न देता है, वह कभी
दरिद्र नहीं होता ।


Source: – श्री शिव महापुराण – विद्धेश्वर संहिता  – पार्थिव पूजा की महिमा, शिव नैवैध भक्षण के विषय में निर्णय, तथा विल्व का माहात्म्य  (अध्याय २१-२२)

दंडवत आभार – श्रीगीताप्रेस गोरखपुर द्वारा मुद्रित

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Last Update: February 2, 2025