श्रीमददेवीभागवतमहापुराण – अथ त्रिंशोSध्याय:
श्रीराम और लक्ष्मणके पास नारदजी का आना और उन्हें नवरात्र व्रत करने का परामर्श देना, श्रीराम के पूछनेपर नारदजी का उनसे देवी की महिमा और नवरात्रव्रत की विधि बतलाना, श्रीराम द्वारा देवी का पूजन और देवी द्वारा उन्हें विजय का वरदान देना
व्यासजी बोले – इस प्रकार राम और लक्ष्मण परस्पर में परामर्श करके ज्यों ही चुप हुए, त्यों ही आकाश मार्ग से देवर्षि नारद वहाँ आ गये। उस समय वे स्वर तथा ग्राम से विभूषित अपनी महती नामक वीणा बजाते हुए तथा बृहद्रथन्तर साम का गायन करते हुए उनके समीप पहुँचे।
उन्हें देखते ही अमित तेज वाले श्रीराम ने उठकर उन्हें श्रेष्ठ पवित्र आसन प्रदान किया और तत्पश्चात् अर्घ्य तथा पाद्यसे उनकी पूजा की। भलीभाँति पूजा करने के बाद भगवान् श्रीराम हाथ जोड़कर खड़े हो गये और फिर मुनि के आज्ञा देने पर उनके पास ही बैठ गये। तब अपने अनुज लक्ष्मण के साथ बैठे हुए खिन्न-मनस्क राम से मुनीन्द्र नारद जी प्रेमपूर्वक कुशलक्षेम पूछने लगे।
नारदजी बोले – हे राघव! आप इस समय साधारण मनुष्य के समान शोकाकुल क्यों हैं ? मैं यह जानता हूँ कि दुष्ट रावण सीता कों हर ले गया है। जब मैं देवलोक में गया था, तभी मैंने वहाँ सुना कि अपनी मृत्यु को न जानने से ही मोह के वशीभूत होकर रावण ने जनकनन्दिनी का हरण कर लिया है। हे काकुत्स्थ ! आपका जन्म ही रावण के निधन के लिये हुआ है। हे नराधिप! इसी कार्यसिद्धि के लिये सीता का हरण हुआ है।
पूर्वजन्म में ये वैदेही एक मुनि की तपस्विनी कन्या थीं। उस पवित्र मुसकान वाली कन्या को रावण ने वन में तप करते हुए देखा। हे राघव! तब रावण ने उससे प्रार्थना की कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ। इस पर उसके द्वारा तिरस्कृत किये गये रावण ने
बलपूर्वक उसके केश पकड़ लिये।
हे राम! रावण के स्पर्श से दूषित अपनी देह को त्यागने की आकांक्षा रखती हुई उस तापसी मुनिकन्या ने अत्यन्त कुपित होकर उसे तत्काल यह घोर शाप दे दिया कि हे दुगरात्मन्! तुम्हारे विनाश के लिये मैं भूतल पर गर्भ से जन्म न लेकर एक श्रेष्ठ स्त्री के रूप में प्रकट होऊँगी–ऐसा कहकर उस तापसी ने अपना शरीर त्याग दिया। लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न यह सीता वही है; जिसे भ्रम वश माला समझकर नागिन को धारण करने वाले व्यक्ति की भाँति रावण ने अपने ही वंश का नाश करने के लिये हर लिया है।
हे काकुत्स्थ! आपका भी जन्म उसी रावण के नाश के लिये देवताओं के प्रार्थना करने पर अनादि भगवान् विष्णु के अंश से अजवंश में हुआ है। हे महाबाहो ! आप धैर्य धारण करें; वे किसी दूसरे के वश में नहीं हो सकतीं! वे सती धर्म परायण सीता लंका में दिन-रातआपका ध्यान करती हुई रह रही हैं। स्वयं इन्द्र ने एक पात्र में कामधेनु का दूध सीता को पीने के लिये भेजा था, उस अमृत तुल्य दूध को उन्होंने पी लिया है। वे कामधेनु के दुग्धपान से भूख-प्यास के दुःख से रहित हो गयी हैं। मैंने उन कमलनयनी को स्वयं देखा है।
हे राघवेन्द्र! मैं उस रावण के नाश का उपाय बताता हूँ। अब आप इसी आश्विन मास में श्रद्धापूर्वक नवरात्र व्रत कीजिये।
हे राम ! नवरात्र में उपवास तथा जप-होम के विधान से किया गया भगवती-पूजन समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। देवी को पवित्र बलि देकर तथा दशांश हवन करके आप पूर्ण शक्तिशाली बन जायँगे। पूर्वकाल में भगवान् विष्णु, शिव, ब्रह्मा तथा स्वर्ग-लोक में विराजमान इन्द्र ने भी इसका अनुष्ठान किया था।
हे राम! सुखी मनुष्य को इस ब्रत का अनुष्ठान करना चाहिये और कष्ट में पड़े हुए मनुष्य को तो यह ब्रत विशेष रूप से करना चाहिये।
हे काकुत्स्थ ! विश्वामित्र, भूगु, वसिष्ठ और कश्यप भी इस ब्रत को कर चुके हैं; इसमें सन्देह नहीं है। इसी प्रकार हरण की गयी पत्नी वाले गुरु बृहस्पति ने भी इस ब्रत को किया था। इसलिये हे राजेन्द्र ! रावण के वध तथा सीता की प्राप्ति के लिये आप इस ब्रत को कीजिये | पूर्वकाल में इन्द्र ने वृत्रासुर के वध के लिये तथा शिव ने त्रिपुरदैत्य के वध के लिये यह सर्वश्रेष्ठ ब्रत किया था।
हे महामते ! इसी प्रकार भगवान् विष्णु ने भी मधुदैत्य के वध के लिये सुमेरुपर्वत पर यह ब्रत किया था, अत: हे काकुत्स्थ! आप भी आलस्य रहित होकर विधिपूर्वक यह ब्रत कीजिये।
श्रीराम बोले – हे दयानिधे! आप सर्वज्ञ हैं, अत: मुझे विधिपूर्वक बताइये कि वे कौन देवी हैं, उनका प्रभाव क्या है, वे कहाँ से उत्पन्न हुई हैं, उनका नाम क्या है तथा वह ब्रत कौन-सा है ?
नारदजी बोले – हे राम ! सुनिये – वे देवी नित्य, सनातनी और आद्या शक्ति हैं, वे सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण कर देती हैं और अपनी आराधना से सभी प्रकार के कष्ट दूर कर देती हैं।
हे रघुनन्दन! वे ब्रह्मा आदि देवताओं तथा समस्त जीवों की कारणस्वरूपा हैं। उनसे शक्ति पाये बिना कोई हिल-डुल सकने में भी समर्थ नहीं है। वे ही मेरे पिता ब्रह्मा की सृष्टि-शक्ति हैं, विष्णु की पालन-शक्ति हैं तथा शंकर की संहार-शक्ति हैं। वे कल्याणमयी पराम्बा अन्य शक्तिरूपा भी हैं। इन तीनों लोकों में जो कुछ भी कहीं भी सत् या असत् पदार्थ है, उसकी उत्पत्ति में निमित्त कारण इस देवी के अतिरिक्त और कौन हो सकता है ?
इस सृष्टि के आरम्भ में जब ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, इन्द्रादि देवता, पृथ्वी और पर्वत आदि कुछ भी नहीं रहता, तब उस समय वे निर्गुणा, कल्याणमयी, परा प्रकृति ही परम पुरुष के साथ विहार करती हैं। वे ही बाद में सगुणा शक्ति बनकर सर्वप्रथम ब्रह्मा आदि का सृजन करके और उन्हें शक्तियाँ प्रदान कर तीनों भुवनों की सम्यक् रचना करती हैं। उन आदिशक्ति को जानकर प्राणी संसारबन्धन से मुक्त हो जाता है। विद्यास्वरूपा, वेदों की आदिकारण, वेदों को प्रकट करने वाली तथा परमा उन भगवती को अवश्य जानना चाहिये।
ब्रह्मादि देवताओं ने गुण-कर्म के विधानानुसार उनके असंख्य नाम कल्पित किये हैं, मैं कहाँ तक बताऊँ ? हे रघुनन्दन! ‘अ’ कार से लेकर ‘क्ष’ पर्यन्त सभी स्वरों तथा वर्णो के संयोग से उनके असंख्य नाम बनते हैं।
श्रीराम बोले – हे देवर्षे! इस नवरात्र व्रत का विधान मुझे संक्षेप में बताइये; मैं आज ही श्रद्धापूर्वक श्रीदेवी का विधिवत् पूजन करूँगा।
नारदजी बोले – हे राम! किसी समतल भूमि पर पीठासन बनाकर उस पर भगवती जगदम्बिका की स्थापना करके विधानपूर्वक नौ दिन उपवास कीजिये। हे राजन्! इस कार्य में मैं आचार्य बनूँगा; क्योंकि देवताओं के कार्य करने में मैं अधिक उत्साह रखता हूँ।
व्यासजी बोले – नारदजी का वचन सुनकर प्रतापी श्री राम ने उसे सत्य मानकर तदनुसार एक सुन्दर पीठासन बनवाकर उस पर अम्बिका की स्थापना की। ब्रतधारी भगवान् श्रीराम ने आश्विन मास लगने पर उस श्रेष्ठ पर्वत पर उन भगवती का पूजन किया । उपवास परायण श्रीराम ने यह श्रेष्ठ ब्रत करते हुए विधिवत् होम, बलिदान और पूजन किया। इस प्रकार दोनों भाइयों ने नारदजी के द्वारा बताये गये इस ब्रत को प्रेमपूर्वक सम्पन्न किया। उनसे सम्यक् पूजित होकर अष्टमी की मध्यरात्रि की वेला में भगवती दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर उन्हें साक्षात् दर्शन दिया। तदनन्तर भक्तिभाव से प्रसन्न उन भगवती ने पर्वत के शिखर पर स्थित होकर लक्ष्मण सहित राम से मेघ के समान गम्भीर वाणी में कहा।
देवी बोलीं – हे राम! हे महाबाहो! इस समय मैं आपके ब्रत से सन्तुष्ट हूँ। आप के मन में जो भी हो, उस अभिलषित वर को माँग लीजिये। आप पवित्र मनुवंश में नारायण के अंश से उत्पन्न हुए हैं। हे राम! देवताओं के प्रार्थना करने पर रावण के वध के लिये आप अवतरित हुए हैं। पूर्वकाल में मत्स्य रूप धारण कर भयानक राक्षस का वध करके देवताओं के हित की इच्छावाले आपने ही वेदोंकी रक्षा की थी। पुनः कच्छप के रूप में अवतार लेकर मन्दराचल को अपनी पीठ पर धारण किया, जिससे समुद्र का मन्न्थन करके [अमृतपान कराकर] देवताओं का पोषण किया था।
हे राम ! आपने वराह का रूप धारण कर अपने दाँतों की नोंक पर पृथ्वी को रख लिया और हिरण्याक्ष का वध किया था। हे राघव! हे राम! पूर्वकाल में नरसिंह का रूप धारणकर प्रह्लाद की रक्षा करके आपने हिरण्यकशिपु का वध किया था। इसी प्रकार पूर्वकाल में वामन का रूप धारण करके आपने बलि को छला था। उस समय इन्द्र का लघु भ्राता बनकर आपने देवताओं का महान् कार्य सिद्ध किया था। पुनः भगवान् विष्णु के अंश से जमदग्नि के पुत्र परशुराम के रूप में अवतरित होकर क्षत्रियों का अन्त करके आपने सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दे दी थी।
उसी प्रकार हे काकुत्स्थ ! रावण के द्वारा अत्यधिक सताये गये सभी देवताओं के प्रार्थना करने पर इस समय आप ही दशरथ पुत्र श्रीराम के रूप में अवतीर्ण हुए हैं।
हे नरोत्तम! देवताओं के अंश से उत्पन्न ये परम बलशाली वानर मेरी शक्ति से सम्पन्न होकर आपके सहायक होंगे। शेषनाग के अंशस्वरूप आपके ये अनुज लक्ष्मण रावण के पुत्र मेघनाद का वध करने वाले होंगे। हे अनघ! इस विषय में आपको सन्देह नहीं करना चाहिये। सन्त ऋतु के नवरात्र में आप परम श्रद्धा के साथ [पुनः] मेरी पूजा कीजिये। तत्पश्चात् पापी रावण का वध करके आप सुखपूर्वक राज्य कीजिये।
हे रघुश्रेष्ठ।! इस प्रकार ग्यारह हजार वर्षो तक भूतल पर राज्य करके पुनः आप देवलोक के लिये प्रस्थान करेंगे।
व्यासजी बोले – ऐसा कहकर भगवती दुर्गा वहीं अन्तर्धान हो गयीं और श्रीराम चंद्र जी ने प्रसन्न मन से उस ब्रत का समापन करके दशमी तिथि को विजयापूजन करके तथा अनेक विधि दान देकर वहाँ से प्रस्थान कर दिया। वानरराज सुग्रीव की सेना के साथ अपने अनुज-सहित विख्यात यशवाले तथा पूर्णकाम लक्ष्मीपति श्रीराम साक्षात् परमा शक्ति की प्रेरणा से समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ सेतु-बन्धन करके उन्होंने देवशत्रु रावण का संहार किया। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक देवी के उत्तम चरित्र का श्रवण करता है, वह अनेक सुखों का उपभोग करके परमपद प्राप्त कर लेता है। यद्यपि अन्य बहुत से विस्तृत पुराण हैं, किंतु वे इस श्रीमददेवीभागवत महापुराण के तुल्य नहीं हैं, ऐसी मेरी धारणा है।
श्रीमददेवीभागवत महापुराण – ॥ तृतीय: स्कन्धः समाप्त: ॥
श्रीमददेवीभागवतमहापुराण के अनुसार-
नवरात्रि कन्या भोज और नवरात्र व्रत-विधान क्या है?
नवरात्रि किन कन्याओं का पूजन नहीं करना चाहिए ?
जब श्री राम ने किया आश्विनमास नवरात्रि उपवास