इस प्रसंग (माता सीता द्वारा सहस्त्रवदन रावण का वध) का वर्णन अदभुत रामायण में है. ये संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य विशेष है. इस ग्रन्थ के प्रणेता ‘वाल्मीकि’ थे. अध्यात्म रामायण में श्री राम के मूल स्वरुप का तात्विक दृष्टि से वर्णन किया गया है तथा अदृभुत रामायण में आदिशक्ति के रूप में माता सीता का वर्णन किया गया है । इसमें कुल 27 सर्ग है जिसमे कुल श्लोक 1353 है।
इसमें माता सीता विकट रूप धारण करके रावण के भाई सहस्त्रवदन रावण का वध करती है। तब शांत करने के लिए श्री राम भी शक्तिरूपिणी सीता की सहस्त्रनाम से स्तुति करते है। इसमें श्री राम को ब्रह्म और माता सीता को शक्ति बताया गया है अतः सीता का माहात्म्य ही राम का माहात्म्य है।
अदभुत रामायण का यह प्रसंग इस प्रकार है –
रावण-वध के पश्चात् राम जब अयोध्या के राज्य को स्वीकार करते हैं, तब अनेक ऋषि, महर्षि आकर राम के पराक्रम का गुणगान करते हैं। यह सुनकर सीता हँस पड़ती हैं और कहती हैं कि रावण-वध के लिए की गई यह प्रशंसा परिहास-समान लगती है ।
मुनिजन विस्मित होकर इसका कारण पूछते हैं तब सीता सहस्त्रवदन रावण का वृत्तान्त उन्हें सुनाती हैं। –
सीता जब छोटी थी तब उसके पिता के घर एक ब्राह्मण चौमासे के भार महीने के लिए निवास करने आया था। सीता ने उसकी अच्छी तरह से सेवा-शुश्रूषा की, इसके बदले में ब्राह्मण ने इसे यह वृत्तान्त बताया था ।
विश्रवस मुनि की पत्नी कैकसी के दो पुत्र थे। दोनों का नाम रावण थे, बड़ा सहस्त्रवदन रावण और छोटा दशवदन रावण | सहस्त्रवदन रावण पुष्कर द्वीप में निवास करता है। वह इन्द्रादि देवताओं, क्रिन्नरों, गंधर्वों, विद्याधरो आदि को पराजित करके उनसे बालक्रीड़ा के समान खेल करता है, मेरु पर्वत को सरसों के समान, सागर को गोष्पद के समान तथा सारे लोक को तृण के समान मानता है। बड़े-बड़े वीर उसके लिए कोई गिनती में नहीं हैं। छोटा भाई दशवदन लंका में निवास करता है ।
आगे सीता कहती है, कि इन दो रावणों में से छोटे रावण का वध किया गया है, उसमें मुझे कोई आश्चर्य प्रतीत नहीं होता । सहस्रवदन का वध हो जाए तो सारा जगत स्वस्थ हो जाए ।
सीता से यह वृत्तान्त सुनकर राम उस सहस्त्रवदन रावण को मारने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। अपनी सारी सेना-सहित, भाइयों के साथ पुष्पक विमान में चढ़कर बे पुष्कर द्वीप पहुंच जाते हैं। सहस्रानन सहस्रस्कंध पर शासन किया करता था. रावण की तरह ये भी बहुत शक्तिशाली था. जब उसका और भगवान श्रीराम के बीच युद्ध हुआ तो सहस्रानन ने मात्र एक बाण से ही श्रीराम की समस्त सेना और शूरवीरों को अयोध्या में फेंक दिया, अन्त में राम मूर्छित होकर पुष्पक विमान में गिर पड़े ।
सारी सृष्टि कम्पित हो गई.
सब प्राणी हाह्कार करने लगे —
ततो रामो महाबाहुः पपात पुष्पकोपरि।
निःसंज्ञो निश्च्चलस्वाशीद्वाहा भूतानि चकिरे ॥
इस प्रकार राम को मूच्छित देखकर जनक-नन्दिनी ने अपने रूप का त्याग किया, माता सीता को इतना क्रोध आया कि वे ‘असिता’ यानि काली बन गईं. उन्होंने भयंकर महाकाली सा विकट रूप धारण किया, हाथ में खड्ग, खप्पर, धारण किये तथा बाघिनी के सभान रावण के रथ पर शीघ्र ही टूट पड़ी ।
एक क्षण मात्र में उसने अपनी लीला से रावण के सहस्त्र सिर अपनी खड्ग से काट डाले , और भी असंख्य योद्धाओं का उसने संहार किया, उनके सिरों की माला बनाकर धारण की तथा रावण के सिर लेकर वह मनस्विनी उनसे गेंद का खेल खेलने की इच्छा करने लगी । उस समय सीता के रोमकूप से अनेक विकृत आकारवाली हुँसती हुई माताएँ प्राप्त हुईं तथा कन्दुक-क्रीड़ा में जानकी को सहायता देने लगीं। मांस-रुधिर के कीचड़ से युक्त पुर के समान उस रण स्थल में महाकाली, महाबला जानकीदेवी नृत्य करने लगीं । नौका के समान चलायमान पृथ्वी कंपित होने लगी, पर्वत चलायमान और सागर कंपित हो गए। सीता के चरणाग्र से पीड़ित पृथ्वी पाताल में जाने लगी |
यह देख देवता लोग महादेव से प्रार्थना करने लगे। वे तत्काल संग्रामस्थल में उपस्थित हुए तथा शव के समान रूप धारण कर, पृथ्वी को थामने के लिए जानकी के नीचे स्थित हुए। क्रोधित सीता को प्रसन्न करने के लिए लोकपाल देवता तथा ब्रह्मा इत्यादि स्तुति करने लगे और अपने हस्तस्पर्श से उन्होंने राम को सचेत किया ।
मूर्च्छा से उठकर राम रण-भूमि का अतिभीषण और डरावना रूप देखकर बहुत ही विह्बल हुए, उनके हाथ से धनुष-वाण गिर पड़े । ब्रह्माजी ने उन्हें सारा वृत्तान्त बताते हुए कहा कि रावण का वध करके यह सीता मातृकाओं के साथ नृत्य कर रही हैं।
हे राम ! इसके बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते, यही दिखाने के लिए जानकी ने यह कार्य किया है। यह साक्षात् निर्गुण, सगुण और सत्-असत् व्यक्ति से रहित है। अपने यथार्थ रूप का परिचय देते हुए जानकी स्वयं कहती हैं–
मां बिद्धि परमां शक्ति महेश्वरसमाश्रयाम्।
अनन्या मप्ययामेंकां यां पश्यन्ति मुसुक्षव: ॥
मुझे महेश्वर को आश्रित करने वाली परमशक्ति जानो। मैं अनन्य अविनाशी एक हूँ । मुमुक्ष जन मुझे देखते हैं! मैं सब भावों की आत्मा सबके अन्तर् में स्थित शिवा हूं। मैं ही निरन्तर रहनेवाली हूँ, सब जानती, और सब मूर्ति प्रवृत्त करनेवाली हूँ ।
यह सुनते ही राम शोक और भय को छोड़कर सहस्ननाम से सीता की स्तुति करते हैं। सीता की शक्ति का वर्णन करते हुए राम कहते हैं-
“रूपं तवाशेषकलाविहीनमगोचरं निर्मलमेकरूपम् ।
अनादिमध्यान्तमनन्तमाद्य॑ नमामि सत्यं तमसः परस्तात् ॥
तुम्हारा रूप सब कला से विहीन अगोचर, निर्मल, एकरूप हैं, आदि-अन्त-मध्य रहित अनन्त तमस् से परे सबकी आदि तुमको मैं प्रणाम करता हैं । हे देवि ! तुम राजाओं में ईशता, युगों में सतयुग, अचिरादि सब मार्गों में आदित्य, वाणियों में सरस्वती, सुन्दर रूप वालों में लक्ष्मी, मायावियों में विष्णु, सतियों में अरुन्धन्ति तथा पक्षियों में गरुड़ हो। सबके आश्रय सब जगत के निधान, सब स्थान में जानेवालें जन्म-विनाश मै रहित, अपुप्रभेद, आद्य महत्त्व पुरुष अनुरूप तुम्हारे रूप को मैं प्रणाम करता हूं ।
आनंदरामायण, रामचरितमानस आदि राम-कथा विषयक अन्य ग्रंथो में शैव-सम्प्रदाय तथा कृष्ण -भक्ति का प्रभाव सुविदित है ही। लेकिन अद्भुत रामायण एक ऐसी विशिष्ट कृति है जिसमें शक्ति सम्प्रदाय के प्रभाव से रामकथा को एक विशिष्ट दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न किया गया है।
सीता के महात्म्य का प्रतिपादन करके राम-सीता मैं अर्थात पुरुष-प्रकृति में वास्तविक भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं, इसी बात का निरूपण अद्भुत रामायण में किया गया है।
स्रोत – अद्भुत रामायण
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FAQs –
सहस्रानन कौन था?
सीता जी ने बताया कि रावण का भाई जो जीवित है उसका नाम सहस्रानन / सहस्त्रवदन रावण है.
सीता जी ने कौन से रावण को मारा था?
इस अद्भुत रामायण में सीता के अद्भुत स्वरूप और पराक्रमों का वर्णन किया गया है। इसमें सीता भयंकर रूप धारण करके हज़ार सिर वाले सहस्रानन रावण का वध करती हैं।
क्या सीता काली बन गई?
इस अद्भुत रामायण में राम युद्ध के मैदान में घायल और बेहोश हो जाते हैं, तो वह काली का भयंकर रूप धारण कर लेती हैं