पद्म पुराण में उपसंहार खंड अर्थात अंतिम भाग में त्रिदेव के बारे बृतान्त है –

त्रिदेवो में श्री विष्णु जी की श्रेष्ठता और पद्मपुराण का उपसंहार –

वशिष्ठ जी कहते है की पूर्वकाल की बात है कि परम उत्तम और दीर्घकाल तक चलने वाले मन्दिराँचल पर्वत पर चलने वाले यज्ञ में स्वयंभू मनु कई अन्य ऋषियों के साथ भाग लेने के लिए जाते है। वहां वेदो के तत्व जानने वाले कई ऋषि और मुनि होते है।

महायज्ञ जब आरम्भ हुआ तो पाप-रहित मुनि देवता तत्व का अनुसन्धान करने के लिए एक दूसरे से पूछते है की कौन देवता / त्रिदेव सबसे श्रेष्ठ है?, किसे सबसे पहले भोग लगाना चाहिए? कौन अविनाशी परम पूज्य है, तो वहां बैठे ज्ञानीजन भी अपने अपने तर्क देने लगे, कोई श्री सूर्य भगवन को श्रेष्ठ बताते है, कोई ब्रह्मा जी को तो कोई शिव जी को श्रेष्ठ बताते है। तो अन्य ब्राह्मण जान श्री विष्णु भगवान् को सम्पूर्ण जगत का स्वामी बताने लगे।

राजा मनु भी श्री विष्णु को पुरषोत्तम कहने लगे तो सभी ऋषियों ने वहां उपस्थित ऋषि भृगु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है की आप इस रहस्य का पता करे की इन तीन देवो में सबसे श्रेष्ठ कौन है?

तपोनिधि भृगु ऋषि इस प्रकार सभी ऋषियो की इच्छा जानकार सबसे पहले कैलाश पर्वत पर जाते है। वहां महा भयंकर नंदी हाथ में त्रिशूल लिए अपने गणो के साथ खड़े है। और उन्हें द्वार पर उन्हें भगवान् शिव के गणो द्वारा रोक लिया जाता है, वे कहते है।

ऋषि भृगु – हे शिव के प्रिय गणो! कृपा करके भगवन शिव जी सूचित करे की ऋषि भृगु अभी उनसे मिलना चाहते है।
लेकिन शिवगण उनकी एक नहीं सुनते – बताते है की शिव जी अभी देवी के साथ क्रीड़ा भवन में विहार कर रहे है। वो अभी किसी से भी नहीं मिल सकते है। लेकिन ऋषि भृगु अपनी बात पर अड़े रहते है तो शिवगण उन्हें उल्टा सीधा तक कह देते है।

तब भृगु   कुपित होकर कहा की “ये रूद्र अपने तमोगुण से प्रेरित होकर अपने द्वार पर आये मुझे ब्राह्मण को नहीं जानते है। इसलिए इन्हे दिया हुआ अन्न, जल, दूध सब कुछ अभक्ष (न खाने योग्य) हो जायेगा।” इस प्रकार ऋषि भृगु श्राप देकर ब्रह्मलोक में गए।

यहाँ से महर्षि भृगु ब्रह्मलोक ब्रह्माजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी अपने दरबार में विराज रहे थे। सभी देवगण उनके समक्ष बैठे हुए थे। भृगु जी वहां हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े हो गए। ब्रह्मा जी ने अपनी सभी में आये अतिथि को देखा तक नहीं। भृगु जी को ब्रह्माजी ने बैठने तक को नहीं कहे। तब महर्षि भृगु ने ब्रह्माजी को रजोगुणी घोषित करते हुए अपूज्य (जिसकी पूजा ही नहीं होगी) होने का शाप दिया। कैलाश और ब्रह्मलोक में मिले अपमान-तिरस्कार से क्षुभित महर्षि विष्णुलोक चल दिये।

भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीर सागर में सर्पाकार सुन्दर नौका (शेषनाग) पर अपनी पत्नी लक्ष्मी-श्री के साथ विहार कर रहे थे। श्री लक्ष्मी उनके चरणों की सेवा कर रही थी। उस समय श्री विष्णु जी शयन कर रहे थे। महर्षि भृगुजी को लगा कि हमें आता देख विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं। तो उन्होंने श्री विष्णु भगवान् को जगाने के लिए, अपने बाए पैर का आघात श्री विष्णु जी की छाती पर कर दिया। महर्षि के इस अशिष्ट आचरण पर विष्णुप्रिया लक्ष्मी जो श्रीहरि के चरण दबा रही थी, कुपित हो उठी। लेकिन श्रीविष्णु जी ने महर्षि के चरण सहलाने लगे। और कहा भगवन् ! मेरे कठोर वक्ष से आपके कोमल चरण में चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु लज्जित भी हुए और नारायण का सदाचार और धर्म देखकर प्रसन्न भी। तभी श्री लक्ष्मी जी ने भी चन्दन और फूलमाला से भृगु ऋषि का स्वागत किया।

यह देखकर ऋषि भृगु के आँखों से आंसू आ गए। और कहने लगे की सत्वगुण इस सृष्टि के सबसे श्रेष्ठ गुण है जो प्रभो आप में समाहित है। आप ही ब्राह्मणों के सबसे पूजनीय है। देवकी नंदन श्री कृष्ण ब्राह्मणों के हितेषी थे। श्री राम भी ब्राह्मणों के हितेषी थे। आप ही जगत के पालनहार है। उन्होंने श्रीहरि विष्णु को त्रिदेव में श्रेष्ठ सत्वगुण या सतोगुणी घोषित कर दिया।

हमारे श्री पद्मपुराण से ऐसी ही कहानियाँ जानने के लिए यहाँ देखे


FAQs –

त्रिदेव में सबसे बड़ा कौन है?

पद्मपुराण के अनुसार सत्वगुण ही सबसे श्रेष्ठ है। जिसकी अधिकता श्री हरि में सबसे ज्यादा है ।

शिव और विष्णु में कौन श्रेष्ठ है?

एक दर्पण के बाहर प्रतिबिंबित है और दूसरा अंदर। आप किसे श्रेष्ट समझेंगे, निश्चय करे।

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Last Update: दिसम्बर 24, 2023